नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज अयोध्या मामले में अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कुल 1045 पन्नों का है. 929 पन्नों का फैसला सारे जजों ने लिखा है और सभी 5 जज इस पर एकमत हैं. लेकिन एक जज ऐसे भी थे जिन्होंने अपना 116 पन्नों का फैसला अलग से दिया है. इसमें उन्होंने ये साबित किया है कि जिस जगह पर विवादित ढांचा था, वो भगवान राम का जन्मस्थान था. ये जज कौन हैं, उनका नाम इस फैसले में नहीं लिखा गया है. उन्होंने बहुत से तर्क दिए हैं.
सबसे पहले 19 वें पन्ने पर लिखा है कि हिंदू शास्त्रों में अयोध्या को एक पवित्र नगर बताया गया है. बृहद धर्मोत्तर पुराण के एक श्लोक में अयोध्या को सात पवित्र शहरों में से एक बताया गया है.
अयोध्या मथुरा माया काशी काची ह्मवन्तिका ।।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ।
यानी अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जैन) और द्वारावती (द्वारका) सात सबसे पवित्र नगर हैं.
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विवाद सिर्फ इस बात पर था कि विवादित स्थान पर श्रीराम का जन्म हुआ था या नहीं? अयोध्या में राम का जन्म हुआ था, इस बात पर कोई विवाद नहीं था. राम हिंदुओं की आस्था का विषय हैं, ये सबको पता है. इसलिए मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश वकीलों ने भी राम के अयोध्या में जन्म लेने पर कोई आपत्ति नहीं की. श्री राम जन्म के जन्मस्थान को साबित करने के लिए वाल्मीकि रामयाण के श्लोक भी जजमेंट
में लिखे गए हैं. पेज नंबर 32 पर वाल्मीकि रामयाण के बालकांड का एक श्लोक लिखा है;
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् ।
कौसल्याजनयद् रामं दिव्यलक्षणसंयुतम् ॥
यानी कौशल्या ने पूरी दुनिया के ईश्वर माने जाने वाले एक पुत्र को जन्म दिया. उसकी सब लोग प्रशंसा करते थे. उनके पास दिव्य लक्षण थे.
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लेकिन वाल्मीकि रामायण में भी ये बात साबित नहीं होती है कि श्रीराम का जन्म हुआ कहां था. बस ये लिखा है कि राम का जन्म अयोध्या में राजा दशरथ के महल में हुआ था. फैसले में स्कंद पुराण के अयोध्या महात्म्य का भी जिक्र किया गया है. अयोध्या महात्म्य के 10वें अध्याय में 87 श्लोक हैं. इनमें से कुछ श्लोकों में राम जन्मस्थान का जिक्र है.
तस्मात स्थानत ऐशाने रामजन्म प्रवतर्ते।
जन्मस्थानमिदं प्रोक्तं मोक्षादिफलसाधनम।।18।।
विघ्नेश्वरात पूर्वर्भागे वासिष्ठादुत्तरे तथा।
लौमशात् पश्चिमे भागे जन्मस्थानं ततः स्मृतम॥19॥
यानी उस जगह के पूर्वोत्तर में राम जन्म का स्थान है. जन्मस्थान के बारे में कहा जाता है कि वो मोक्षप्राप्ति का केन्द्र है. ये कहा जाता है कि जन्मस्थान विघ्नेश्वर के पूर्व दिशा में, वशिष्ठ के उत्तर में और लौमसा के पश्चिम में है.
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65वें पन्ने पर अदालत ने लिखा है कि भगवान राम के जन्मस्थान को लेकर हिंदुओं की आस्था और विश्वास वाल्मीकि रामायण और स्कंद पुराण जैसी पवित्र धार्मिक किताबों के आधार पर है और ये आस्था और विश्वास आधारहीन नहीं माना जा सकता है. इसलिए ये पाया जाता है कि सन् 1528 से पहले के समय में ऐसी पर्याप्त लिखित सामग्री उपलब्ध है, जिससे हिंदुओं का ये विश्वास है कि राम जन्मभूमि की मौजूदा जगह ही भगवान राम का जन्मस्थान है.
इसके बाद राम जन्मस्थान को साबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जज ने 1528 से 31 अक्टूबर 1858 के वक्त का जिक्र किया है. और इसमें सबसे पहले जिक्र होता है गोस्वामी तुलसीदास का, जिन्होंने 1574-75 में रामचरितमानस की रचना की थी. अदालत ने अपने फैसले में लिखा है कि वाल्मीकि रामायण की तरह ही रामचरितमानस का भी हिंदुओं में अपना अलग स्थान है. रामचरित्र मानस के बालकांड का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि;
तिन्ह कें गृह अवतरहउँ जाई। रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई ।।
नारद बचन सत्य सब करिहउँ। परम सक्ति समेत अवतरिहउँ ।।
यानी उन्हीं के घर जाकर मैं रघुकुल में चार श्रेष्ठ भाइयों के रूप में अवतार लूंगा.
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फैसले के 77वें पन्ने पर आइने अकबरी का जिक्र
रामचरितमानस का जिक्र है तो फैसले के 77वें पन्ने पर आइने अकबरी का जिक्र है. आइने अकबरी 16वीं शताब्दी में अबुल-फजल अल्लामी ने लिखी थी, जो अकबर का ही एक वजीर था. आइने अकबरी में अवध यानी अयोध्या के बारे में विस्तार से लिखा हुआ है. आइने अकबरी के वॉल्यूम 2 के पेज नंबर 182 पर लिखा है- अवध (अयोध्या) भारत के सबसे बड़ी नगरों में से एक है. पुराने वक्त में इसकी लंबाई 148 कोस और चौड़ाई 36 कोस थी. ये रामचंद्र का घर है. इसी किताब में रामचंद्र जी से जुड़ी और भी बातें लिखी गई हैं. उन्हें विष्णु का अवतार बताया गया है. लिखा है कि वो त्रेता युग में चैत्र महीने के 9 को राजा दशरथ और उनकी पत्नी के घर अयोध्या नगर में जन्मे थे.
अलग अलग यात्रियों और इतिहासकारों का भी जिक्र
राम के जन्मस्थान को साबित करने के लिए उस दौर में भारत की यात्रा करने वाले अलग अलग यात्रियों और इतिहासकारों का भी जिक्र किया गया है. फैसले के 81वें पन्ने पर फादर जोसेफ टिफेनथेलर का भी जिक्र है, जो 1766 से 1771 के बीच भारत आए थे. उन्होंने भारत के ऐतिहासिक और भौगोलिक विवरण पर लिखा था. अवध के बारे में उन्होंने क्या लिखा, इसका जिक्र फैसले में है.
बादशाह औरंगजेब ने रामकोट नाम के किले को ढहाया था और वहां पर तीन गुंबदों की मस्जिद बनाई थी. कुछ लोग ये भी कहते हैं कि ये बाबर ने बनाई थी. इसी किताब में एक वेदी का जिक्र है, लिखा है कि जमीन से 5 इंज ऊपर एक वर्गाकार डिब्बा दिखता है, जिसकी लंबाई 5 एल्स और चौड़ाई 4 एल्स के करीब थी. बता दें कि एल्स एक मापने की एक पुरानी अंग्रेजी का पैमाना है. एक एल्स 45 इंच के बराबर होता है. इस किताब में आगे लिखा है कि हिंदू इसे वेदी कहते थे. और इसकी वजह ये है कि एक बार यहां पर राम का जन्म हुआ था.
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मिर्जा जान की एक किताब हदीसे सेहबा का जिक्र
फैसले के इस हिस्से में उस दौरान की और किताबों का जिक्र किया गया है. पेज नंबर 85 पर मिर्जा जान की एक किताब हदीसे सेहबा का जिक्र है, जो 1856 में लिखी गई थी. इस किताब में साफ तौर पर लिखा है- ये जगह भगवान राम की हुआ करती थी. इस जगह पर हिंदुओं का बहुत बड़ा मंदिर हुआ करता था, लेकिन उसे तोड़कर यहां बड़ी मस्जिद बनाई गई. 923 हिजरी में बाबर ने यहां मस्जिद बनवाई.
इसके बाद फैसले में 1858 से 1949 के समय का जिक्र है. अंग्रेजों ने 1 नवंबर 1858 को यहां शासन स्थापित किया था. इसके बाद ब्रिटिश सरकार की सरकारी रिपोर्टों और दूसरे दस्तावेजों में इस मस्जिद को हमेशा मस्जिद जन्म स्थान लिखा गया. जिसका मतलब ये हुआ कि उस वक्त सरकारी अधिकारियों ने हमेशा ये माना कि मस्जिद जो जन्म स्थान पर बनी है.
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इसके बाद पेज नंबर 88 पर 1870 में अयोध्या और फैजाबाद के कमिश्नर पी. कारनेगी के एक संक्षिप्त विवरण का जिक्र है, जिसमें उन्होंने कहा है कि अयोध्या हिंदुओं के लिए वो है, जो मक्का मुसलमानों के लिए और जेरुसलम यहूदियों के लिए है. और फैसले के अंत में यानी पेज नंबर 116 पर लिखा है कि निष्कर्ष ये निकाला जाता है कि मस्जिद के निर्माण से पहले से और बाद में हमेशा हिंदुओं की आस्था और विश्वास ये रहा है कि भगवान राम का जन्मस्थान वही जगह है, जहां बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ. और ये आस्था और विश्वास लिखित और मौखिक सबूतों के आधार पर साबित की जाती है.
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