दिल्ली: दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी को गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली. कोर्ट ने उनके खिलाफ अवमानना का मुकदमा बंद कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने सीलिंग तोड़ने के मामले में तिवारी के बर्ताव पर दुख जताया और कहा कि अगर उनकी पार्टी चाहे तो उन पर कार्रवाई कर सकती है.


क्या था मामला


26 सितंबर को मनोज तिवारी ने पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी इलाके में एक इमारत में नगर निगम के तरफ से की गयी सीलिंग को तोड़ा था. उनके इस बर्ताव की शिकायत सीलिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त की गई मॉनिटरिंग कमिटी ने कोर्ट से की. कमिटी ने बताया कि कोर्ट के आदेश पर की जा रही सीलिंग के काम में तिवारी में दखल दिया. कोर्ट ने तिवारी को अवमानना का नोटिस जारी कर बुलाया.


कोर्ट में मनोज तिवारी ने अपनी हरकत पर माफी मांगने की बजाय दलीलें रखीं. उन्होंने कहा कि जिस परिसर की सीलिंग उन्होंने तोड़ी, उसे कोर्ट की तरफ से गठित मॉनिटरिंग कमिटी ने सील नहीं किया था. इसलिए इसे कोर्ट की अवमानना नहीं कहा जा सकता.


तिवारी की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कोर्ट में कहा कि उस परिसर की सीलिंग पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने की थी, जो कि अवैध थी. इलाके के सांसद होने के नाते मनोज तिवारी वहां पहुंचे. वहां पर हजारों लोग जमा हो गए थे. अगर उन्होंने इस तरह की कार्यवाही ना की होती तो लोग भड़क के हिंसा पर उतारू हो सकते थे


कोर्ट ने क्या कहा


फैसला पढ़ते वक्त तीन जजों की बेंच के अध्यक्ष जस्टिस मदन बी लोकुर ने माना कि ये मामला सीधे कोर्ट की अवमानना का नहीं है. लेकिन उन्होंने कहा, "मनोज तिवारी एक सांसद हैं. उन्होंने कानून अपने हाथ में लिया. जब हमने उनसे सवाल किया, तब भी उनका बर्ताव ऐसा नहीं था जैसे उन्हें इस बात पर खेद हो. हमें उनके आचरण से दुख हुआ है."


इसके आगे कोर्ट ने लिखा है, "अगर सांसद की पार्टी चाहे तो उन पर कार्रवाई कर सकती है. हम अपनी तरफ से मामले को बंद कर रहे हैं. हम कामना करते हैं कि सबको सदबुद्धि मिले."


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