लखनऊ: SC/ST एक्ट में बदलाव की जिस बात को लेकर दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया, तोड़ फोड़ और हिंसा हुई...उस दलित एक्ट को तो सुप्रीम कोर्ट से पहले मायावती ने ही बदल दिया था. ये बात 11 साल पहले की है. बीएसपी सुप्रीमो तब यूपी की मुख्यमंत्री थीं. 19 मई 2007 को उन्होंने लखनऊ में क़ानून व्यवस्था पर बड़ी बैठक बुलाई. बहन जी को बताया गया कि एससी एसटी एक्ट के झूठे मुक़दमों में हज़ारों लोग जेल में है. लोग अपनी दुश्मनी साधने के लिए बेक़सूरों पर फ़र्ज़ी केस करवाते है. मायावती ने अगले ही दिन इस पर नये आदेश जारी करवा दिए. जिलों के एसपी से कहा गया कि एससी एसटी एक्ट में झूठे मुक़दमे न लिखे जाएं. सामान्य अपराध के मुक़दमों को दलित एक्ट में न लिखने का आदेश हुआ.
ये भी कहा गया कि रेप जैसे मामलों में मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद ही एफ़आइआर हो. मायावती ने डीजीपी को हर महीने झूठे मुक़दमों की रिपोर्ट तैयार करने को कहा था. ये आदेश भी हुआ था कि ऐसा करने वालों पर केस हो और उन्हें जेल भेजा जाए.
उन दिनों बीएसपी में नारे लगते थे ''हाथी नहीं गणेश है.'' ब्राह्मण और दलित गठजोड़ के बूते बीएसपी की सरकार बनी थी. वो भी पहली बार अपने बहुमत से. बहुजन से बढ़ कर मायावती सर्वजन की बातें करने लगी थीं. सोशल इंजीनियरिंग के उस दौर में मुख्य सचिव प्रशांत कुमार ने एक आदेश जारी किया था. बात 29 अक्टूबर 2007 की है. उस आदेश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निवारण) अधिनियम में कई बड़े बदलाव किए गए थे. ये कहा गया था कि इस एक्ट में किसी निर्दोष को न फंसाया जाए. झूठे मुक़दमे लिखाने वालों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 182 में कार्रवाई करने का आदेश दिया गया था. कई ऐसे मामले सामने आए थे जब दबंगों ने दलितों को मोहरा बना कर अपने विरोधियों पर मुक़दमे करा दिए थे.
लेकिन वक़्त बदला तो हालात बदले और मायावती की राय भी बदल गई. पिछले लोकसभा चुनाव में खाता नहीं खोल पाने वाली बीएसपी अब फिर से दलित एजेंडे पर आ गई है. 2 अप्रैल को दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया था. इस बंद को मायावती का भी मौन समर्थन था. यूपी के कई शहरों में तोड़ फोड़ और हिंसा हुई. मायावती ने इसके लिए शरारती लोगों को ज़िम्मेदार ठहराया. पर उन्होंने ये नहीं बताया कि जिस एक्ट को लेकर दलित सड़कों पर हैं. 11 साल पहले बहिन जी उसके ख़िलाफ़ थीं.