Qatar Fifa World Cup: अब से ठीक एक महीने बाद कतर में फुटबॉल विश्व कप शुरू हो जाएगा. फीफा विश्व कप को लेकर दुनियाभर में इस वक्त उत्साह का माहौल है, लेकिन कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो इस विश्व कप की बेहद खराब याद के साथ अपनी आने वाली पूरी जिंदगी जीने वाले हैं. यह परिवार अपने ही मुल्क भारत से हैं. यह वो परिवार हैं जिनके सदस्य फीफा विश्व कप के आयोजन से पहले वहां मजदूरी करने के लिए गए थे, लेकिन लौटकर ताबूत में आए.


इंडियन एक्सप्रेस पर छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिन परिवारों के सदस्यों की मौत हुई उनमें मरने वाले मजदूर अकेले कमाने वाले थे. उनमें से अधिकांश कामकाजी उम्र के पुरुष थे. ऐसा बताया गया कि सभी की मौत 'प्राकृतिक कारणों' के चलते हुई. नौ श्रमिकों में से तीन 30 वर्ष से कम उम्र के थे, जिनमें से एक सिर्फ 22 वर्ष और पांच अन्य 50 वर्ष से कम उम्र के थे. इनमें से आधे से अधिक मामलों में परिवारों का कहना है कि मृतकों की कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं थी और उन्हें उनकी मौत की जानकारी भी अन्य कामगारों से मिली.


बिहार के अखिलेश ने गंवाई जान


कतर में जान गंवाने वाले जगन और अखिलेश के परिजनों का कहना है कि उन्हें मुआवजा नहीं मिला है. अखिलेश बिहार का रहने वाला था. अखिलेश की पत्नी सविता कहती हैं, "हमें अपने पति की मृत्यु के बारे में उनकी कंपनी से कोई जानकारी नहीं मिली थी. मुझे पहली बार उनकी मौत के बारे में हमारे गांव में एक दोस्त से पता चला, जिसे कतर में एक परिचित ने सूचित किया था." बताया गया कि अखिलेश और एक और श्रमिक की मौत विश्व कप आयोजन स्थल से ठीक बाहर हुई, क्योंकि वहां जमीन धंस गई थी.


'मेरा बेटा एक ताबूत में लौटा'


अखिलेश उस घटना में मारे गए दो भारतीय श्रमिकों में से एक थे. दूसरे थे तेलंगाना के मल्लापुर के 32 वर्षीय जगन सुरूकांति. जगन के 59 वर्षीय पिता ने बताया, "मैं केवल इतना जानता हूं कि मेरा बेटा वहां पूरी तरह से फिट होकर गया था और वह एक ताबूत में लौटा."


भारतीय दूतावास ने क्या कहा?


इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 2010 में कतर ने विश्व कप मेजबानी के अधिकार जीते थे और तब से अब तक वहां कितने मजदूरों की मौत हुई इस पर भारतीय दूतावास के पास कोई जानकारी नहीं है. इसका खुलासा एक आरटीआई से हुआ है. फुटबॉल की विश्व शासी निकाय फीफा ने कतर में विश्व कप परियोजनाओं पर काम कर रहे भारतीयों की मौत पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है. वहीं मई में एसोसिएटेड प्रेस ने फीफा के अध्यक्ष गियानी इन्फेंटिनो के हवाले से कहा कि विश्व कप निर्माण स्थलों पर केवल तीन लोगों की मौत हुई है.


2011 से मई 2022 तक 3 हजार से ज्यादा श्रमिकों की मौत


लोकसभा के रिकॉर्ड बताते हैं कि भारत से 72,114 श्रमिक 2020 से जुलाई 2022 तक पिछले तीन वर्षों में कतर गए थे. विदेश मंत्रालय के अनुसार, 2011 से मई 2022 तक कतर में 3,313 भारतीय नागरिकों ने अपनी जान गंवाई. प्रवासी कल्याण मंच के अध्यक्ष और एशिया में प्रवासी मंच के सदस्य भीम रेड्डी मांधा कहते हैं, "स्वाभाविक रूप से श्रमिकों की मौत को फीफा विश्व कप से जोड़ा जा सकता है क्योंकि विश्व कप प्रमुख अनुबंध है. सब कुछ संबंधित है. (कतर के लिए) जाने से पहले व्यक्ति स्वस्थ हैं. वहां जाने के बाद 40 साल से कम उम्र के लोगों सहित कई लोगों की मौत हो रही है, कई कार्डियक अरेस्ट के कारण मर रहे हैं. यह एक गंभीर सवाल है."


'उन्होंने सिर्फ बकाया वेतन भेजा'


तेलंगाना के एक और श्रमिक ने कतर में जान गंवाई. 25 वर्षीय पदम शेखर अपने परिवार को कर्ज और गरीबी में छोड़ गए. शेखर की पत्नी सुजाता अभी भी अपने पति की मौत के बारे में जवाब खोज रही हैं. शेकर को वर्ल्ड कप स्पॉन्सर के लिए डिलीवरी बॉय की नौकरी मिली थी. वहीं तेलंगाना के मेंडोरा गांव की लता बोलापल्ली कहती हैं, "उन्होंने (कंपनी) कहा कि मेरे पति की हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई और वे एक सप्ताह के भीतर शव को ले जाएंगे. उन्होंने सिर्फ बकाया वेतन भेजा, लगभग 24,000 रुपये. मुआवजे की कोई जानकारी नहीं दी." लता बोलापल्ली के पति मधु की 17 नवंबर 2021 को कतर में मौत हो गई थी.


27 अप्रैल, 2016 को सुबह लगभग 9.30 बजे जलेश्वर प्रसाद (स्टीलवर्कर) अल बेयत स्टेडियम के खिलाड़ियों की टनल के अंदर था और काम करने के दौरान वह गिर गया. दो घंटे बाद उसे मृत घोषित कर दिया गया. सुप्रीम कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, प्रसाद का निधन "हृदय गति रुकने" के कारण हुआ. ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार, कतर के श्रम कानून ऐसे हैं कि कंपनियों को परिवारों को मुआवजे का भुगतान तभी करना पड़ता है जब मृत्यु कार्यस्थल पर या सीधे काम के कारण होती है. यही कारण है कि इससे परिवारों के लिए वैध दावा करना मुश्किल हो जाता है. 


स्टेडिमय निर्माण में मजदूरी कर रहे थे कल्लादी


2010 में, जिस वर्ष कतर को विश्व कप के अधिकार मिले, कल्लादी ने 1,300 कतरी रियाल (29,000 रुपये प्रति माह) के लिए वहां नौकरी हासिल करने के लिए लोन लिया. उनके बेटे श्रवण ने कहा कि शिविर में उन्हें "पांच अन्य पुरुषों के साथ एक छोटा कमरा" आवंटित किया गया था. 2015 में कतर में उनके साथ आए श्रवण ने कहा, "स्टेडियम का निर्माण किया जा रहा था और उनके चारों ओर सड़कें बनाई जा रही थीं. मेरे पिता उन सड़कों में से एक का निर्माण कर रहे थे जो स्टेडियम की ओर जाती थी."


श्रवण ने कहा कि अत्यधिक उच्च तापमान में काम करने के बाद कल्लाडी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, जिससे उनकी मृत्यु हो गई. परिवार के अनुसार, उसे अपनी बूम कंस्ट्रक्शन कंपनी से सिर्फ उस महीने का वेतन मिला. श्रवण ने कहा, "हमें उनसे कोई मुआवजा नहीं मिला."


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