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Manual Scavenging: देशभर में हाथ से मैला ढोने से मुक्त हुए महज 66% जिले, हजारों मजदूरों की हुई पहचान

Manual Scavenging In India: सरकार की तरफ से मैला ढोने वाले मजदूरों की पहचान करने के निर्देश दिए गए हैं. मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए हर व्यक्ति को 40,000 रुपये का नकद भुगतान दिया जा रहा है.

Manual Scavenging In India: सीवर की सफाई करने उसमें उतरने वाले मजदूरों की मौतों का सिलसिला पिछले कई सालों से लगातार जारी है. मैला ढोने को लेकर सरकार के तमाम दावों के बावजूद देशभर में ये मौतें दर्ज की जाती हैं. हालांकि इससे जुड़ी मौतों की जानकारी होने से सरकार इनकार कर चुकी है. हाल ही में इसे लेकर केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने डेटा जारी किया है, जिसके मुताबिक देश के कुल 766 जिलों में से सिर्फ 508 जिलों ने ही खुद को मैला ढोने से मुक्त घोषित किया है. यानी इन जिलों में इंसान सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई के लिए नहीं उतरते हैं. उसकी जगह मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है. मंत्रालय की तरफ से अपनी उपलब्धियों की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक बुकलेट तैयार की गई है, जिसमें ये जानकारी दी गई है. 

हजारों मजदूरों की हुई पहचान
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक सामाजिक न्याय मंत्रालय ने पिछले दो सालों में हर संसद सत्र में इसे लेकर सफाई दी है. जिसमें सरकार ने कहा है कि देशभर में मैला ढोने के चलते कोई मौत नहीं हो रही है. बताया गया कि जो मौतें हुई हैं वो उनके लिए "सीवर और सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई" जिम्मेदार है. रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने हाथ से मैला ढोने और खतरनाक तरीके से सीवरों की सफाई को अलग किया है. इसमें बताया गया है कि 2013 और 2018 में किए गए सर्वे में सभी हाथ से मैला ढोने वालों (लगभग 58,000) की पहचान की गई थी और अब देश में हाथ से मैला नहीं ढोया जाता है. 

मैला ढोने वालों के पुर्नवास का काम
जो लोग मैला ढोने का काम किया करते थे, सरकार ने उनके लिए काम भी किया है. रिपोर्ट के मुताबिक मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए हर व्यक्ति को 40,000 रुपये का नकद भुगतान दिया गया है. इसके अलावा उनमें से लगभग 22,000 कर्मियों को कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों से जोड़ा गया है. इनमें से कोई भी अगर खुद का व्यवसाय करना चाहता है, उसे सब्सिडी और लोन की सुविधा भी दी जा रही है. 

सीवर से जुड़े सभी कामों का 100% मशीनीकरण करने के लिए मैला ढोने वालों के पुनर्वास की योजना को अब नमस्ते योजना के साथ मिला दिया गया है. यही वजह है कि हाल ही में जारी हुए बजट में इस पुर्नवास योजना के लिए कोई बजट नहीं जारी किया गया, जबकि नमस्ते योजना के लिए ₹100 करोड़ का बजट आवंटित किया गया. 

सफाईकर्मियों की पहचान करने के निर्देश
सीवर सफाई की मशीनीकरण के लिए शुरू हुई नमस्ते योजना को लेकर सामाजिक न्याय मंत्री ने बताया कि इसे लेकर अलग-अलग स्तर पर काम किया जा रहा है. इस योजना के लिए देशभर में 4800 से ज्यादा शहरी निकायों को अपने इलाके में सभी सेप्टिक टैंक और सीवर साफ करने वाले मजदूरों की पहचान करने और उनकी प्रोफाइलिंग के निर्देश दिए गए हैं. इसके अलावा उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण देने और आयुष्मान भारत योजना से जोड़ने की जरूरत के बारे में भी बताया गया है. 

ये भी पढ़ें - ओडिशा हादसे के 100 घंटे के बाद क्या है हाल? कितने रेस्क्यू, कितनी मौतें, पढ़ें हर अहम जानकारी

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