नई दिल्ली: दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में कोरोना संक्रमित मरीज के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया है. प्लाज्मा थेरेपी यानी किसी बीमारी से संक्रमित मरीज जब ठीक हो चुका है उसके शरीर से से प्लाज्मा निकाल कर संक्रमित मरीज के शरीर में चढ़ाना. इस बारे में एबीपी न्यूज़ ने मैक्स हॉस्पिटल के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर संदीप बुद्धिराजा से बात की.
मैक्स हॉस्पिटल के डॉक्टर संदीप बुद्धिराजा ने बताया कि जो हमने जो किया है वो कंपैशनेट ग्राउंड पर किया है. पेशेंट काफी बीमार है गंभीर रूप से बीमार है और जैसा हम जानते हैं कि कोरोना वायरस की कोई दवा नहीं है ना इलाज तो काफी थेरेपी ट्राई की जा रही है. जिसमें से प्लाज्मा थेरेपी एक प्रॉमिनेंट थेरेपी है. यह पहले भी काफी बार इस्तेमाल की गई है और ऐसा नहीं है कि पहली बार इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
स्पेनिश फ्लू के टाइम पर हुआ था इस्तेमाल
उन्होंने बताया कि पहले भी तो वायरल संक्रमण हुए हैं. इस थेरेपी का इस्तेमाल किया गया है. सर्च के टाइम जब कुछ देशों में एपिडेमिक आउटब्रेक हुआ था तब भी इसका इस्तेमाल हुआ था. 1918 में जब स्पेनिश फ्लू हुआ था और इतिहास में आप जाकर देखेंगे तो भी इसका इस्तेमाल किया गया था. जो मरीज ठीक हो चुका है उसके प्लाज्मा में एंटीबॉडी है. एंटीबॉडी ऐसे प्रोटीन होते हैं जो इस वायरस को डिस्ट्रॉय कर सकते हैं.
डॉक्टर संदीप ने बताया कि वह एंटीबॉडी अगर प्लाज्मा केसरी है हम किसी मरीज को चढ़ाएं तो वह एंटीबॉडी अभी जो मरीज है जो उसके शरीर में मौजूद वायरस को मार सके. लेकिन उसकी टाइमिंग बहुत क्रिटिकल होती है कि हम कब ठीक हो चुके मरीज से प्लाज्मा ले सकते हैं. वह होता है कम से कम 2 हफ्ते का गैप जब वह ठीक हो चुके होंगे. और उसके दो टेस्ट नेगेटिव आ जाए उसके बाद. दूसरा यह कि ठीक हो चुके मरीज के शरीर में एंटीबॉडी का लेवल अच्छी मात्रा में है लेकिन दुर्भाग्य से अभी वह टेस्ट किट हमारे यहां नहीं है.
हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन को देखें तो शुरुआत में इसका इस्तेमाल मलेरिया के लिए होता था कोविड-19 के लिए नहीं था लेकिन अब इसमें भी इस्तेमाल हो रहा है. ऑल ड्रग फनी इंडिकेशन जिसका डीसीजीआई ने अप्रूवल दिया है. प्लस में कोई नई दवा नहीं है लेकिन हम यह अलग इंडिकेशन के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. उसके लिए आईसीएमआर और डीसीजीआई रेगुलेटरी बॉडी है, दोनों ने इसके लिए प्रोटोकॉल बना दिया है.
इसको उन्होंने अपनी वेबसाइट पर डाला हुआ है और जानकारी दी है कि जो जो अस्पताल इसमें पार्टिसिपेट करना चाहता है वह हमें एप्लीकेशन दें तो हमने आईसीएमआर में अप्लाई कर दिया है और मुझे जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक अगले दो-तीन दिनों में इसका अप्रूवल भी आ जाएगा. इसका मतलब यह है कि जिन जिन अस्पतालों ने इस स्टडी में अप्लाई किया था वहां प्लाज्मा थेरेपी दी जाएगी स्टडी के तौर पर.
कई देशों को हो चुका है फायदा
उन्होंने कहा कि इस मामले में हमने life-saving प्रोटोकॉल के तहत इसका इस्तेमाल किया है. जिसको हम ऑफ लेबल इंडिकेशन कहते हैं. अगर कोई ऐसी दवा है जिसका दुनिया में इस्तेमाल किया गया हो और बाहर के देश में उसका रेगुलेटरी अप्रूवल मिला हुआ है जैसे प्लाज्मा का यूएसए में अप्रूवल मिला हुआ है और यह जानकारी अगर परिवार को है और वहां आकर हमें गुजारिश करें कि अपने मरीज को यह थेरेपी देना चाहते हैं क्योंकि इसका इस्तेमाल इन देशों में हुआ है और उसका फायदा हुआ है.
डॉक्टर ने बताया कि हम इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं इसके रिस्क और इसके बेनिफिट को हम समझते हैं. तो जब मरीज के परिवार की तरफ से इस तरह की रिक्वेस्ट आती है तो इसको ऑफ लेबल कंपैशनेट ग्राउंड पर कंसीडर करते हैं उसका एक अपना अप्रूवल प्रोसेस होता है. उसकी अध्यक्ष कमेटी होती है अस्पताल की उसके अप्रूवल लिए जाते हैं उसके बाद ही यह ट्रीटमेंट दिया जा सकता है. उस तौर पर हमने उस मरीज को यह थैरेपी दी है और इस केस में जो डोनर था वह भी खुद मरीज के परिवार ने अरेंज किया था.
एक महिला थी जो कोरोना पॉजिटिव थी और 3 हफ्ते पहले वह बिल्कुल स्वस्थ हो चुकी थी. वह डोनेट करने के लिए तैयार हो गई. इसके बाद हमने उनसे 400ml प्लाज्मा लिया. एक मशीन में अलग किया. पिछले दो-तीन दिनों में हमने काफी अच्छे साइन देखे हैं अच्छे सुधार देखने को मिल रहे हैं वेंटिलेटर का रिक्वायरमेंट सब चीजें अच्छी हो रही हैं.
ऐसी बीमारी में कोई एक चीज इलाज नहीं होती बल्कि बहुत सारी अलग तरीके से इलाज शामिल करना होता है. एंटीवायरल इस समय इस्तेमाल किए जा रहे हैं किसी में कुछ को फायदा होता है किस में कुछ फायदा होता है तो मल्टीपल चीजें हैं ऑक्सीजन कब देना है वेंटिलेटर पर कैसे रखना है डायलिसिस कितना करना है एंटीबायोटिक देना है नहीं देना है क्लास में किसको देना है किसको नहीं यह कॉन्बिनेशन होता है कि कि स्पेशल में फायदा होगा.
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