Afghan Sikhs: 'चेहरों को ढकते थे, हर वक्त रहते थे डर के साए में '- अफगान सिख मनप्रीत कौर ने सुनाई आपबीती
Afghan Sikhs Saga Of Fear And Pain:अफगानिस्तान से अगस्त 2022 में भारत लौटे अफगान सिखों की जिंदगी वहां तालिबान (Taliban) के डर के साए में गुजरी है और वो अब इसे कभी याद नहीं करना चाहते हैं.
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Sikhs Who Returned To India From Afghanistan: "हमें अपने घर से बाहर निकलने से पहले 10 बार सोचना पड़ता था. हमारे बच्चों के घर से बाहर निकलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. यदि हमें बाहर निकलना होता था, तो हमें अपने चेहरों को ढकना होता था.’’ ये कहना है अफगानिस्तान (Afghanistan) से भारत लौटी अफगान सिख मनप्रीत कौर (Manpreet Kaur) का. अफगानिस्तान में डर के साए में बीती उनकी जिंदगी का खौफ उनकी आंखों और उनकी बातों में साफ नजर आता है. एक वो ही नहीं बल्कि भारत लौटे हर अफगान सिख (Afghan Sikhs) की यही कहानी है. तीन अगस्त को अफगानी सिखों का एक समूह भारत लौटा है.
अफगान सिख लौटे देश
गौरतलब है कि 3 अगस्त को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी-एसजीपीसी (Shiromani Gurdwara Parbandhak Committee-SGPC), इंडियन वर्ल्ड फोरम (Indian World Forum) और केंद्र सरकार की मदद से 28 अफगान सिख अफगानिस्तान से भारत (India) लौटे हैं. इन अफगान सिखों ने वहां से लौटने के बाद तालिबान (Taliban) के डर के साए में बीती अपनी जिंदगी के बारे में बताया.
तालिबान के बाद घर से बाहर निकलना दूभर
अफगानिस्तान में पिछले साल तालिबान (Taliban) के सत्ता पर काबिज होने के बाद से अफगान सिख वहां डर के साए में जी रहे थे. भारत लौटी मनप्रीत कौर दो बच्चों की मां है. वह बताती है कि तालिबान के राज के बाद उन्हें याद नहीं पड़ता की कभी उन्होंने काबुल (Kabul) में अपने घर से बाहर कदम भी रखा हो. यहीं नहीं उनके दो बच्चों के लिए भी जैसे बाहरी दुनिया अनजानी- अजनबी बन गई थी. उनके बच्चों को घर से बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है. इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
कौर ने तालिबान के शासन में अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा, ‘‘अल्पसंख्यक होने के कारण निशाना बनाए जाने का लगातार खतरा बना रहता था. काबुल में सिख एवं हिंदू परिवार रात में चैन से नहीं सो पाते थे. उपासना स्थल सुरक्षित नहीं हैं. ‘गुरुद्वारा करता-ए-परवान’ पर 18 जून को आतंकवादियों ने हमला किया.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें अपने घर से बाहर निकलने से पहले 10 बार सोचना पड़ता था. हमारे बच्चों के घर से बाहर निकलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. यदि हमें बाहर निकलना होता था, तो हमें अपने चेहरों को ढकना होता था.’’
कौर ने दावा किया कि अफगानिस्तान में अधिकतर अल्पसंख्यकों की शिक्षा तक कोई पहुंच नहीं थी क्योंकि बच्चों को स्कूल भेजने का अर्थ था, ‘‘उनके जीवन को खतरे में डालना.’’ कौर ने कहा, ‘‘यदि कोई बच्चा किसी शैक्षणिक संस्थान में जाता है, तो उसे वहां परेशान किया जाता है. जो लोग पढ़ना चाहते हैं, उनमें से अधिकतर भारत आ जाते थे.’’
बेटे को नहीं मिला सही इलाज
अफगानिस्तान से तीन अगस्त को भारत पहुंचे एक अन्य सिख तरणजीत सिंह का तीन वर्षीय बेटा हृदय संबंधी बीमारी से पीड़ित है. उन्होंने बताया कि अस्पतालों तक पहुंचने में दिक्कत होने के कारण उनके बेटे को काबुल में उचित उपचार नहीं मिल पाया. सिंह का कहना है कि वो उम्मीद करते हैं कि भारत में वो बेटे सही इलाज करा पाएंगे.
उधर सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने कहा कि केंद्र को भारत में ऐसे शरणार्थियों को नागरिकता देने और उन्हें काम मुहैया कराने की नीति बनानी चाहिए. कृष्णन ने कहा,‘‘हमारा देश इन शरणार्थियों को नागरिकता देने में सक्षम है. सरकार को न केवल अफगान सिखों और हिंदुओं को, बल्कि सभी शरणार्थियों को यह सहायता देनी चाहिए.’’
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