विपक्षी एकता की कवायद : 2019 की तस्वीर के मुकाबले ये एकजुटता कितनी मजबूत?
सीएम नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को एकजुट करने का अपना मिशन पूरी तरह शुरू कर दिया है.
साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर विपक्ष एकजुट होने लगा है. उनकी एकजुटता की तस्वीर तब नजर आई जब रविवार यानी 25 सितंबर को हरियाणा के फतेहाबाद के एक बड़ी रैली में कई विपक्षी दिग्गज एक साथ जुटे. दरअसल कल फतेहाबाद में इंडियन नेशनल लोकदल की महारैली में कई पार्टियों के दिग्गज एकजुट हुए. वहां मौजूद नेताओं का कहना है कि 2024 के चुनाव को लेकर विपक्षी एकजुटता का ये तो बस ट्रेलर है. हमें पूरा विश्वास है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी वापस सत्ता में नहीं लौटेगी.
विपक्षी एकता के एकजुटता की बात ऐसे समय में हो रही है जब जहां एक तरफ देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी 'भारत जोड़ने' पर निकले हैं तो वहीं दूसरी तरफ उनकी पार्टी गोवा से लेकर राजस्थान तक बंटती हुई, टूटती हुई दिख रही है. हाल फिलहाल में गोवा और राजस्थान में हुई सियासी हलचल ने विपक्षी एकता की नींव की पक्की ईंट कांग्रेस को कमजोर करने का काम किया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि विपक्षी एकता की ये तस्वीर 2019 से कितनी ताकतवर है?
आपको याद होगा कि साल 2019 में बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी एकजुटता की बात बड़े ही जोर-शोर से शुरू की गई थी. लोकसभा चुनाव से पहले कहा गया कि अगर बीजेपी को रोकना है तो सभी दलों को साथ आना होगा. वहीं इन सबके साथ आने की सबसे बड़ी तस्वीर 23 मई 2018 को कर्नाटक में दिखी.
उस वक्त कुमारस्वामी ने सीएम पद की शपथ ली थी और उस शपथग्रहण समारोह में कई विपक्षी नेता एक साथ शामिल हुए थे और उन्होंने विपक्षी एकजुटता के ताकत का प्रदर्शन किया था.
एक ही मंच पर साथ आए इन विपक्षी नेताओं में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, सोनिया गांधी, बसपा सुप्रीमो मायावती, टीएमसी चीफ ममता बनर्जी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, एनसीपी चीफ शरद पवार, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, लेफ्ट की तरफ से सीताराम येचुरी और डी राजा, आरएलडी से अजीत सिंह और जयंत सिंह के आलावा वी नारायणसामी शामिल हुए थे.
(2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की तस्वीर)
लेकिन जिस तरह से ये तस्वीर साल 2019 में बनी थी वैसा कोई गठबंधन में आपस में हो नहीं पाया. यूपी में सपा-बसपा और आरएलडी ने मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन कांग्रेस इस गठबंधन से बाहर थी. इसी तरह बिहार में भी आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था. लेकिन एनडीए की लहर में जिसमें नीतीश कुमार भी शामिल थे टिक नहीं पाए.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने राहुल गांधी की अगुवाई स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन भी नहीं टिक पाया. और विपक्षी एकता का तानाबाना लोकसभा चुनाव 2019 के आते-आते छिनभिन्न हो चुका था. चुनावी नतीजों ने इन सभी नेताओं का और भी बुरा हाल कर दिया.
लेकिन राजनीतिक एजेंडा सेट करने के लिहाज से वो तस्वीर काफी कुछ कह गई थी. अब 2022 यानी पूरे 4 साल बाद एक बार फिर मोदी बनाम ऑल वाला नेरेटिव छेड़ा जा रहा है. हरियाणा से सामने आई इस तस्वीर ने एकजुटता का बिगुल फूंक दिया है. तस्वी में नजर आ रहें बिहार के सीएम वर्तमान में लीड रोल पर हैं.
अब बिलकुल ऐसी ही एक तस्वीर हरियाणा के फतेहाबाद में सामने आई है. इंडियन नेशनल लोकदल की महारैली में कई पार्टियों के दिग्गज नेता साथ-साथ नजर आए.
इस रैली में विपक्ष को एकजुटता की कवायद शुरू करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, शिवसेना के अरविंद सावंत, शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर बादल और कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी शामिल हैं. ओम प्रकाश चौटाला के निमंत्रण पर इन नेताओं ने एक साथ मंच साझा किया और केन्द्र की मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला.
नीतीश कुमार ने इस रैली में विपक्ष को एकजुट करने पर कहा कि जब बीजेपी वाले जब गलत बातें बोलने लगे, तब हमने साथ छोड़ना बेहतर समझा. नीतीश कुमार ने कहा कि फिलहाल हमारे साथ 7 पार्टियां हैं. लेकिन हमें पूरे देश को एकजुट करना होगा, ताकि 2024 में बाजेपी को एक भी सीट नसीब नहीं हो.
उन्होंने कहा, 'मैंने कांग्रेस से भी अनुरोध किया है. ज्यादा से ज्यादा पार्टिया एक हो जाएं, तो बीजेपी का 2024 में चुनाव जीतना तो दूर बुरी तरह हारना तय होगा'.
विपक्ष के ये प्रमुख नेता रहे गायब
इंडियन नेशनल लोकदल यानी इनेलो की तरफ से 17 नेताओं को इस रैली में बुलाया गया था. जिसमें नीतीश, तेजस्वी, शरद पवार, सुखबीर सिंह बादल, सीताराम येचुरी शामिल हुए थे.
लेकिन ममता बनर्जी, गुलाम नबी आजाद, उद्धव ठाकरे, एचडी देवेगौड़ा, फारूक अब्दुल्ला, अरविंद केजरीवाल, चंद्रशेखर राव, चंद्रबाबू नायडू, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने कार्यक्रम से दूरी बनाए रखे.
हालांकि अभी किसी तस्वीर की
नीतीश कुमार की दावेदारी कितनी मजबूत?
नीतीश की दावेदारी की बात करें तो बिहार के सीएम नीतीश कुमार खुद पीएम बनने की इच्छा जाहिर नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कई मंचो पर भाषण के दौरान ये कहा कि उन्हें पीएम बनने की कोई इच्छा नहीं है.
लेकिन विपक्षी एकजुटता के लिए सबसे पहले ये जरूरी है कि किसी एक चेहरे पर सहमति बने जरूरी है. वर्तमान में नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में ऐसा सियासी उलटफेर किया है कि विपक्षी खेमे में उनकी दावेदारी काफी मजबूत हुई है.
इसके अलावा नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं जिसका देश के यूपी-बिहार में अच्छा-खासा वोट बैंक है. उनकी एक साफ-सुथरी छवि और सुशासन बाबू वाला पहचान एक बड़ा कारण है कि पीएम उम्मीदवार के तौर पर सामने आना विपक्ष जान फूंक सकता है.
विपक्ष को एकजुट करने में होंगे कामयाब
सीएम नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को एकजुट करने का अपना मिशन पूरी तरह शुरू कर दिया है. सीएम नीतीश कुमार और राजद नेता लालू प्रसाद यादव ने रविवार को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाक़ात की थी.
मुलाकात के बारे में बात करते हुए लालू यादव ने कहा कि वह फिर से सोनिया गांधी से मुलकात करेंगे. जबकि नीतीश कुमार ने कहा कि उनके यहां (कांग्रेस में) अध्यक्ष पद का चुनाव है. उसके बाद ही वो कुछ कहेंगी. सोनिया गांधी ने इस मुलाकात को 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए को एक शिष्टाचार मुलाक़ात बताया.
वहीं सोनिया से मुलाकात पहले नीतीश दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, एनसीपी नेता शरद पवार, सपा के अखिलेश यादव के अलावा लेफ़्ट पार्टी के नेताओं से मिल चुके हैं. इस मुलाक़ात का मक़सद 2024 में नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर करना और विपक्ष को एक साथ लाना है. नीतीश एक महीने से इसी कोशिश में लगे हैं.
अभी तक की क्या है तस्वीर?
विपक्षी एकजुटता के इस अभियान को देखें तो फिलहाल 2024 के चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए कुछ पार्टियां तो एकजुट हो सकती हैं, लेकिन बड़ी पार्टियों में टकराव है. प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर सहमति बनना भी मुश्किल लग रहा है. ऐसे में ये भी हो सकता है कि 2024 में कई पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ें और चुनाव में अगर ऐसी स्थिति बनती है कि विपक्ष सरकार बनाने की स्थिती में होगा तो बीजेपी को सरकार से बाहर करने के लिए ये सभी पार्टियां एकजुट हो सकती हैं.
वहीं 2019 के विपक्षी एकजुटता से वर्तमान की एकजुटता देखें तो मौजूदा स्थिती काफी कमजोर है. सीपीआई का कोई प्रमुख नेता नहीं दिख रहा है, कांग्रेस की भी जोरदार उपस्थिति नहीं है, यूपी जो सबसे बड़ा संसदीय प्रदेश है उसका प्रतिनिधित्व गायब है, पिछली तस्वीर में अखिलेश यादव और मायावती दोनों थे जो बहुत बड़े संकेत थे.
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