BSP Supremo Maywati: उत्तर प्रदेश की राजनीति का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, उसमें बसपा सुप्रीमो मायावती को नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा. उत्तर प्रदेश में दलितों और वंचितों की आवाज बनकर उभरी बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा की सुप्रीमो मायावती सूबे की चार बार मुख्यमंत्री रही हैं. आज यानी 15 जनवरी को मायावती 67 साल की हो गई हैं. बहुजन समाज पार्टी के एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल से राष्ट्रीय पार्टी बनाने का श्रेय मायावती को ही जाता है. 


मायावती का बामसेफ के कार्यकर्ता से लेकर बसपा सुप्रीमो बनने का सफर बड़ा दिलचस्प है. मायावती की आत्मकथा 'बहनजी' लिखने वाले अजय बोस ने अपनी किताब में ऐसी कई कहानियों का जिक्र किया है. वैसे, दलितों, अल्पसंख्यकों के बहुजन गठजोड़ को मायावती ने ही 'सर्वजन हिताय' में बदलकर पूर्ण बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज होने का रिकॉर्ड बनाया था. मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में कानून-व्यवस्था के चाक-चौबंद होने के किस्से आज भी मशहूर हैं.


आइए जानते हैं बसपा सुप्रीमो मायावती की जिंदगी के 5 कमसुने किस्से...


छोटी सी उम्र में दो दिन के भाई को लेकर पहुंची अस्पताल: 5वीं क्लास में पढ़ने वाली मायावती के भाई सुभाष को जन्मे दो दिन ही हुए थे. अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई. उस समय पिता प्रभु दयाल किसी काम के चलते बाहर गए हुए थे और मां इस स्थिति में नहीं थीं कि बेटे को अस्पताल ले जाएं. सबसे पास का सरकारी अस्पताल 7 किमी दूर था. तब मायावती अपने भाई को अकेले ही कंधे पर उठाकर पैदल अस्पताल के लिए निकल पड़ी थीं. छोटी सी उम्र की एक बच्ची अपने भाई को कंधे पर लेकर जब अस्पताल पहुंची, तो डॉक्टरों को भी आश्चर्य हुआ. उन्होंने बच्चे का इलाज किया और कुछ घंटों बाद मायावती अपने भाई को लेकर घर वापस आ गईं. मायावती के भाई सुभाष की मौत 2016 में हुई थी.


बामसेफ से शुरू हुआ था सियासी सफर: IAS बनने का सपना देखने वाली मायावती साल 1977 में दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में एक कार्यक्रम के दौरान जबरदस्त भाषण दिया था. मायावती के इस भाषण की चर्चा बामसेफ और डीएस-4 के संस्थापक कांशीराम के कानों तक पहुंची. जिसके बाद कांशीराम सीधे दिल्ली की जेजे कॉलोनी स्थित मायावती के घर पहुंचे. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, कांशीराम ने मायावती से पूछा- वो क्या करना चाहती हैं? जिस पर मायावती ने आईएएस बनकर दलितों और वंचितों की सेवा का काम करने की बात कही. इस पर कांशीराम ने मायावती से कहा कि नेता बनकर कलेक्टर और आईपीएस जैसे तमाम लोग उनके सामने हाथ बांधे खड़े होंगे. इसके बाद मायावती ने अपना घर छोड़ दिया और कांशीराम के साथ बामसेफ में कार्यकर्ता बन गईं.


मिशन के लिए मोल ली पिता की नाराजगी: कांशीराम के न्योता देने पर मायावती ने उनके मिशन में जुड़ने का फैसला किया, लेकिन उनके पिता प्रभु दयाल इससे सहमत नहीं थे. किताब 'बहनजी' के मुताबिक, मायावती ने टीचर के तौर पर मिलने वाले पैसों को उठाया और घर छोड़ने का फैसला कर लिया. पिता की नाराजगी के बावजूद वो बामसेफ के कार्यालय में रहने लगी. बीबीसी की एक रिपोर्ट में कांशीराम की जीवनी लिखने वाले बद्री नारायण बताते हैं कि उस समय एक लड़की का घर छोड़ कर अकेले रहना बहुत बड़ी बात होती थी. वो किराये का एक कमरा लेकर रहना चाहती थीं, लेकिन उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे. कांशीराम और मायावती के बीच बहुत अच्छी केमेस्ट्री थी.


क्यों रखे थे शॉर्ट कट हेयर: 90 के दशक के अंत में बसपा सुप्रीमो मायावती एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अचानक ही बदली हुई हेयर स्टाइल के साथ मीडिया के सामने आईं. मायावती का ये रूप देखकर सब चौंक गए थे. दरअसल, मायावती को बड़ी नेता होने के बावजूद साधारण तौर-तरीके से रहती थीं. पोनी टेल बांधने वाली मायावती को शॉर्ट हेयर स्टाइल में देखना बहुत से लोगों के लिए अचंभे का विषय था, क्योंकि उस दौर में शॉर्ट हेयर को फैशन का प्रतीक माना जाता था. कुछ दिनों बाद खुद मायावती ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 'एक दिन में कई कार्यक्रमों में जाना पड़ा, तो बड़े बालों की वजह से कई बार कंघी करनी पड़ती है. इसमें समय खराब होता था, तो मैंने अपना टाइम बचाने के लिए बालों को कटवाना ही बेहतर समझा.


कांशीराम को बंधक बनाने का आरोप: 1977 से ही कांशीराम की टीम का हिस्सा रहीं मायावती को कांशीराम ने 2001 में अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर दिया था. 14 सितंबर 2003 को कांशीराम को मस्तिष्क पक्षाघात की वजह से अस्पताल में भर्ती करना पड़ा. उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने कांशीराम की देखभाल का सारा जिम्मा अपने हाथों में ले लिया. इसी दौरान कांशीराम के परिवार ने मायावती पर उन्हें बंधक बनाकर रखने के आरोप लगाए. कांशीराम के परिवार ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जिसे खारिज कर दिया गया. इसके बाद कांशीराम की मां ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कांशीराम की स्थिति को जांचने के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन किया, लेकिन फैसला आने से पहले ही याचिकाकर्ता मां की मौत होने से केस खारिज हो गया. 


ये भी पढ़ें:


सियासत के किस्से: क्या था वो Guest House कांड, जिसके बाद Mayawati पहनने लगीं सलवार सूट!