हमने बचपन से ही सुना है कि 'बेटियां पराई घर की होती है, उन्हें एक दिन शादी करके अपने घर जाना होता है. लेकिन क्या हमने कभी ये सोचा था कि बेटियों की शादी करवाकर उसे ससुराल भेजने का ये रिवाज महिलाओं के पलायन का सबसे बड़ा कारण बन जाएगा. 


दरअसल भारत में पलायन करने वालों पर एक आंकड़ा सामने है. जिसके अनुसार यूपी से लेकर महाराष्ट्र तक भारत में शादी, पलायन की सबसे बड़ी वजह है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2020-21 के दौरान भारत में महिला और पुरुषों के बीच प्रवास की दर 28.9% दर्ज की गई है और प्रवासन का सबसे आम कारण शिक्षा और रोजगार नहीं बल्कि विवाह है. 


हमने अक्सर ही सुना है कि भारत में लोग एक देश से दूसरे देश, एक राज्य से दूसरे राज्य नौकरी से लेकर बेहतर शिक्षा की तलाश में पलायन करते हैं. कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान भी टीवी से लेकर सोशल मीडिया तक, अखबार से लेकर रेडियो तक पलायन शब्द का बार-बार जिक्र किया गया था. उस दौरान देश भर के करोड़ों लोग अपने कर्म भूमि से पलायन कर घर वापसी कर रहे थे. लेकिन देश में शादी कर अपने ससुराल जाना खासकर महिलाओं के लिए पलायन का सबसे बड़ा कारण बन जाएगा ये किसने सोचा था.


क्या कहते हैं आंकड़े


इंडियास्पेंड में साल 2011 के जनगणना के आंकड़ों पर आधारित एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में एक राज्य से दूसरे राज्य पलायन करने वाले कुल प्रवासियों में से 46 प्रतिशत प्रवासी के माइग्रेशन का कारण शादी है और इनमें से 97 फीसदी महिलाएं हैं. आसान भाषा में समझे तो पलायन करने वाले 224 मिलियन भारतीय में से 97 फीसद महिलाएं हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के अलावा अपने घर सहित पलायन करने वाले लोगों की संख्या 15 प्रतिशत है और रोजगार के लिए 10 प्रतिशत लोग पलायन कर रहे हैं. 


ग्रामीण क्षेत्र में प्रवासी महिलाओं की संख्या और भी ज्यादा 


इंडियास्पेंड की इसी रिपोर्ट के अनुसार गांव में रहने वाली महिलाएं ज्यादा पलायन कर रही हैं. पलायन करने वाले 97 प्रतिशत महिलाओं में से लगभग 78 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं शादी के बाद अपना घर छोड़ अन्य राज्य या शहर में बस रही हैं. इस मामले में शहरी क्षेत्रों की महिलाओं का आंकड़ा 46 प्रतिशत है. 


पलायन का महिलाओं पर क्या पड़ता है असर 


महिलाएं सदियों से शादी के बाद अपना घर छोड़ पति के घर बस जाती हैं. आम तौर पर महिलाओं की शादी के बाद दूसरे शहर या राज्य में बस जाने की गिनती प्रवासियों की तरह की भी नहीं जाती. लेकिन एक राज्य से दूसरे राज्य के पलायन का उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर बेहद असर पड़ता है. 


शोधकर्ताओं के अनुसार पलायन का महिलाओं पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. शादी के बाद पलायन करना महिलाओं की जिम्मेदारियों को और बढ़ा देता है. खास कर जब वह महिला युवा और कम शिक्षित हो. ऐसे में उनका बोझ और बढ़ जाता है. 


वहीं दूसरी तरफ पुरुषों का पलायन करना पारिवारिक आय में वृद्धि लाता है. जिसके कारण महिलाओं को अपना घर चलाने के लिए कम पारिश्रमिक और विषम परिस्थितियों में काम करना पड़ता है. इसका सीधा असर महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण पर पड़ता है.


भारत श्रम बल में महिलाओं की संख्या में भारी गिरावट


साल 2018 में अंग्रेजी अखबा मिंट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की. इसके अनुसार भारत श्रम बल में महिलाओं की संख्या में भारी गिरावट से जूझ रहा है. आमतौर पर महिलाओं के पलायन पर ज्यादा बातचीत नहीं होती, इसके पीछे कई कारण हैं. मुख्य रूप से यह धारणा काम करती है कि पलायन बेहतर रोजगार और जिंदगी की तलाश में होती है. ऐसे समय में महिलाओं को पुरुषों का साथ देने वाली के रूप में देखा जाता है. यही कारण है कि हमारा समाज महिलाओं के आर्थिक महत्व को भी अनदेखा कर देता है. 


भारत में एक साल में कितनी शादियां होती हैं, कितना बड़ा शादी का बाजार 


साल 2022 के नवंबर-दिसंबर में 32 लाख शादियां हुईं. भारत में सालाना लगभग 10 मिलियन शादियां होती हैं. एक स्टडी के अनुसार साल 2017 से 2021 के बीच भारत में साढ़े छह करोड़ शादियों का होने का अनुमान है. इन शादियों पर पांच लाख से लेकर पांच करोड़ तक की रकम खर्च होती है. शादी के इस बढ़ते बाजार से मुनाफा कमाने के लिए ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन कंपनियां इस मैदान में कूद रही हैं. इनमें कंपनियों में जोड़े मिलाने से लेकर शादी के तमाम आयोजन करने वाली कंपनियां तक शामिल हैं.


प्राकृतिक आपदा भी पलायन का कारण  


सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्राकृतिक आपदाएं, राजनीतिक समस्याएं, विकास परियोजना भी विस्थापन के कारणों में है. स्वास्थ्य संबंधी कारण और रिटायरमेंट के वजह से भी लगभग 1 प्रतिशत लोग पलायन करते हैं.


शहर के तरफ बस रहे हैं लोग 


सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर लोग शहरी क्षेत्रों में बस रहे हैं. शहर में बढ़ रहे परिवार इस बात का इशारा है कि गांव के ज्यादातर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार रोजगार और बेहतर जिंदगी की तलाश में  शहरों की तरफ तेजी से पलायन कर रहे हैं. साल 2020- 21 की रिपोर्ट के अनुसार एक साल में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 26.5% और शहरी क्षेत्रों में 34.9% पलायन हुआ है. 


मुंबई में बस रहे हैं सबसे ज्यादा प्रवासी 


भारत के अन्य राज्यों की तुलना में राजधानी मुंबई में सबसे ज्यादा प्रवासी रह रहे हैं.  2011 के जनगणना के आंकड़ों के अनुसार मुंबई में 90 लाख प्रवासी बसे थे, जबकि 63 प्रतिशत प्रवासियों के साथ राजधानी दिल्ली दूसरे स्थान पर है. उत्तर प्रदेश में तीसरे स्थान पर है लेकिन यहां बसने वाले ज्यादातर लोग नोएडा में रोजगार की तलाश में आते हैं. 


इन राज्यों के अलावा गुजरात, हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी अलग अलग राज्यों के लोग रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं. 
 
किस राज्यों में होती है सबसे ज्यादा शादियां


एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 से साल 2021 के बीच साढ़े छह करोड़ शादियों का अनुमान है. इन शादियों पर पांच लाख से लेकर पांच करोड़ तक की रकम खर्च होती है. 


किस राज्य में कितनी बेरोजगारी दर 


सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की ताजा रिपोर्ट की मानें तो वर्तमान में अन्य राज्यों की तुलना में हरियाणा में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है. यहां 37.3 फीसदी बेरोजगारी दर है, इसके बाद दूसरा स्थान जम्मू और कश्मीर का है यहां 32.8 प्रतिशत बेरोजगारी दर है, राजस्थान में 31.4% और झारखंड में 17.3% बेरोजगार हैं. वहीं इस लिस्ट में छत्तीसगढ़ सबसे आखिरी में आता है. इस राज्य में 0.4% प्रतिशत के साथ सबसे कम बेरोजगारी दर  है, जबकि मेघालय और महाराष्ट्र में क्रमशः 2% और 2.2% की बेरोजगारी दर है. 


इन राज्यों में होता है पलायन 


फतेहपुर भारत के उन 75 जिलों में है जहां से सबसे ज्यादा माइग्रेशन होता है. साल 2018 के आर्थिक सर्वे में इन जिलों के नाम बताए गए हैं. माइग्रेट करने वाले सबसे ज्यादा जिलों वाला प्रदेश उत्तर प्रदेश है. यहां 39 जिले हैं जहां से लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में पलायन कर रहे है. 


उत्तराखंड  के 9 जिले और बिहार के 8 ऐसे हैं जहां के लोग दिल्ली मुंबई जैसे बड़े शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं.  आर्थिक सर्वे के अनुसार, 1991-2001 के दशक में माइग्रेशन की दर 2.4 प्रतिशत थी जो कि साल 2001-11 के यानी 10 साल में लगभग दोगुनी बढ़कर 4.5 प्रतिशत पर हो गई.  


भारत में ज्यादातर अंतरराज्यीय माइग्रेशन हो रहा है. ग्रामीण इलाकों से लोग बेहतर जिंदगी और ज्यादा पैसा कमाने के लिए बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं. ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि हर साल 50 से 90 लाख लोग इंटरनल माइग्रेशन करते हैं.


उत्तराखंड में बढ़ा तेजी से पलायन 


पिछले 20 सालों के आंकड़ों को देखें तो पाएंगे कि उत्तराखंड में भी माइग्रेशन काफी तेजी से बढ़ा है. यहां ज्यादातर लोग सुख सुविधाओं और बेहतर जीवन के लिए शहर की तरफ बढ़ रहे हैं. हालांकि पलायन का एक कारण प्राकृतिक आपदाएं, जैसे पानी की कमी, भूकंप आदि भी है.


उत्तराखंड के गैर लाभकारी संगठन इंटीग्रेटेड माउंटेन इनीशिएटिव (आईएमआई) में कार्यक्रम संयोजक नम्रता रावत ने डाउन टू अर्थ से बातचीत की, उन्होंने बताया कि राज्य के गांवों से जहां स्थानीय निवासी शहरों में जा रहे हैं, वहीं पड़ोसी देश नेपाल और बिहार जैसी जगहों से लोग इन गांवों में आ रहे हैं. 


बिहार और नेपाल से आए लोग यहां कृषि श्रमिक के तौर पर  खेती का काम कर रहे हैं, क्योंकि स्थानीय निवासियों की इस काम में दिलचस्पी काफी कम हो गई है. इसके अलावा राज्य में पानी की कमी कारण पहाड़ सूख रहे हैं और लोगों को मायूस कर रहे हैं. 


पलायन का भविष्य 


सितंबर 2017 में प्रकाशित इनग्रिड डालमन और कैटरिन मिलोक के शोध में भारत के आने वाले सालों में पलायन पर स्टडी किया गया है. इस स्टडी के अनुसार आने वाले 10-15 सालों में सूखे के कारण उत्तराखंड  में पलायन की औसत दर बढ़ जाएगी. साल 1991 में भारत की जनसंख्या में 26.7 प्रतिशत हिस्सेदारी आंतरिक प्रवासियों की थी. इनमें 11.8 प्रतिशत अंतरराज्यीय प्रवासी थे. 2011 में आंतरिक प्रवासी बढ़कर 30.1 प्रतिशत हो गए और अंतरराज्यीय प्रवासी भी बढ़कर 13.4 प्रतिशत हो गए.