Marital Rape: केंद्र सरकार ने शुक्रवार (22 सितंबर) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मुद्दे के सामाजिक प्रभाव होंगे. इसके साथ ही मामले में याचिकाकर्ताओं ने एक साल से अधिक समय से फैसले का इंतजार कर रहे मामले की जल्दी सुनवाई के लिए दबाव भी डाला.
वकील करुणा नंदी ने मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) धनंजय वाई चंद्रचूड़ के समक्ष सूचीबद्ध करने की तारीख की मांग करते हुए उल्लेख किया. वहीं, सीजेआई ने जवाब दिया कि अदालत उनके नेतृत्व वाली संविधान पीठ के कई मामलों को निपटाने के बाद मामले की सुनवाई कर सकती है. उन्होंने कहा, “हम इसे अक्टूबर के मध्य में सूचीबद्ध करेंगे और देखेंगे कि उस समय तक संविधान पीठों की स्थिति क्या है.”
केंद्र ने मांगा दो दिन का समय
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई से अनुरोध किया कि जब भी मामला सूचीबद्ध हो, उस पर बहस करने के लिए केंद्र को दो दिन का समय दिया जाए. उन्होंने कहा, “इसके सामाजिक प्रभाव होंगे.” नंदी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपनी दलीलें पेश करने के लिए तीन दिन की जरूरत होगी.
जुलाई में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वैवाहिक बलात्कार से पति को छूट की वैधता के संबंध में याचिकाओं पर निर्णय लिया जाना है. अनुच्छेद 370 को हटाने से संबंधित मामले की सुनवाई अगस्त में पूरी होने के बाद संविधान पीठ में सुनवाई के बाद मामले को सूचीबद्ध करने पर सहमति बनी थी. हालांकि, अनुच्छेद 370 की सुनवाई के बाद सीजेआई की संविधान पीठ ने नए मामलों को सूचीबद्ध किया गया, जिससे वैवाहिक बलात्कार मामले में और देरी हुई.
न्यायालय को अभी भी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 (बलात्कार) के अपवाद 2 की चुनौती का समाधान करना बाकी है. जहां न्यायमूर्ति शकधर ने वैवाहिक बलात्कार को अपवाद बनाने वाले प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया, वहीं न्यायमूर्ति शंकर ने इसे बरकरार रखा.
इस बीच, 22 मार्च, 2022 को कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने अपनी पत्नी से बलात्कार करने और अपनी पत्नी को यौन गुलाम के रूप में रखने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोप को रद्द करने से इनकार कर दिया.
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