एससी/एसटी संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, मायावती ने किया स्वागत
सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण), संशोधन कानून 2018 की वैधता को कायम रखकर सरकार के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है. कोर्ट के इस कदम का मायावती ने स्वागत किया है.
लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संशोधन अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है .
मायावती ने ट्वीट किया, 'अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के संघर्ष के कारण ही केन्द्र सरकार ने 2018 में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कानून में बदलाव को रद्द करके उसके प्रावधानों को पूर्ववत बनाए रखने का नया कानून बनाया था, जिसे आज सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कानून को बधाई एवं उनके संघर्ष को सलाम. कोर्ट के फैसले का स्वागत.'
SC/ST के संघर्ष के कारण ही केन्द्र सरकार द्वारा सन् 2018 में SC/ST Act में बदलाव को रद्द करके उसके प्रावधानों को पूर्ववत बनाए रखने का नया कानून बनाया गया था, जिसे आज मा. सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है SC/ST Act को बधाई व उनके संघर्ष को सलाम कोर्ट के फैसले का स्वागत।
— Mayawati (@Mayawati) February 10, 2020
सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संशोधन अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता को सोमवार को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि कोई अदालत सिर्फ ऐसे ही मामलों पर अग्रिम जमानत दे सकती है जहां प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं बनता हो.
कोर्ट ने फैसले में जो प्रमुख बातें कही, उनमें शामिल हैं -मामले में प्राथमिक जांच जरूरी नहीं, एफआईआर के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या प्रशासन की पूर्व अनुमति जरूरी नहीं, अग्रिम जमानत का प्रावधान उपलब्ध नहीं, और विशेष मामलों में कोर्ट एफआईआर रद्द कर सकता है.
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अधिनियम के अंतर्गत एफआईआर दर्ज करने के लिए मामले की प्राथमिक जांच करना अनिवार्य नहीं है और वरिष्ठ अधिकारियों की मंजूरी भी जरूरी नहीं है. पीठ के एक अन्य सदस्य न्यायमूर्ति रविंद्र भट ने कहा कि नागरिकों को एक-दूसरे से समानता का व्यवहार करना चाहिए.
शीर्ष अदालत का यह फैसला एससी और एसटी (अत्याचार निवारण), संशोधन कानून 2018 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया है.
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