Bharat Ratna And Padma Award: भारत रत्न और पद्म अवॉर्ड देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक है. हालांकि, हमारे देश में कुछ ऐसे व्यक्ति भी रहे हैं या अभी मौजूद हैं, जिन्होंने इतने बड़े सम्मान को स्वीकार करने से मना कर दिया. इन लोगों की आपत्ति या तो सैद्धांतिक रही और या फिर इनकी सोच व्यवस्था से मेल नहीं खाती थी.
1954 में जब इन पुरस्कारों की शुरुआत हुई तो सबसे पहले मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने भारत रत्न को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. उनका कहना था कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के सेवारत सदस्य (या चयन समिति के सदस्य) नियंत्रण और अधिकार की स्थिति में थे और उन्हें इन प्रलोभनों से दूर रहना चाहिए.
HN कुंजरू ने भी नहीं लिया भारत रत्न
भारत रत्न को अस्वीकार करने वाले एक अन्य व्यक्ति एच एन कुंजरू थे, जो राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) के सदस्य थे. इन्होंने संविधान सभी की बहसों में भी पुरस्कार, सम्मान या खिताब देने के विचार का विरोध किया था. उन्होंने मानना था कि पुरस्कार स्वीकार करना उनके लिए उचित नहीं होगा. कुंजरू इंडियन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के संस्थापक थे, जो बाद में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में बदल गया.
हालांकि, एसआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति फजल अली को पद्म विभूषण की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने स्वीकार किया था. न्यायमूर्ति फजल अली को इससे पहले खान साहिब, खान बहादुर और ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (OBE) की उपाधियां मिली थीं. वहीं, एसआरसी के तीसरे सदस्य, केएम पणिक्कर को इनमें से कोई भी सम्मान नहीं दिया गया था, लेकिन वे राष्ट्रपति द्वारा छह साल के कार्यकाल के लिए राज्यसभा में मनोनीत 12 सदस्यों में से थे.
मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार
जब भारत रत्न और पद्म पुरस्कारों की शुरुआत की गई थी तो वे केवल जीवित व्यक्तियों के लिए थे. स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को भारत रत्न का सम्मान देने के लिए 1966 के गणतंत्र दिवस से पहले मरणोपरांत पुरस्कार प्रदान करने का निर्णय लिया गया था. भारत-पाकिस्तान शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद महज एक पखवाड़े पहले उज्बेकिस्तान के ताशकंद में उनका निधन हो गया था. इसके बाद 1992 में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के परिवार ने मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार स्वीकार किया.
महात्मा गांधी को क्यों नहीं दिया गया भारत रत्न?
जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने महात्मा गांधी को भारत रत्न देने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा, "वह भारत रत्न से बहुत ऊपर हैं. लोग उनका बहुत अधिक सम्मान करते हैं... महात्मा गांधी के लिए भारत रत्न क्या है?" बता दं कि गांधी के जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र (UN) अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया है.
इन व्यक्तियों ने किया पद्म पुरस्कार को अस्वीकार
1973 में पद्म विभूषण पुरस्कार को इनकार करने वाले पहले व्यक्ति तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रमुख सचिव पीएन हक्सर थे. उनका मानना था कि वो बस अपना कर्तव्य निभा रहे थे और किसी तरह किए गए काम के लिए पुरस्कार स्वीकार उनके लिए उचित नहीं है. पीएन हक्सर को 1972 में शिमला समझौते के सफल संचालन और भारत-सोवियत मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मान्यता दी गई थी.
CPI (M) ने पद्म विभूषण बनाई दूरी
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य कॉमरेड ईएमएस नंबूदरीपाद और बाद में ज्योति बसु को पद्म विभूषण से इनकार करना पड़ा, क्योंकि उनकी पार्टी ने उन्हें इसे स्वीकार करने की अनुमति नहीं दी थी. सीपीआई के बुद्धदेव भट्टाचार्य को 2013 में पद्म भूषण की पेशकश की गई थी, लेकिन उनकी पार्टी ने फिर से इसे लेने से इनकार कर दिया.
इस सूची में स्वामी रंगनाथानंद का भी नाम आता है. उन्होंने भी पुरस्कार को लेने से मना कर दिया था. उनका मानना था कि मान्यता रामकृष्ण मिशन को एक संस्था के रूप में दी जानी चाहिए, न कि उन्हें एक व्यक्ति के रूप में.
अवॉर्ड लेने से प्रभावित होती है स्वतंत्रता?
2011 में सहकारिता और हस्तशिल्प आंदोलन के पुरोधा और दक्षिण अफ्रीका में भारत के उच्चायुक्त लक्ष्मी चंद जैन के परिवार ने भी पद्म विभूषण के मरणोपरांत सम्मान को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, क्योंकि जैन राजकीय सम्मान स्वीकार करने के खिलाफ थे. पत्रकार निखिल चक्रवर्ती, वीरेंद्र कपूर और शिक्षाविद जीएस घुर्ये और रोमिला थापर ने भी पुरस्कारों को अस्वीकार कर दिया. इन सभी का ये मानना था कि पुरस्कार को स्वीकार करने से उनकी स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है.