कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया पर देखने को मिल रहा है. दुनिया में हर रोज कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का ग्राफ ऊपर की ओर जाता हुआ दिखाई दे रहा है. इस बीच दुनिया को कोरोना वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन का इंतजार है. लेकिन अब सवाल उठता है कि जब कुछ देश कोरोना वायरस वैक्सीन को एडवांस में खरीदने की होड़ मचा रहे हैं तो ऐसे में क्या दूसरे देशों को कोरोना की वैक्सीन हासिल हो सकेगी?
दुनिया में अब तक कोरोना वायरस के कारण 5.8 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं. वहीं 4 करोड़ से ज्यादा कोरोना मरीजों का इलाज भी किया जा चुका है. हालांकि 13.8 लाख से ज्यादा लोगों की कोरोना वायरस के कारण मौत भी हो चुकी है. ऐसे में विश्व की जनता को कोरोना वायरस वैक्सीन का काफी बेसब्री से इंतजार है.
दुनिया में कई देश कोरोना वायरस वैक्सीन की खोज कर रहे हैं. वहीं दवा निर्माता कंपनियां फाइजर और मॉडर्ना ने कोरोना वैक्सीन को लेकर काफी उम्मीदें जताई हैं. इनकी दवा काफी प्रभावी बताई जा रही है, साथ ही ट्रायल के कई चरणों पर भी अच्छा परिणाम दिया है. हालांकि कई विशेषज्ञों ने वैक्सीन की दुनिया में वितरण के लिए एक निष्पक्ष प्रणाली को लेकर चिंता जाहिर की है.
Pfizer और BioNTech की वैक्सीन उम्मीदवार BNT162b2 को हाल ही में 95% बिना किसी बड़ी सुरक्षा चिंताओं के प्रभावी पाया गया. इसके अलावा Moderna का कहना है कि प्रारंभिक फेज तीन ट्रायल डेटा से पता चलता है कि उसकी वैक्सीन 94.5% तक प्रभावी थी. हालांकि अभी तक किसी भी वैक्सीन को मंजूरी नहीं दी गई है लेकिन फिर भी कई देश एडवांस में ही कोरोना वैक्सीन को खरीदने की होड़ में लग गए हैं.
एडवांस में खरीदी वैक्सीन
उत्तरी कैरोलिना में ड्यूक विश्वविद्यालय के मुताबिक संभावित कोरोना वैक्सीन की 6.4 बिलियन खुराक पहले ही खरीदी जा चुकी हैं और 3.2 बिलियन या तो बातचीत के अधीन हैं या मौजूदा सौदों के वैकल्पिक विस्तार के रूप में आरक्षित हैं. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में वैश्विक स्वास्थ्य नीति के सहायक प्रोफेसर क्लेयर वेनहैम ने बताया कि जो भी देश वैक्सीन के उत्पादन के शुरुआती चरणों में सबसे अधिक भुगतान कर सकता है, वह वैक्सीन की एक बड़ी खेप पहले ही हासिल कर सकता है. अब तक जो वैक्सीन खरीदी गई है, वो उच्च आय वाले देशों की ओर से खरीदी गई है.
वहीं सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कहा है कि वह कोरोना वैक्सीन का आधा हिस्सा घरेलू वितरण के लिए रखेगा. वहीं इंडोनेशिया चीनी वैक्सीन डेवलपर्स के साथ साझेदारी कर रहा है और ब्राजील ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और दवा कंपनी AstraZeneca के जरिए चलाए जा रहे परीक्षणों के साथ साझेदारी कर रहा है.
समान वितरण महत्वपूर्ण
दूसरी तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है, 'वैक्सीन के क्षेत्र में समान वितरण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. इसका अगर सही और समान रूप से उपयोग किया जाता है तो महामारी को रोकने के साथ ही हमारे समाज और अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण में मदद हो सकती है.'
वहीं वैक्सीन को लेकर दवा निर्माता कंपनी फाइजर ने कहा है कि उसे 2020 में 50 मिलियन खुराक और 2021 में 1.3 बिलियन खुराक का उत्पादन करने की उम्मीद है. वहीं मॉडर्ना ने भी आशाजनक परिणाम दिखाए हैं. हालांकि मॉर्डना के पास वैक्सीन को ठंडा रखने के लिए कम संसाधन है. ऐसे में गरीब देशों को वैक्सीन वितरण करने, खासकर गर्म इलाकों में वितरण करने को लेकर चिंता बनी हुई है.
डब्ल्यूएचओ की समतुल्य वैक्सीन वितरण योजना
वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के जरिए कोवैक्स के रूप में जाना जाने वाला एक लैंडमार्क ग्लोबल वैक्सीन प्लान भविष्य की कोरोना वायरस वैक्सीन का एक समान वितरण सुनिश्चित करना चाहता है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि एक बार कोरोना वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी देखी जाती है और उपयोग के लिए अधिकृत की जाती है तो सभी देशों को उनकी आबादी के आकार के अनुपात में खुराक प्राप्त होगी. इसके बाद वैक्सीन को सभी देशों में विकसित किया जाएगा, ताकि राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार अतिरिक्त आबादी को कवर किया जा सके.