पांच राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में अब बस एक महीने का समय बचा है. जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, सियासी हलचल भी बढ़ने लगी है. इस बीच बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) के साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने का फैसला किया है. बसपा के इस कदम के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. इस बात की भी चर्चा शुरू हो गई है कि मायावती की पार्टी लोकसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए दलितों और आदिवासी वोटर्स को साधने की कोशिश कर रही है.
2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं और 2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे. जीजीपी आदिवासी समुदाय के गोंड लोगों के हक के लिए काम करती है. दोनों दलों के साथ जुड़ने को दलितों और आदिवासियों को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. इस गठबंधन से शायद बसपा को ये उम्मीद है कि इससे उसे उत्तर प्रदेश के भी आदिवासी बहुल जिलों में चुनावी फायदा मिलेगा. बसपा विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. का हिस्सा नहीं है, बल्कि पार्टी प्रमुख मायावती ने इस बात का ऐलान किया था कि बीएसपी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव में अकेले उतरेगी.
दोनों राज्यों में क्या है सीट शेयरिंग फॉर्मूला
गठबंधन ने फैसला किया है कि दोनों राज्यों की आधे से ज्यादा सीटों पर बसपा अपने उम्मीदवार उतारेगी जबकि बाकी पर जीजीपी के कैंडिडेट चुनाव लडेंगे. मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 178 पर बसपा और 52 सीटों पर जीजीपी के उम्मीदवार होंगे. वहीं, छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में से 53 पर बसपा और 37 पर जीजीपी के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे.
एमपी-छत्तीसगढ़ में दलितों और आदिवासियों की बड़ी आबादी
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की काफी आबादी है. मध्य प्रदेश में कुल आबादी की 17 फीसदी दलितों की है, जबकि 22 फीसदी से ज्यादा आबादी अनुसूचित जनजाति की है. यहां 47 सीटें अनुसूचित जनजाति और 35 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. वहीं, छत्तीसगढ़ में कुल आबादी की 15 फीसदी दलितों की और 32 फीसदी अनुसूचित जनजाति की है. यहां 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए रिजर्व हैं. बसपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि जीजीपी के साथ गठबंधन कर पार्टी न्यू सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले के जरिए दलितों और आदिवासी वोटर्स को साथ लाने की कोशिश कर रही है ताकि 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी को अनुसूचित जानजाति के वोटर्स का समर्थन मिल सके और फिर यूपी विधानसभा चुनाव में भी इसका फायदा मिले.
पिछले चुनावों में सपा ने किया था जीजीपी के साथ गठबंधन
बसपा के नेताओं का कहना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में सपा ने जीजीपी के साथ गठबंधन किया था, जिसका फायदा उसे 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिला था. उन्होंने कहा कि गोंड समुदाय की आबादी यूपी के मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली में भी रहती है, जो जीजीपी का समर्थन करते हैं और यूपी विधानसभा चुनाव में उन्होंने सपा के लिए वोट किया. इसे देखते हुए बसपा भी उम्मीद कर रही है कि 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में उसे गोंड वोटर्स का समर्थन मिलेगा. सपा के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने भी माना कि पार्टी को जीजीपी के साथ गठबंधन का 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में फायदा मिला था.
अलग राज्य की मांग करती है जीजीपी
साल 1991 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठन हुआ था, जो गोंड आदिवासी लोगों के हक के लिए आवाज उठाती है. जीजीपी अलग राज्य गोंडवाना की मांग करती है. पार्टी को मुख्यरूप से महाकौशल क्षेत्र के लोगों का समर्थन प्राप्त है, जो खासतौर से बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, सिवनी, छिंदवाड़ा और बेतुल जिलों में बसे हैं.
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