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मौलाना आज़ाद के पौत्र ने भी की जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग, सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

याचिका में कहा गया है कि भारत की जितनी आबादी सरकारी रिकॉर्ड में बताई जाती है, उससे बहुत अधिक है. एक अनुमान के मुताबिक यह 150 करोड़ से भी ज़्यादा हो गई है.

नई दिल्लीः हैदराबाद की मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के कुलपति फिरोज़ बख्त अहमद ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. उर्दू भाषा के विद्वान फिरोज़ बख्त देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के बड़े भाई के पौत्र हैं. याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट केंद्र सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रभावी नियम बनाने के लिए कहे. दो बच्चों की नीति अपनाने पर विचार हो. इसके तहत दो से अधिक बच्चे वालों को सरकारी नौकरी, सहायता और सब्सिडी न दी जाए. उन्हें मताधिकार से भी वंचित करने पर विचार हो.

याचिका में कहा गया है कि देश की बहुत सारी समस्याओं की मुख्य वजह आबादी है. टैक्स चुकाने वाले अधिकतर लोग 2 बच्चों की नीति का खुद ही पालन करते हैं. लेकिन जिन्हें सब्सिडी लेनी होती है, वह ऐसा नहीं करते. भारत की जितनी आबादी सरकारी रिकॉर्ड में बताई जाती है, उससे बहुत अधिक है. एक अनुमान के मुताबिक यह 150 करोड़ से भी ज़्यादा हो गई है. इसका नतीजा है कि भारत विकास के सभी पैमानों पर दुनिया में पिछड़ा नज़र आता है. भूखे लोगों की संख्या के हिसाब से बने ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 102वें नंबर पर है. ग्लोबल हैप्पीनेस (खुशहाली) इंडेक्स में भारत का नंबर 133वां है.

फिरोज़ बख्त की याचिका में यह भी कहा गया है कि 1976 में किए गए संविधान के 42वें संशोधन में जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने का अधिकार सरकार को दिया गया था. केंद्र या राज्य सरकार, दोनों इस पर कानून बना सकते हैं. लेकिन कोई भी ऐसा नहीं करता है. 2002 में पूर्व CJI एम एम वेंकटचलैया के नेतृत्व में बने संविधान समीक्षा आयोग ने भी संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 47A जोड़ने की सिफारिश की थी. इसमें आबादी पर नियंत्रण की कोशिश को सरकार का दायित्व बताया जाना था. लेकिन इस सुझाव को संविधान में जगह नहीं मिली.

इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में वकील और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पहले से लंबित है. इसमें कहा गया है कि ज़्यादा आबादी के चलते लोगों को आहार, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ रहा है. यह सीधे-सीधे सम्मान के साथ जीवन जीने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. आबादी पर नियंत्रण पाने से लोगों के कल्याण के लिए बनी तमाम सरकारी योजनाओं को लागू करना आसान हो जाएगा. इसके बावजूद सरकारें जनसंख्या नियंत्रण का कोई कानून नहीं बनाती है.

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