Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिकाएं दाखिल होने का सिलसिला जारी है. अब हैदराबाद (Hyderabad) की मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (Maulana Azad National Urdu University) के कुलपति फिरोज़ बख्त अहमद (Firoz Bakht Ahmed) ने इस मसले पर याचिका दाखिल की है. उर्दू भाषा के विद्वान फिरोज़ बख्त देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद (Maulana Abul Kalam Azad) के बड़े भाई के पौत्र हैं. याचिका में कहा गया है कि पर्सनल लॉ (Personal Law) महिलाओं से भेदभाव करते हैं. सभी नागरिकों के लिए एक जैसा सिविल कानून देश में एकता को भी बढ़ावा देगा.


फ़िरोज़ बख्त अहमद ने बताया है कि 2019 से इस मसले पर उनकी याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है. उन्होंने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट मामला अपने पास ट्रांसफर कर ले. उनसे पहले 3 और याचिकाकर्ता अंबर ज़ैदी, निगहत अब्बास और दानिश इकबाल भी सुप्रीम कोर्ट से यह मांग कर चुके हैं. सबका यह कहना है कि देश में कई तरह के पर्सनल लॉ की मौजूदगी कानूनी जटिलताओं को जन्म देते हैं. कई मामलों में महिलाओं और बच्चों को उनके संविधान सम्मत अधिकार से भी वंचित करते हैं.


फिरोज़ बख्त की याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में पुरुषों को बहुविवाह की अनुमति दी गई है. पैतृक संपत्ति में लड़कियों का अधिकार लड़कों की तुलना में काफी कम होता है. ईसाई और पारसी समुदाय की भी बहुत सी सिविल व्यवस्थाए आधुनिक समाज की ज़रूरतों से मेल नहीं खातीं. याचिकाकर्ता ने बताया है कि संविधान का अनुच्छेद 14 कानून की नज़र में हर नागरिक की समानता की बात कहता है. अनुच्छेद 44 सरकारों से यह अपेक्षा करता है कि वह सभी नागरिकों के लिए एक समान सिविल कानून बनाएं.  लेकिन अब तक इन बातों की उपेक्षा की गई है.


याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र को समान नागरिक संहिता तैयार करने के लिए कमिटी बनाने का निर्देश दें. ध्यान रहे कि पिछले दिनों इस मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था कि फिलहाल उसका यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का कोई इरादा नहीं है. उसके बाद से अब तक 4 याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट से मामले की सुनवाई अपने पास ट्रांसफर करने की मांग कर चुके हैं.


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