Maulana Arshad Madani on Elections 2024: जमीयत उलेमा ए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बुधवार (3 जुलाई) को बड़ा दावा किया. मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे अल्पसंख्यकों खासतौर से मुसलमानों की सूझबूझ के साथ की गई वोटिंग के कारण संभव हुए हैं.


मौलाना अरशद मदनी ने कहा, ''चुनाव के परिणामों ने सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति को खारिज कर दिया है और यह अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की सूझबूझ के साथ की गई वोटिंग के कारण संभव हुआ. इसे स्वीकार किया जाना चाहिए कि अगर मतदाताओं ने सूझबोझ से वोटिंग न की होती तो शायद परिणाम किसी हद तक उसके विपरीत होते.''


क्या बोले मौलाना अरशद मदनी


जमीयत उलेमा ए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा, ''देश के अल्पसंख्यकों, दलितों, दबे कुचले वर्गों और विशेष रूप से मुसलमानों ने संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए इंडिया गठबंधन को वोट दिया, इसलिए अब यह उन पार्टियों विशेषकर कांग्रेस का यह नैतिक कर्तव्य है कि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करने के साथ-साथ वो मतदाताओं विशेषकर मुसलमानों के अधिकारों की लड़ाई के लिए भी आगे आएं, ताकि उन उत्पीड़ितों का जो भरोसा इन दलों पर पुनः बहाल हुआ है, वो बाकी रह सके.'' 


'अखिलेश और राहुल गांधी पर जताया जनता ने भरोसा'


उन्होंने यह भी कहा कि हालिया संसदीय चुनाव के दौरान गठबंधन के लोग विशेष रूप से राहुल गांधी और अखिलेश यादव अपनी धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा पर मजबूती के साथ खड़े रहे और यही कारण है कि धर्मनिरपेक्ष विचारों वाले मतदाताओं ने उन पर विश्वास किया और खुल कर उनका समर्थन किया. 2014 के बाद से मुस्लिम वोट को निष्प्रभावी करने और मुसलमानों को स्थितिहीन कर देने के योजनाबद्ध प्रयास होते रहे हैं और जानबूझकर पैदा की जाने वाली सांप्रदायिक लामबंदी ने सांप्रदायिक तत्वों को इस भ्रम में डाल दिया था कि अब मुस्लिम वोटों का कोई महत्व नहीं रह गया है.


अरशद मदनी ने कहा कि शायद यही कारण है कि राजनीतिक परिदृश्य पर भी मुसलमान कहीं नज़र नहीं आ रहा था, लेकिन भारत के पुराने इतिहास को जीवित करने के लिए इस चुनाव में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों ने एकजुट होकर धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संविधान को जिंदा रखने के लिए मतदान किया. इसलिए संप्रदायिक मीडिया और विश्लेषक भी अब यह कहने पर विवश हो गए कि मुसलमानों ने एनडीए को हरा दिया.


'देशभक्त है भारत का मुसलमान'


मौलाना मदनी ने कहा कि धार्मिक हिंसा को जिस तरह बढ़ावा मिला और जिस तरह के सांप्रदायिक लामबंदी की गई इसमें मुसलमानों को अपने पास बिठाना तो दूर की बात है, उनका नाम लेने से भी वह राजनीतिक दल बच रही थे, जो खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं. मगर उसके बावजूद सांप्रदायिक राजनीति द्वारा समाज और राजनीति में मुसलमानों को अछूत बना देने के लिए शासकों द्वारा हर वह प्रयास किया गया, जो किया जा सकता था. 


इन सबके बावजूद हालिया चुनाव में संविधान को बचाने, नफरत को मिटाने और मुहब्बत को बढ़ावा देने के लिए सांप्रदायिकता और नफरत के खिलाफ वोट देकर मुसलमानों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वो एक देशभक्त नागरिक हैं और देश की एकता और सुरक्षा उन्हें अपनी जान से अधिक प्रिय है. 


मुस्लिमों के कम प्रतिनिधित्व पर जताई चिंता


संसद और विधानसभाओं में मुसलमानों के कम होते प्रतिनिधित्व पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि इसके पीछे जहां अन्य कारण हैं, वहीं एक बड़ा कारण मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों का सुरक्षित किया जाना भी है. उन्होंने कहा कि एक बड़ी साजिश के तहत जब भी निर्वाचन क्षेत्रों का नया परिसीमन होता है तो मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को ढूंढकर उन्हें एससी, एसटी के लिए सुरक्षित कर दिया जाता है. 


उन्होंने कहा कि यह शुरू से हो रहा और 2006 मैं डॉक्टर रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने अपनी सिफारिशों में इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया है. कमीशन ने इन क्षेत्रों पर पुनःविचार का मश्वरा भी दिया था, ताकि संसद और विधानसभाओं में मुस्लमानों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जा सके, मगर अन्य सिफारिशों की तरह उसे भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया. 


'मुस्लिमों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़े विपक्ष'


मौलाना मदनी ने एक बार फिर कहा कि अब समय आ गया है कि धर्मनिरपेक्ष पार्टियां मुसलमानों के अधिकारों को लेकर संसद के अंदर और संसद के बाहर लड़ाई लड़ें. इस के बगैर संविधान और लोकतंत्र की सर्वोच्चता स्थापित नहीं की जा सकती, बल्कि संविधान के सिद्धांतों पर अमल करके और इसके दिशानिर्देशों को ईमानदारी के साथ लागू करके ही लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष को सुरक्षित रखा जा रहा है.


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