नई दिल्ली: उपचुनाव में समर्थन ना देने के मायावती के फैसले पर अखिलेश यादव खामोश हैं लेकिन समाजवादी पार्टी मानती है कि हम तो साथ हो चुके हैं. वहीं बीजेपी के नेता मन ही मन गदगद हैं लेकिन जानकार बताते कि बीएसपी सुप्रीमो की ये सोची समझी चाल है. अगले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन का एलान और फिर उपचुनाव से अलग रहने के मायावती के इस दांव से सब हैरान हैं. मायावती को राजनीति में चौंकाने वाले फैसले लेने के लिए जाना जाता है.


सूत्रों की माने तो बीएसपी आम चुनाव से पहले अब कोई परीक्षा देने के मूड में नहीं है. कैराना में लोकसभा और नूरपुर में विधानसभा के उपचुनाव हो सकते हैं. अगर बीएसपी के समर्थन के बाद भी समाजवादी पार्टी उपचुनाव हार जाती है तो फिर मायावती की किरकिरी होगी. फिर बीजेपी निशाना साधेगी और कहेगी कि दोनों मिल कर भी कुछ नहीं कर पाए. ऐसे में अगले चुनाव से पहले बीएसपी के लिए माहौल खराब हो जाता.


अगर समाजवादी पार्टी जीत गयी तो मायावती के लिए एक गुंजाईश बची रहेगी. वह इतना तो कह पाएंगी कि बीएसपी कार्यकर्ताओं ने वोट ट्रांसफर कराया. सांप मर जाए और लाठी भी ना टूटे के फार्मूले पर मायावती ने उपचुनाव से तौबा कर ली है.


बीएसपी उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर के राज्यसभा चुनाव हारने से बहनजी दुखी हैं. उन्होंने इसे छुपाया भी नहीं. इस हार के लिए मायावती ने अखिलेश यादव को कम अनुभवी तक बता डाला. बीजेपी के हुकुम सिंह के निधन से कैराना में लोकसभा का उपचुनाव होना है. बीजेपी एमएलए लोकेन्द्र सिंह की सड़क हादसे में जान चली गयी थी. इसलिए नूरपुर में भी उपचुनाव होंगे. लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी को मजबूत करने का फैसला तो बस बहाना है. मायावती तो बस दूर की सोच रही हैं.


बीएसपी के समर्थन से एसपी ने फूलपुर और गोरखपुर का उपचुनाव जीत लिया. सीएम योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे से गोरखपुर और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के इस्तीफे से फूलपुर सीट खाली हुई थी. दोनों पार्टियों के गठबंधन में अबतक फायदा सिर्फ अखिलेश यादव का ही हुआ है. अब बुआ अपने भतीजे को और 'गिफ्ट' देने के मूड में नहीं हैं. राजनीतिक तोलमोल में मायावती का कोई जवाब नहीं है. वे समझौता अपनी शर्तों पर चाहती हैं.


माना जा रहा है कि अखिलेश यादव पर दवाब बनाने के लिए उन्होंने उपचुनाव से बीएसपी को अलग कर लिया है. हर हाल में मायावती लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए एसपी से अधिक सीटें चाहती हैं. जो पार्टी जिस जगह पर दूसरे नंबर पर थी, वहां से टिकट उसी को मिलेगा का फॉर्मूला उन्हें पसंद नहीं है. अखिलेश यादव से सीटों के समझौते में भी वे अपने लिए बड़ा हिस्सा चाहती हैं.