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Explainer: मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद सर्वे से जुड़ा पूरा विवाद क्या है, श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास क्यों है डर का माहौल

Shahi Eidgah Mathura: मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि के आस-पास इन दिनों एक अजीब सा तनाव घेरे हुए है. मामला 350 साल पुराने विवाद से जुड़ा है जो अदालत के एक आदेश के बाद फिर से चर्चा में है.

Shrikrishna Janmabhoomi: मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के दर्शन के लिए भारत ही नहीं, पूरी दुनिया से श्रद्धालु आते हैं. इन श्रद्धालुओं के चलते जन्मभूमि के आस-पास एक अच्छा खासा बाजार बस गया है. हमेशा गुलजार रहने वाले इस बाजार के व्यापारी इस समय डरे हुए हैं. इस डर की वजह मथुरा जिला अदालत का वो आदेश हैं जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि से लगी शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे कराने को कहा गया है.

दिसम्बर 2022 में सिविल जज सीनियर डिवीजन (थर्ड) सोनिका वर्मा ने एक आदेश में शाही ईदगाह मस्जिद का अमीनी सर्वे कराने का निर्देश दिया था. मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर एक याचिका दायर की गई थी जिसमें मस्जिद को दूसरी जगह शिफ्ट करने की मांग की गई थी. हिंदू पक्ष का दावा है कि इस जगह पहले मंदिर हुआ करता था, जिस पर कब्जा करके मस्जिद बना दी गई. कोर्ट ने इसी याचिका पर जगह का सर्वे करने का आदेश दिया था. आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने अदालत का दरवाजा खटखटाया जिसके बाद सर्वे के आदेश को होल्ड पर रखा गया है.

350 साल पुराना विवाद

ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना का है. इस जमीन के 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मभूमि बनी है. वहीं, 2.37 एकड़ हिस्सा शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. हिंदू पक्ष का दावा है ये पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि की है. 

विवाद की शुरुआत लगभग 350 साल पहले हुई थी, जब दिल्ली की गद्दी पर औरंगजेब का शासन हुआ करता था. 1670 में औरंगजेब ने मथुरा की श्रीकृष्ण जन्म स्थान को तोड़ने का आदेश जारी किया था. इसके एक साल पहले ही काशी के मंदिर को तोड़ा गया था. बादशाह के आदेश पर अमल हुआ और मंदिर को धराशायी कर दिया गया. इसके बाद इसी जमीन पर शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई. 

औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़े जाने की पुष्टि इतालवी यात्री निकोलस मनूची के लेख से भी होती है. मनूची मुगल दरबार में आया था. यात्रा के बारे में उसने अपनी किताब में जानकारी दी है. मुगलों के इतिहास का जिक्र करते हुए उसने यह भी बताया कि रमजान के महीने में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को नष्ट किया गया.

मराठों ने वापस ली जमीन

मस्जिद बनने के बाद ये जमीन मुसलमानों के हाथ में चली गई और करीब 100 साल तक यहां हिंदुओं का प्रवेश वर्जित रहा, जब तक मुगलों और मराठों में युद्ध नहीं हुआ. 1770 के मुगल-मराठा युद्ध में बाजी मराठों के हाथ लगी और उन्होंने यहां फिर से मंदिर बनवाया. उस समय तक यह केशवदेव मंदिर हुआ करता था. 

मराठे मंदिर बनवाकर चले गए. मंदिर धीरे-धीरे कमजोर होता रहा और एक भूकंप की चपेट आकर गिर गया. इसी बीच 19वीं सदी में अंग्रेज मथुरा पहुंचे और 1815 में इस जमीन को नीलाम कर दिया. काशी के राजा ने जमीन को खरीद लिया.

राजा की इच्छा यहां मंदिर बनवाने की थी लेकिन मंदिर बन न सका. करीब 100 साल तक जगह ऐसे ही खाली रही और इसे लेकर विवाद शुरू हो गया. मुस्लिम पक्ष का कहना था कि इस जमीन में मुस्लिम पक्ष का भी हिस्सा था.

ट्रस्ट के पास आई जमीन

1944 में महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ जब ये जमीन मशहूर उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने खरीद ली. सौदा राजा पटनीमल के वारिसों के साथ हुआ था. इस दौरान देश आजाद हुआ और 1951 से श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना जिसे ये जमीन दे दी गई. 

ट्रस्ट ने चंदे के पैसे से 1953 में जमीन पर मंदिर का निर्माण शुरू किया जो 1958 तक चलता रहा. 1958 में एक नई संस्था बनी, जिसका नाम था श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान. इसी संस्था ने 1968 में मुस्लिम पक्ष के साथ एक समझौता किया. इसमें कहा गया कि जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों रहेंगे. यहां ध्यान देने की बात ये है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने ये समझौता किया था. इस संस्था का जन्मभूमि पर कोई कानूनी दावा नहीं है. श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट का कहना है कि वह इस समझौते को नहीं मानता. 

'काशी-मथुरा बाकी है'

मंदिर-मस्जिद को लेकर दावे तो काफी समय से किए जा रहे थे लेकिन अयोध्या पर फैसले के बाद इस मामले को हवा मिलनी शुरू हुई. अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया, उसके बाद से ही काशी और मथुरा को लेकर आवाज उठनी शुरू हो गई. 'अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा बाकी है', इस नारे को बार-बार दोहराया गया. काशी में ज्ञानवापी को लेकर याचिका दायर की गई जिसके बाद वहां सर्वे का आदेश दिया गया. इसके बाद मथुरा को लेकर भी हलचल तेज हुई. दिसम्बर 2022 में वो दिन आ गया जब कोर्ट ने पहली बार सर्वे का आदेश दिया.

डरने की वजह और भी है

ऐसा नहीं है कि सिर्फ कोर्ट के आदेश से ही लोग डरे हुए हैं. डरने की और वजहें भी हैं. दो साल पहले काशी में कॉरिडोर को बनाए जाने को लेकर जब जोर-शोर से काम चल रहा था तो उसके साथ ही विरोध के स्वर भी उठ रहे थे कि यहां से स्थानीय दुकानदारों को हटा दिया जा रहा है. मथुरा में भी ऐसा ही डर है.

योगी सरकार ने काशी की तरह ही मथुरा के वृंदावन में भी बांके बिहारी कॉरिडोर बनाने का एलान किया है. इस फैसले का विरोध भी शुरू हो गया है. विरोध करने वालों में पुजारी से लेकर व्यापारी तक सभी हैं. श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास रहने वाले व्यापारियों में भी डर है कि कॉरिडोर का काम शुरू हुआ तो आज नहीं कल, उनका भी नंबर आना है.

यह भी पढ़ें- Maulana Madani: 'BJP-RSS से कोई अदावत नहीं', जमीयत चीफ मदनी ने हिंदुत्व-पाकिस्तान-इस्लाम पर कही ये बातें

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