दिल्ली में नगर निगम चुनाव के बाद अब मेयर चुनने की बारी है. सीटों की संख्या के हिसाब से आम आदमी पार्टी की जीत तय मानी जा रही है, लेकिन दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने भी मेयर सीट पर दावा ठोक दिया है. एमसीडी में एकीकरण के बाद अब पूरे दिल्ली में सिर्फ एक मेयर होगा.


एमसीडी के नियमों में बदलाव होने के बाद मेयर की शक्ति भी बढ़ा दी गई. मेयर की शक्ति बढ़ने के बाद दिल्ली के सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है कि क्या मेयर का पद अब मुख्यमंत्री से ज्यादा पावर फुल हो जाएगा?


मेयर क्या होता है, कैसे चुना जाएगा?
मेयर यानी महापौर किसी भी नगर निगम के प्रमुख को कहा जाता है. किसी एक शहर की बुनियादी व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी महापौर के पास होती है. मेयर अपनी कैबिनेट यानी मेयर इन काउंसिल (एमआईसी) का गठन करते हैं.


एमसीडी में नियमों में बदलाव के बाद दिल्ली में 5 साल के लिए 250 पार्षद चुने जाएंगे. यही पार्षद मेयर का चुनाव करेंगे. हालांकि, लोकसभा और राज्यसभा के मेंबर भी इसमें वोटिंग कर सकते हैं. मेयर का कार्यकाल एक साल के लिए होगा. 




मेयर के पास कितनी ताकत, 5 प्वाइंट्स
1. नगर निगम के अधिकार से जुड़े कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र.
2. किसी भी फैसले की फाइल उपराज्यपाल या केंद्र के पास भेजने की अनिवार्यता नहीं.
3. निगम का सदन ही सर्वोच्च, विधेयक पास कराने के बाद कानून लागू होगा.
4. दिल्ली नगर निगम का बजट 14,804 करोड़, खर्च करने की स्वतंत्रता.
5. निगम के किसी भी अधिकारी और कर्मचारियों का तबादला कर सकते हैं.


अब मुख्यमंत्री के बारे में...
मुख्यमंत्री किसी भी राज्य क्षेत्र का प्रशासक होता है, जो कानून-व्यवस्था और राजस्व समेत तमाम जनहित से जुड़े नियम बना कर लागू करवाता है. हालांकि, दिल्ली की स्थिति उलट है. राजधानी होने की वजह से दिल्ली में मुख्यमंत्री के पास कोई भी अधिकार नहीं दिया गया है.


संविधान की धारा 239 एए के मुताबिक दिल्ली के मुख्यमंत्री को सभी फैसलों की फाइल उपराज्यपाल के पास भेजना अनिवार्य होगा. साथ ही इन फैसलों को उपराज्यपाल मानने के लिए बाध्य नहीं हैं. अरविंद केजरीवाल सरकार ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.


दिल्ली मुख्यमंत्री के पास मेयर इतनी भी शक्ति नहीं, जानिए क्यों?



  • दिल्ली सरकार के अधीन कर्मचारियों का तबादला नहीं कर सकते हैं.

  • सरकार से जुड़े फैसले खुद ले सकते हैं, लेकिन उपराज्यपाल से मंजूरी अनिवार्य है.

  • दिल्ली सरकार की सभी फाइलों की मंजूरी के लिए केंद्र और उपराज्यपाल के पास भेजना अनिवार्य.

  • दिल्ली सरकार का बजट 75,800 करोड़ पर खर्च के लिए परमिशन जरूरी. 


अब सवाल मेयर पावरफुल या मुख्यमंत्री?
इसे 2 सिनेरियों के जरिए आसानी से आप समझ सकते हैं...


1. मेयर अगर AAP का बना- इस स्थिति में मुख्यमंत्री ही पावरफुल रहेगा. क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आप के राष्ट्रीय संयोजक भी हैं. नगर निगम चुनाव के प्रमुख चेहरा भी रहे हैं. मेयर जो भी बनेगा, वो मुख्यमंत्री से हर काम में सलाह जरूर लेगा और सरकार का आदेश भी मानेगा. 


2. मेयर अगर बीजेपी का बन गया- इस स्थिति में टकराव बढ़ेगा. क्योंकि मेयर सरकार के आदेश मानने के लिए बाध्य नहीं है. नगर निगम मेयर के पास मुख्यमंत्री से ज्यादा पावर है. ऐसे में यहां मुख्यमंत्री कम पावरफुल होंगे.


दिल्ली मेयर की रेस में कौन-कौन आगे...
दिल्ली में पहला साल के लिए मेयर का पद महिलाओं के लिए आरक्षित है. ऐसे में आम आदमी पार्टी से 4 नाम इस रेस में सबसे आगे है. रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली महिला आयोग की सदस्य रहीं प्रोमिला गुप्ता और सारिका चौधरी, आप महिला इकाई की प्रदेश संयोजक निर्मला कुमारी और पार्टी की एसटी/एससी विंग की उपाध्यक्ष प्रियंका गौतम का नाम चर्चा में है. 


मेयर के अलावा डिप्टी मेयर और 6 मेयर इन काउंसिल का भी चुनाव होना है. 27 दिसंबर को मेयर चुनाव के लिए नामांकन शुरू होगा और 6 जनवरी को वोट डाले जाएंगे.