नई दिल्लीः भारत-चीन सीमा पर सैनिक तनाव घटाने की कवायदें भले ही आगे बढ़ रही हों. लेकिन एशियाई मोहल्ले में चीनी दादागिरी से मुकाबले की रणनीतिक पेशबंदी में भारत कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता. हिंद महासागर के पूर्व में जहां क्वाड जैसी चौकड़ी के साथ साझेदारी बढ़ाने की कोशिशें चल रही हैं. वहीं पश्चिम में ईरान के लिए चाबहार बंदरगाह से लेकर यूरेशिया तक कारोबारी रास्ते बढ़ाने के प्रयासों के साथ भारत साझेदारों का मजबूत नेटवर्क खड़ा करने में जुटा है.
ईरान और अफगानिस्तान के साथ चाबहार बंदरगाह के त्रिपक्षीय इस्तेमाल को लेकर हुई समझौती की पांचवीं सालगिरह पर भारत ने 4 मार्च को ‘मैरीटाइम इंडिया समिट 2021’ की मेजबानी की. इस बैठक में ईरान-अफगानिस्तान के अलावा अर्मेनिया, कजाखिस्तान, उजबेकिस्तान के अलावा रूस को भी न्यौता दिया गया था. इन सभी देशों ने चाबहार बंदरगाह के जरिए आपसी साझेदारी बढ़ाने और कारोबार के नए रास्ते बनाने में मदद का भरोसा दिया.
विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर का आग्रह
इस मौके पर भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने आग्रह किया कि उजबेकिस्तान और अफगानिस्तान को रूस समर्थित इंटरनेशनल नार्थ-साऊथ कॉरिडोर परियोजना में भागीदार बनाने का आग्रह किया. भारत की कोशिश चाबहार बंदरगाह को इंटरनेशनल नार्थ-साउथ कॉरिडोर से जोड़ने की है जिसमें भारत-रूस समेत 12 से अधिक देशों की भागीदारी है. करीब 7200 किमी लंबे इस बहुराष्ट्रीय हाइवे और रेल-पोर्ट नेटवर्क के जरिए एक ऐसा रास्ता बनाने की है जो भारत-ईरान, अर्मीनिया, रूस के रास्ते मध्य एशिया औऱ यूरोप को जोड़े.
करीब दो दशक पुरानी आईएनएसटीसी परियोजना चीन की बेल्ट एंड रोड योजना का विकल्प हो सकती है. खासकर ऐसे में जबकि बीआरआई में चीन के एकतरफा दबदबे और आर्थिक दबाव को लेकर कई देशों के बीच चिंताएं हैं. बीआरआई में शामिल उजबेकिस्तान, कजाखिस्तान जैसे कई पड़ोसी देश भी इसके विकल्पों में खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
कार्यक्रम में शरीक उज्बेक डिप्टी ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर जासुरबेक चारयेव ने कहा कि एक लैंड-लॉक्ड देश होने के नाते उज्बेकिस्तान चाबहार की एहमियत को समझता है. कई सड़क व कनेक्टिवीटी परियोजनाओं के जरिए हम चाबहार तक पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं जो हिंद महासागर से आगे हमारे उत्पादों को पहुंच का रास्ता देता है. इस कड़ी में उजबेकिस्तान के नावेय फ्री इकोनॉमिक जोन और चाबहार फ्री इकोनॉमिक जोन के बीच हुआ समझौता काफी अहम है. कजाखिस्तान के परिवहन मंत्री रोजलान ने कहा कि उनका देश एक कनेक्टिविटी हब है. कजाखिस्तान के अख्ताऊ सी पोर्ट से रूस ही नहीं कई अन्य देशों के लिए कनेक्टीविटी की सुविधा उपलब्ध है. ऐसे में चाबहार-जाहेदान और माशेदान-जाहेदान लिंक के जरिए कजाखिस्तान को भारत तक पहुंचने का रास्ता मिलेगा.
चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर परियोजना खतरे में
इस मौके पर रूस के उपमंत्री ओलेव व्येसनेव ने भी अपने संदेश में कहा कि इंटरनेशनल नार्थ-साऊथ कॉरिडोर इस इलाके के विकास के लिए जरूरी है. चाबहार इस इलाके के परिवहन ढांचे में एक खास अहमियत रखता है.
महत्वपूर्ण है कि चीन के वर्चस्ववादी बीआरआई योजना से अलग भारत की कोशिश एक ऐसा नेटवर्क बनाने की है जिसमें द्विपक्षीय समझौतों और बहुपक्षीय साझेदारियों का एक ताना-बाना बनाया जा सके. ताकि किसी एक देश के दबदबे की बजाए सभी मुल्क कनेक्टीविटी की परोयोजनाओं में भागीदार बन सकें. अफ्रीका के मुल्कों में भारत जहां जापान के साथ मिलकर एशिया ग्रोथ कॉरिडोर बनाने में जुटा है. वहीं रूस के साथ इंटरनेशनल नॉर्थ-साऊथ कॉरिडोर परियोजना में भी पुराना हिस्सेदार है. गौरतलब है कि रूस के इर्द-गिर्द मौजूद पूर्व सोवियत गणराज्यों में बीआरआई के जरिए रूस की बढ़ती पैठ रूस को भी असहज करती है. ऐसे में यदि भारत जैसे मजबूत साथी के साथ मिलकर क्षेत्रीय साझेदारी का ढांचा खड़ा होता है तो यह पुतिन सरकार की भी पसंद होगा.
इस बीच चाबहार की बढ़ती अहमियत के मद्देनजर होर्मुज की खाड़ी और मकरान तट रेखा के करीब ही तैयार पाकिस्तान के ग्वादर बंदरबाह की परेशानी बढ़ रही है. चीन की मदद और भारी-भरकम निवेश के साथ तैयार ग्वादर बंदरबाह के लिए कारोबारी निवेश और अंतरराष्ट्रीय सहयोग जुटाने की पाकिस्तान बेसाख्ता कोशिश कर रहा है.
ध्यान रहे कि हाल ही में चीन के करीबी सहयोगी पाकिस्तान ने भी अफगानिस्तान और उजबेकिस्तान के साथ रेल नेटवर्क बनाने की योजना को आगे बढ़ाया है. दिसंबर 2020 में इस बाबत एक त्रिपक्षीय समझौते पर दस्तखत किए गए. साथ ही इस योजना के नाम पर पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से करीब 4.8 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता जुटाने की भी कोशिश तेज की है. हालांकि पाकिस्तान की खस्ता माली हालत और चीनी कर्ज के बढ़ते बोझ के बीच फिलहाल ग्वादर के लिए कारोबारी संसाधन जुटाने में खासी मुश्किलें भी सामने आ रही हैं. ऐसे में बीआरआई के बैनर तली बनाई गई अरबों डॉलर की चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर परियोजना का भविष्य भी खतरे में पड़े सकता है.