All India Shia Personal Law Board Meeting: मौलाना सायम मेहंदी को शनिवार (29 अक्टूबर) को ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Shia Personal Law Board) का दूसरी बार अध्यक्ष चुन लिया गया है. लखनऊ (Lucknow) में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया. बैठक में बोर्ड के सभी सदस्यों ने मौलाना सायम मेहंदी (Maulana Sayam Mehndi) के नाम पर मुहर लगा दी. लखनऊ के शिया पीजी कॉलेज में बोर्ड की एग्जीक्यूटिव कमिटी की बैठक आयोजित की गई थी. बैठक में बोर्ड के सभी कार्यकारिणी सदस्य और बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सायम मेहंदी और महासचिव यासूब अब्बास भी मौजूद रहे. इस बैठक में शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष का भी चयन हुआ और मौलाना सायम मेहंदी को फिर से बोर्ड का अध्यक्ष चुना गया.
क्या बोले बोर्ड के महासचिव?
बैठक की पूरी जानकारी देते हुए बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने बताया कि बोर्ड ने सभी मामलों को लेकर अपना रुख साफ़ रखते हुए कहा है कि हम कॉमन सिविल कोड (Common Civil Code) का विरोध करते हैं. कॉमन सिविल कोड और जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) के बजाय शिक्षा और रोजगार पर बात होनी चाहिए, जो हर भारतीय का अधिकार है. उन्होंने गुजरात में कॉमन सिविल कोड के लागू करने की तैयारी का भी विरोध किया है. उन्होंने ये भी कहा की मदरसा अरबिया का देश की आजादी में बहुत बड़ा योगदान है, इसलिए इसे बदनाम नहीं किया जाना चाहिए.
मौलाना यासूब अब्बास ने ये भी बताया की सऊदी प्रिंस शाह सलमान को लेकर भी बोर्ड प्रदर्शन करेगा, क्योंकि वो 14 नवंबर को भारत आ रहे हैं. बोर्ड के पदाधिकारी पीएम मोदी को भी पत्र लिखेंगे और निवेदन करेंगे की वो प्रिंस शाह सलमान से कहें की सऊदी के अंदर जन्नत उल बाकी का पुनः निर्माण करें और सभी मजार और कब्र को सही से ढकें.
कॉमन सिविल कोड क्यो हो रहा विरोध?
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को कॉमन सिविल कोड लागू करने को लेकर बड़ी आपत्ति रही है. इसका विरोध करने वालों में ज्यादातर का मानना है कि यह सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के विरोध के पीछे का तर्क है कि अगर सबके लिए समान कानून लागू कर दिया गया तो उनके अधिकारों का हनन होगा. फिलहाल मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, मुसलमानों को तीन शादियां करने का अधिकार है. कॉमन सिविल कोड लागू होने के बाद उनसे यह अधिकार छिन जाएगा. साथ ही उन्हें अपनी बीवी को तलाक देने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा. इसके अलावा इस कानून के लागू होने के बाद मुसलमान अपनी शरीयत के अनुसार संपत्ति का बंटवारा नहीं कर सकेंगे, उन्हें इसके लिए कानून का पालन करना अनिवार्य होगा.
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