नई दिल्ली: आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत की कूटनीतिक कोशिशों पर आज एक बड़ी कामयाबी की मुहर लगने की उम्मीद है. भारत में संसद पर हमले से लेकर पुलवामा में 40 सीआरपीएफ जवानों को आतंकी कार्रवाई में मौत के घाट पर उतारने के लिए जिम्मेदार जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर का नाम संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में शुमार हो सकता है. माना जा रहा है कि मसूद अजहर का नाम यूएन आतंकियों की सूची में डालने के प्रस्ताव पर चीन 13 मार्च को लगाए गए अपने तकनीकी होल्ड को वापस ले लेगा. इस बाबत चीन बुधवार सुबह न्यूयॉर्क में सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध संबंधी 1267 समिति में अपने निर्णय की जानकारी दे देगा.


उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक चीन ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि सुरक्षा परिषद की 1267 समिति के सामने वो इस मामले पर अपनी रोक को खत्म करने को राजी है. चीनी विदेश मंत्रालय प्रवक्ता ने इसका संकेत देते हुए मंगलवार को दिए एक बयान में कहा कि मामले पर 1267 समिति में चल रही बातचीत में सकारात्मक प्रगति हुई है. चीनी प्रवक्ता का जोर यह कहने पर भी था कि मसूद अजहर को सूचीबद्ध करने की कोशिशों का चीन समर्थन करता है और इस मामले का समाधान 1267 समिति( प्रतिबंध समिति) के दायरे में होना चाहिए.


चीन का तकनीकी रोड़ा हटते ही मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधित सूची में डाल दिया जाएगा. इस मुहिम के मौजूदा प्रस्तावक भले ही अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन हों लेकिन यह भारत के कूटनीतिक प्रयासों की बड़ी जीत होगी. भारत इसके लिए लगातार कोशिश कर रहा था. पठानकोट एअरबेस पर हुए आतंकी हमले और उड़ी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमलों के बाद भी भारत ने इसकी कोशिश की थी. मगर हर बार चीन इसमें तकनीकी पेंच लगाते हुए रोड़ा अटकाता रहा.


चीनी रुख में बदलाव के सबब
मार्च 2019 में चीन के रोड़ा अटकाने के बाद से ही बीजिंग को राजी करने के लिए कोशिशें चल रही थी. इसमें जहां अमेरिका समेत कुछ मुल्क दबाव बनाए हुए थे वहीं भारत ने चीन के साथ संवाद का गलियारा भी खोल रखा था. बीते दिनों 21-22 अप्रैल को विदेश सचिव विजय गोखले ने अपनी चीन यात्रा के दौरान इस मु्द्दे पर समर्थन का आग्रह दोहराया था. माना जा रहा है कि बेल्ट एंड रोड सम्मेलन की बैठक के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की चीन यात्रा के दौरान उन्हें भी इस बात के संकेत मिल गए थे कि बीजिंग अब इस मुद्दे पर मसूद अजहर का बचाव नहीं कर पाएगा.


हालांकि सूत्र बताते हैं कि चीन ने इस बाबत फैसले को जून तक टालना चाहता था. जाहिर है इसके पीछे उसकी एक नजर भारत में चल रही चुनावी कवायद को लेकर भी थी. मगर, उसकी दलीलों को सुरक्षा परिषद में समर्थन नहीं मिल पाया. अमेरिका समेत कई मुल्कों का तर्क था एक आतंकवादी को प्रतिबंधित सूची में डालने का मामला तकनीकी है और इसका निर्णय राजनीतिक आधार पर नहीं होना चाहिए. ऐसे में चीन अपने तीकनीकी रोक पर जल्द निर्णय करे अन्यथा मामले को फैसले के लिए सुरक्षा परिषद में बहस के लिए रखा जाए. स्वाभाविक है कि सुरक्षा परिषद के बहुमत ने चीन के लिए मामले को टालने की गुंजाइश कम कर दी थी.


दरअसल, फरवरी 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन ने इस हमले के लिए जिम्मेदार मसूद अजहर का नाम यूएन आतंकियों की सूची में डालने का प्रस्ताव दिया था. मगर, लगातार चौथी बार चीन ने इस प्रस्ताव पर तकनीकी रोक का ब्रेक लगाते हुए मसूद अजहर के साथ-साथ उसे पालपोस रहे पाकिस्तान को राहत दे दी थी.


हालांकि इस बार प्रस्ताव की अगुवाई कर रहे अमेरिका, फ्रांस समेत सुरक्षा परिषद के अन्य स्थाई सदस्यों ने मामले में अड़ंगा लगाते आ रही चीन को सबक सिखाने का मन बना लिया था. यही वजह थी कि अमेरिका ने कुछ ही दिनों के भीतर यह साफ कर दिया कि अगर चीन मसूद अजहर को लेकर लगाया अपनी तकनीकी रोक नहीं हटाता तो वो मामले को सुरक्षा परिषद में खुली बहस के लिए ले जाएगा. जाहिर है अमेरिका के इस ऐलान और उसे अन्य मुल्कों के समर्थन ने चीन की परेशानी बढ़ा दी. एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चीन के लिए तकनीकी रोक के सहारे इस मुद्दे को टालना तो आसान है लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक आतंकवादी की खुले मंच पर हिमायत करना काफी कठिन. स्वाभाविक है कि चीन ऐसी स्थिति से बचना चाहेगा.


जानकारों के मुताबिक चीन के रवैये में इस बदलाव की बड़ी वजह आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर बढ़ता अंतरराष्ट्रीय दबाव और वहां फंसे अपने निवेश की फिक्र भी है. आतंकी ढांचे को लेकर पाकिस्तान बीते कई महीनों से संयुक्त राष्ट्र संस्था FATF(फाइलेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) की निगरानी में है. एफएटीएफ ने पाकिस्तान को जून 2018 में पाकिस्तान को इस हिदायदत के साथ ग्रे वॉचलिस्ट में डाला था कि अगर उसने आतंक की नकेल नहीं कसी तो उसे अक्टूबर 2019 में काली सूची में डाल दिया जाएगा. अमेरिका की मौजूदा अध्यक्षता वाले एफएटीएफ की जून 2019 में बैठक होनी है जिसमें पाकिस्तान की तरफ से आतंकवाद के खिलाफ उठाए गए कदमों की समीक्षा की जाएगी. सूत्रों के मुताबिक एफएटीएफ के उपाध्यक्ष की कुर्सी संभाल रहा चीन कतई नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान को काली सूची में डाला जाए जहां उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का करोड़ों डॉलर का निवेश है. पाकिस्तान के काली सूची में जाने पर यह निवेश सांसत में आ सकता है.


सूत्र बताते हैं कि मसूद अजहर को लेकर यूएन में चीन पर दबाव की एक वजह उन अफ्रीकी, एशियाई और यूरोपीय मुल्कों का रुख भी है जो सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं. सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्यों की फेहरिस्त में अफ्रीकी देश कोट डिवोर भी है जहां चीन का काफी निवेश है. मगर, मार्च 2016 में अल-कायदा प्रायोजित आतंकी हमला झेल चुके इस छोटे अफ्रीकी मुल्क के लिए इस वैश्विक आतंकी संगठन से जुड़े जैश-ए-मोहम्मद सरगना के लिए किसी तरह की रियायत देना मुश्कल था. कुछ ऐस ही स्थिति सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य इंडोनेशिया की भी है जहां मई 2018 में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे.


क्या होगा असर?
पाकिस्तान में आतंकियों के रसूख को देखते हुए इस बात की उम्मीद मुश्किल है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित सूची में नाम जोड़े जाने के बाद उसके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई होगी. पहले से प्रतिबंधित सूची में मौजूद हाफिज सईद जैसे आतंकी सरगना को हासिल सहूलियतों को देखते हुए इसका अंदाजा भी लगाया जा सकता है. हालांकि आतंकवाद को लेकर बढ़ते दबाव और एफएटीफ ब्लैकलिस्टिंग की लटकती तलवार के बीच इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि दिखावे के लिए ही सही मगर मसूद अजहर पर नकेल कसना पाकिस्तान की मजबूरी जरूर होगी.