मायावती बोलीं- अभिजीत बनर्जी के नोबेल पुरस्कार को राजनीतिक चश्मे से न देखा जाए
भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबेल अवॉर्ड दिया गया है. अभिजीत को ये अवॉर्ड अवैश्विक गरीबी कम किए जाने के प्रयासों के लिए मिला है.
नई दिल्ली: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने कहा है कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किये गये भारतीय मूल के अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी की उपलब्धि को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिये. मायावती ने रविवार को बनर्जी को बधाई देते हुये कहा, ‘‘गरीबी के अभिशाप के विरुद्ध शोध करने वाले भारतीय मूल के अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को विश्व के सर्वश्रेष्ठ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने पर बधाई व भरपूर स्वागत.’’
उन्होंने ट्वीट कर नसीहत भी दी, ‘‘लेकिन इसे यहाँ राजनीतिक चश्मे से देखना पूरी तरह से गलत है, बल्कि भारतीय होने के नाते इस पर गर्व किया जाए तो बेहतर है.’’
बता दें कि वैश्विक स्तर पर गरीबी निवारण के मकसद से आर्थिक उपायों की खोज के लिये बनर्जी सहित तीन अर्थशास्त्रियों को हाल ही में नोबेल पुरस्कार के लिये चुना गया है. भारतीय मूल के बनर्जी दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालयय (जेएनयू) के पूर्व छात्र रहे हैं.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एमए हैं अभिजीत बनर्जी
अभिजीत बनर्जी का जन्म कोलकाता में हुआ था. उनके माता-पिता भी अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे. उनके पिता कोलकाता के मशहूर प्रेसिडेंसी कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख थे. अभिजीत बनर्जी ने कोलकाता यूनिवर्सिटी में शुरुआती पढ़ाई की. इसके बाद अर्थशास्त्र में एमए के लिए वह जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी चले गए थे.
अभिजीत ने हावर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में साल 1988 में पीएचडी की. बनर्जी संयुक्तराष्ट्र महासचिव की ‘2015 के बाद के विकासत्मक एजेंडा पर विद्वान व्यक्तियों की उच्च स्तरीय समिति’ के सदस्य भी रह चुके हैं. 58 साल के अभिजीत फिलहाल अमेरिका की मेसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. अभिजीत और इनकी पत्नी डुफलो अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी ऐक्शन लैब के को-फाउंडर भी हैं.
लगातार अर्थशास्त्र पर लेख लिखने वाले अभिजीत बनर्जी ने चार किताबें भी लिखी हैं. उनकी किताब पुअर इकनॉमिक्स को ‘गोल्डमैन सैक्स बिजनेस बुक ऑफ द ईयर’ का खिताब भी मिला. अभिजीत ने दो डॉक्यूमेंटरी फिल्मों का डायरेक्शन भी किया है. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भी अपनी सेवाएं भी दी हैं.
साल 1983 में गए थे जेल
दरअसल जब अभिजीत बनर्जी जेएनयू में पढ़ाई कर रहे थे तो जेएनयू के प्रेसिडेंट एनआर मोहंती को कैंपस से निष्कासित कर दिया गया था. इस निष्कासन का अभिजीत बनर्जी सहित कई छात्रों ने पुरजोर विरोध किया था. ये वाकया साल 1983 का था. उस दौरान करीब तीन सौ छात्रों ने कैंपस में विरोध किया था. इन छात्रों में अभिजीत भी शामिल थे. सभी छात्रों को 10 दिन जेल में रहना पड़ा था.
तिहाड़ में पिटाई भी की गई, हत्या की कोशिश के आरोप लगे- अभिजीत
इसका जिक्र खुद अभिजीत ने हिंदुस्तान टाइम्स में लिखे एक लेख- "वी नीड थिंकिंग स्पेसेज़ लाइक जेएनयू एंड द गर्वनमेंट मस्ट स्टे आउट ऑफ़ इट" में किया है. उन्होंने बताया, "ये साल 1983 की गर्मियों की बात है. हम जेएनयू के छात्रों ने वाइस चांसलर का घेराव किया था. वाइस चांसलर हमारे स्टुडेंट यूनियन के अध्यक्ष को कैंपस से निष्कासित करना चाहते थे. उस वक्त देश में कांग्रेस की सरकार थी. प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने सैकड़ों छात्रों को हिरासत में ले लिया था. हम सभी को दस दिनों तक तिहाड़ में रहना पड़ा था. हमारी पिटाई भी की गई थी. हमारे ऊपर हत्या की कोशिश के आरोप तक लगे थे.’’
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