(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Mathura: 20 रुपये के लिए लड़ी रेलवे से 22 साल तक लड़ाई, मेहनत रंग लाई, अब रेलवे को करनी होगी भरपाई
Mathura Man Defeated Railways: वकील तुंगनाथ चतुर्वेदी ने 20 रुपये के लिए भारतीय रेलवे के खिलाफ केस लड़ा और उनकी मेहनत रंग लाई. उनकी जीत हुई.
Mathura Man Victory Over Railways: सही बात के लिए उठ खड़े होने का जज्बा हो तो जीत पक्की होती है. कुछ ऐसी ही जीत उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मथुरा (Mathura ) के रहने वाले एक वकील तुंगनाथ चतुर्वेदी ( Tunganath Chaturvedi) नामक एक वकील की हुई है. उन्होंने 20 रुपये के लिए भारतीय रेलवे के खिलाफ केस लड़ा और उनकी मेहनत रंग लाई. आखिरकार 22 साल बाद उन्होंने रेलवे के खिलाफ ये केस जीत लिया है.
क्या था 20 रुपये का मामला ?
मथुरा के वकील तुंगनाथ चतुर्वेदी से रेलवे के बुकिंग क्लर्क ने 20 रुपये अधिक लिए थे. इस मामले में उन्होंने उपभोक्ता फोरम (Consumer Forum) में केस डाला था. ये मामला साल 1999 का है. तब 1999 में मथुरा के गली पीरपंच के रहने वाले तुंगनाथ चतुर्वेदी 25 दिसंबर को मथुरा कैंट स्टेशन (Mathura Cantonment Railway Station) पहुंचे थे. उन्हें यहां से मुरादाबाद जाना था. इस दौरान उन्होंने बुकिंग क्लर्क से दो टिकट देने को कहा, लेकिन 70 रुपये की इन टिकटों के 90 रुपये चार्ज किए. मथुरा कैंट स्टेशन से मुरादाबाद (Moradabad) जाने के लिए एक टिकट तब 35 रुपये की हुआ करती थी.
बुकिंग क्लर्क ने मांगने पर भी नहीं लौटाए बचे पैसे
35 रुपये एक टिकट होने की वजह से तुंगनाथ चतुर्वेदी ने बुकिंग क्लर्क से 20 रुपये वापस देने को कहा, लेकिन उसने पैसे वापस नहीं लौटाए. इस 20 रुपये को लेकर दोनों के बीच खासी बहस हुई, लेकिन इसी बीच पैसेंजर चतुर्वेदी की ट्रेन आ गई और वह मुरादाबाद के लिए चले गए. लेकिन उनके दिमाग में इस अन्याय की बात घूमती रही. सफर से वापस आते ही उन्होंने रेलवे की इस अवैध वसूली पर मथुरा की जिला उपभोक्ता फोरम में केस डाल दिया. यह केस उन्होंने जनरल मैनेजर नॉर्थ ईस्ट रेलवे गोरखपुर (North East Railways Gorakhpur) और मथुरा छावनी रेलवे स्टेशन (Station Master) के विंडो बुकिंग क्लर्क के खिलाफ डाला. इसमें उन्होंने सरकार को भी पार्टी बनाया.
22 साल की मेहनत रंग लाई
वकील तुंगनाथ चतुर्वेदी का कहना है कि 22 साल की ये लड़ाई उन्होंने 20 रुपये के लिए नहीं बल्कि सार्वजनिक हितों को ध्यान में रखते लड़ी थी. वह कहते हैं कि भले ही देर से ही सही फैसला आया और वो इससे पूरी तरह से संतुष्ट हैं. आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और उपभोक्ता फोरम ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया. इस फैसले में रेलवे को 20 रुपये हर साल के हिसाब 12 फीसदी ब्याज सहित मानसिक, आर्थिक और केस में हुए खर्च के लिए 15 हजार रुपये जुर्माने देने का आदेश दिया गया. रेलवे को वकील चतुर्वेदी को ये पैसा 30 दिन के अंदर देना होगा. अगर रेलवे ऐसा नहीं करता तो उसे हर साल के हिसाब से 20 रुपये पर 15 फीसदी ब्याज देना होगा.
ये भी पढ़ेंः