Captain Anshuman Singh: सियाचिन में शहीद होने वाले कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने बेटे के जाने के बाद हो रही परेशानियों के बारे में बताया है. उन्होंने बताया है कि किस तरह से उनकी बहू स्मृति सिंह कीर्ति चक्र समेत सभी पैसा लेकर घर से चली गई हैं. शहीद कैप्टन की मां मंजू सिंह ने कहा कि स्मृति अब अपने माता-पिता के साथ रह रही हैं, उन्हें उतना दर्द नहीं है, जितना मुझे है. पिता रवि प्रताप सिंह ने बताया कि स्मृति के माता-पिता कह रहे हैं कि वह अपना अधिकार लेकर गई हैं.


एबीपी न्यूज से एक्सक्लूसिव बात करते हुए कैप्टन अंशुमान के पिता रवि प्रताप सिंह से जब पूछा गया कि कीर्ति चक्र आपको नहीं मिली है. इस पर उन्होंने कहा कि हमें इंश्योरेंस और राज्य सरकार की तरफ से अनुग्रह राशि मिली है. स्मृति को 50 लाख रुपये मिले हैं, जबकि हमें 15 लाख रुपये मिले. मेरे बेटे की धरोहरें भी मेरे साथ हैं. उसकी गाथाएं भी हैं. इसलिए मैं कह सकता हूं कि कहीं न कहीं मेरे हाथ तो आंशिक रूप से खाली हैं. वो पूर्ण रूप से खाली नहीं हैं. 


स्मृति भी रखें अपना पक्ष: कैप्टन अंशुमान के पिता


रवि प्रताप सिंह ने कहा कि पब्लिक डोमेन में जो बातें आ रही हैं. मैं उसे लेकर चाहता हूं कि स्मृति भी अपना पक्ष रखें. वह सामाजिक रूप से हमारी बहू हैं. मैं तो अपने यहां से भी उनकी शादी करवाने को तैयार था. मगर जिस तरह की चीजें उन्होंने की हैं, वो सभ्य समाज में नहीं किया जाता है. कुछ बातें पब्लिक डोमेन में आ गई हैं, जो बिल्कुल सत्य हैं. स्मृति पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने कैप्टन अंशुमान के शहीद होने के बाद अनुग्रह राशि ली और वह अपने घर चली गईं. 



कीर्ति चक्र छूने भी नहीं दिया गया


शहीद कैप्टन के पिता ने बताया कि दोनों की मुलाकात एनआईटी जालंधर में हुई और फिर शादी हुई. जब हमें बेटे के शहीद होने की खबर मिली तो हम लोग गोरखपुर गए, जहां पार्थिव शरीर पहुंचा था. सभी क्रिया-करम करने के बाद वह हमें छोड़कर चली गईं. कीर्ति चक्र जब मिला तब हमारी मुलाकात हुई, उस समय भी स्मृति ने हमसे बात नहीं की. उन्होंने बताया कि कीर्ति चक्र हमें छूने भी नहीं दिया गया. उन्होंने अब बेटे के एड्रेस को भी चेंज कर दिया है.


मंजू सिंह ने कहा कि स्मृति सिंह के साथ हम कैसा व्यवहार करते थे, ये उन्हें खुद ही बताना चाहिए. मुझे कीर्ति चक्र बस राष्ट्रपति भवन में ही छूने का मौका मिला. मैं चाहती थी कि खोलकर देख लूं कि वह कैसा होता है. हम नहीं चाहते थे कि ये बातें मीडिया में आएं, लेकिन अब मीडिया के जरिए कम से कम उन्हें ये मालूम तो चल रहा है कि हम लोगों को कितना ज्यादा दुख है. 


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