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MCD Election Results 2022: MCD के नए बादशाह केजरीवाल, BJP का ढहा किला, लोकसभा में सेंधमारी अगला टारगेट

Delhi MCD Results: दिल्ली एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 134 सीटों पर जीत दर्ज की है. बीजेपी का रथ 104 सीटों पर जाकर रुक गया. कांग्रेस सिर्फ 9 सीटें ही जीत पाई. अन्य के खाते में 3 सीटें गई.

Delhi MCD AAP: आम आदमी पार्टी (AAP) ने दिल्ली नगर निगम (MCD) चुनाव में लगातार चौथी बार जीतने का बीजेपी (BJP) का सपना चकनाचूर कर दिया है. पिछले 15 साल से दिल्ली एमसीडी पर काबिज बीजेपी के तिलिस्म को आम आदमी पार्टी के झाड़ू ने छू मंतर कर दिया.  

एमसीडी चुनाव 2022 में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल गया है. वहीं बीजेपी को पिछले चुनाव के मुकाबले 77 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. आम आदमी पार्टी को पिछली बार के मुकाबले 85 सीटों का फायदा हुआ है. 

दिल्ली एमसीडी में बीजेपी की बादशाहत खत्म 

एमसीडी पर बीजेपी की बादशाहत 1997 से कायम थी. 2022 के चुनाव को छोड़ दें तो इन 25 सालों में एमसीडी के लिए हुए पांच में से 4 चुनावों को बीजेपी ने फतह किया था. सिर्फ 2002 में बीजेपी को कांग्रेस से मात खानी पड़ी थी.  

बीजेपी से दिल्ली की जनता का मोहभंग

बीजेपी विधानसभा चुनाव के नजरिए से दिल्ली की सत्ता से 1998 से बाहर है. लेकिन लोकसभा और नगर निगम चुनावों में बीजेपी को पिछले कई सालों से दिल खोलकर दिल्ली की जनता का प्यार मिल रहा था. लेकिन इस बार एमसीडी चुनाव में बीजेपी से दिल्ली की जनता का मोहभंग हो गया. 

केजरीवाल का एमसीडी में भी चला जादू

आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल ने वो करिश्मा कर दिखाया है, जिसे अपनी प्रचंड लोकप्रियता के बावजूद कांग्रेस की दिग्गज नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी नहीं कर पाई थीं.  

बीजेपी घुटने टेकने को हुई मजबूर

दिल्ली नगर निगम चुनाव के लिहाज से आम आदमी पार्टी ज्यादा पुरानी नहीं हुई है. केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दूसरी बार ही नगर निगम के सियासी दंगल में ताल ठोक रही थी. अपने दूसरे प्रयास में ही आप ने बीजेपी को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया.  

दिल्ली की जनता को भांप नहीं सकी बीजेपी

एमसीडी के सियासी मिजाज को इस बार बीजेपी भांप नहीं सकी. दिल्ली के चुनावी विश्लेषण से एक बात तो स्पष्ट है कि यहां जाति-धर्म की सियासत को लोग ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं. इस बार बीजेपी के नकारात्मक चुनाव प्रचार को भी लोगों ने खारिज कर दिया है. केजरीवाल की पार्टी ने एमसीडी चुनाव में स्थानीय मुद्दों को तरजीह दी. उसने कूड़ा और कूड़े के पहाड़ को बड़ा मुद्दा बनाया. डेढ़ दशक से बीजेपी एमसीडी में है, फिर भी दिल्ली में सड़कों, नालियों और साफ-सफाई को लेकर गंभीर शिकायतें हैं. आम आदमी पार्टी ने इन मुद्दों को भी बढ़-चढ़कर उठाया. केजरीवाल ने एमसीडी में भ्रष्टाचार के मसले को भी खूब हवा दी. एमसीडी चुनाव में आप के लिए माहौल बनाने में सत्ता विरोधी लहर का भी हाथ रहा.

स्थानीय मुद्दों को केजरीवाल ने बनाया ढाल

आप दिल्ली के सरकारी स्कूलों और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के मुद्दे को जनता के सामने रखने में कामयाब रही. बीजेपी मोहल्ला क्लीनिक, सस्ती बिजली, पानी जैसी स्कीमों का काट नहीं ढूंढ़ नहीं पा रही है. मजबूत जमीनी संगठन और इलेक्शन मशीनरी होने के बावजूद बीजेपी को शिकस्त का सामना करना पड़ा. बीजेपी स्थानीय मुद्दों की बजाय नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सहारे अपनी नैया पार कराने की जुगत में थी और ये सोच बीजेपी के लिए घातक साबित हुई.
 
क्या दिल्ली में नहीं चला मोदी मैजिक

नगर निगम का चुनाव होने के बावजूद बीजेपी राष्ट्रीय नेतृत्व के सहारे नजर आई. एमसीडी के सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी के कई दिग्गज नेता, केंद्रीय मंत्री, बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी प्रचार के लिए दिल्ली की सड़कों पर उतरे. आप के पास स्थानीय स्तर पर केजरीवाल जैसे बड़े कद का चेहरा है, लेकिन बीजेपी के पास दिल्ली में ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो सीधे केजरीवाल को टक्कर दे.  

राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी ब्रांड हैं. चाहे लोक सभा हो या विधान सभा चुनाव, बीजेपी को बीते 8 सालों से इसका फायदा भी मिलता रहा है. लेकिन दिल्ली विधानसभा में उनके चेहरे से भी बीजेपी की राह आसान नहीं हुई. एमसीडी निकाय चुनाव है. इसमें जनता के बीच हमेशा मौजूद रहने वाले नेता की जरूरत होती है. इस मसले पर केजरीवाल एमसीडी चुनाव में बीजेपी से बीस साबित हुए हैं. बीजेपी को बार-बार प्रदेश अध्यक्ष बदलने का नुकसान भी शायद उठाना पड़ा है.

दिल्ली एमसीडी पर 2007 से था बीजेपी का कब्जा

दिल्ली नगर निगम की सत्ता पर बीजेपी 2007 से लगातार काबिज थी. बीजेपी ने 2007 में कांग्रेस को मात दी थी. 2017 में तो बीजेपी ने दो तिहाई बहुमत के साथ अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था. 

दिल्ली एमसीडी में बीजेपी बनाम कांग्रेस की लड़ाई

1997 के एमसीडी चुनाव में बीजेपी को 134 वॉर्ड में से 79 और कांग्रेस को 37 सीटों पर जीत मिली थी. एमसीडी में कांग्रेस आखिरी बार 2002 में जीती थी. उस वक्त एमसीडी के 134 वॉर्ड के चुनाव में कांग्रेस ने 108 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी सिर्फ 16 सीट ही जीत पाई थी. उस वक्त दिल्ली में कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मुकाबला होता था. किसी तीसरी पार्टी का कोई ज्यादा अस्तित्व नहीं था. 

2007 से एमसीडी में  थी बीजेपी की धाक

2007 में दिल्ली एमसीडी में कुल 272 वॉर्ड हो गए थे. इस बार बीजेपी ने बाजी पलटते हुए एमसीडी के सत्ता पर अपना कब्जा बना लिया. बीजेपी 272 में से 164 सीटों पर जीत गई, जबकि कांग्रेस 67 सीटों पर सिमट गई. मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) 17 सीट हासिल करने में कामयाब रही. 

2012 चुनाव से पहले दिल्ली एमसीडी के 3 टुकड़े

साल 2012 में दिल्ली नगर निगम के तीन टुकड़े हो गए थे. पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के शासनकाल में एमसीडी को तीन भागों में बांटा गया. दरअसल कांग्रेस ने 2007 में एमसीडी की सत्ता को खो दी थी. बीजेपी लगातार मजबूत हो रही थी. दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के बावजूद कांग्रेस के लिए एमसीडी की राहें मुश्किल होती जा रही थी. ऐसे में बीजेपी को नगर निगम में कमजोर करने के मकसद से शीला दीक्षित ने एमसीडी को तीन हिस्सों में बांटने का दांव खेल दिया. 

2012 में बंटवारे से बीजेपी को नहीं हुआ नुकसान

इसके बावजूद बीजेपी का किला बरकरार रहा. 2012 में हुए एमसीडी चुनाव में दिल्ली की जनता ने फिर से बीजेपी पर भरोसा जताया. बीजेपी को उत्तर दिल्ली और पूर्व दिल्ली नगर निगम में स्पष्ट बहुमत मिला और दक्षिण दिल्ली नगर निगम में वो 104 में 44 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. तीनों निगमों को मिलाकर 272 सीटों में से 138 पर बीजेपी का परचम लहराया, जबकि कांग्रेस सिर्फ 77 सीट ही ला सकी. 

2017 एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी की दस्तक

2017 में पहली बार दिल्ली एमसीडी में त्रिकोणीय मुकाबला था. 2015 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने की वजह से अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का हौंसला बुलंदियों पर था. बीजेपी, कांग्रेस के साथ इस बार आप भी एमसीडी के सियासी दंगल में पहली बार ताल ठोक रही थी. दो साल पहले ही विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी से बुरी तरह से मात खाने के बावजूद बीजेपी ने 2017 के एमसीडी चुनाव में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. बीजेपी उत्तर, दक्षिण और पूर्व तीनों ही नगर निगम में स्पष्ट बहुमत हासिल करने में कामयाब रही. तीनों निगमों को मिलाकर 272 सीटों में से 181 पर कमल खिला. ये पिछली बार के मुकाबले 43 सीटें ज्यादा थी. 

2017 में दिल्ली की जनता को दिखा विकल्प

2017 का ही एमसीडी चुनाव था जिसमें दिल्ली की जनता को नया विकल्प दिखने लगा था. नगर निगम का चुनाव पहली बार लड़ रही आप ने कांग्रेस से दूसरे नंबर की हैसियत छीन ली. तीनों ही क्षेत्रों में केजरीवाल की पार्टी दूसरे नंबर पर रही. आप को तीनों निगम मिलाकर 49 सीटें मिलीं. कांग्रेस 31 सीटों पर सिमट गई. यही वो चुनाव था जिसमें एक ओर बीजेपी ने अपना सबसे उम्दा प्रदर्शन किया, तो दूसरी ओर भविष्य में एमसीडी चुनाव के लिए उसका विकल्प भी दिल्ली की जनता के सामने दिखने लगा. इस चुनाव में बीजेपी को 36% से ज्यादा वोट मिले, तो आम आदमी पार्टी को पहली बार में ही 26% से ज्यादा वोट मिल गए. 

'बीजेपी VS कांग्रेस' की बजाय 'बीजेपी VSआप' 

2017 के चुनाव में दिल्ली के जनता से मिले समर्थन से केजरीवाल की पार्टी को लगने लगा कि आने वाले वक्त में वो विधानसभा की तरह ही एमसीडी में भी बीजेपी को पछाड़ सकती है. ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि कई सालों के बाद दिल्ली एमसीडी चुनाव 'बीजेपी बनाम कांग्रेस' से शिफ्ट होकर 'बीजेपी बनाम आप' हो गया. रही सही कसर 2020 के विधानसभा चुनाव ने निकाल दी.

2020 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर झाड़ू का जादू चला. आप ने पिछले प्रदर्शन को दोहराते हुए दिल्ली की सत्ता पर कब्जा बरकरार रखा. ये जीत आगामी एमसीडी चुनाव के नजरिए से केजरीवाल की पार्टी के लिए संजीवनी बूटी का काम कर गई. 

तीनों नगर निगम के विलय का दांव गया बेकार

बीजेपी को अंदेशा था कि एमसीडी चुनाव में उसे दिल्ली की जनता का गुस्सा झेलना पड़ सकता है. इसलिए इस साल मार्च में केंद्र सरकार ने दिल्ली के तीनों नगर निगमों को मिलाने का फैसला किया. एक बार फिर से दिल्ली के लिए एक ही एमसीडी कर दिया गया. उत्तरी दिल्ली नगर निगम (NDMC), दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (SDMC) और पूर्वी दिल्ली नगर निगम (EDMC) के विलय के बाद ये दिल्ली का पहले नगर निगम चुनाव था. नए परिसीमन के बाद कुल वॉर्डों की संख्या 272 से घटकर 250 हो गई.  

पहले से ज्यादा वोट लाकर भी AAP से पिछड़ी बीजेपी 

केजरीवाल के मैजिक के बावजूद बीजेपी के वोट शेयर पर असर नहीं पड़ा है. इस बार एमसीडी चुनाव में बीजेपी को 39% जबकि आप को 42% वोट मिले हैं. वहीं कांग्रेस को सिर्फ 11.68% वोट मिल पाया. 77 सीटों के नुकसान के बावजूद बीजेपी के वोट शेयर इस बार करीब 3% बढ़े हैं. हालांकि आम आदमी पार्टी के वोट शेयर में 16% का इजाफा हुआ है. बीजेपी के लिए एमसीडी चुनाव में सिर्फ यही एक राहत की बात है. कांग्रेस के वोट शेयर में भारी गिरावट का फायदा आप को हुआ है. पिछली बार के मुकाबले कांग्रेस को करीब 10% कम वोट मिले हैं. नतीजों से साफ है कि कांग्रेस के कमजोर होते जनाधार का सीधा फायदा केजरीवाल की पार्टी को हुआ है. 

बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव में जीत सपने जैसा

बीजेपी के लिए दिल्ली में विधानसभा चुनाव जीतना अब सपने जैसा लगने लगा है. उसके लिए 1998 से एमसीडी और लोकसभा ही एकमात्र सहारा रह गया था. बीजेपी दिल्ली की सत्ता से 1998 से बाहर है. जिस उत्साह के साथ दिल्ली की जनता अब तक लोकसभा और एमसीडी चुनाव में बीजेपी पर अपना प्यार लुटाती रही थी, विधान सभा चुनाव में ऐसा नहीं हो पाता है. 69वां संविधान संशोधन कानून, 1991 के जरिए दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधान सभा और मंत्रिपरिषद का प्रावधान किया गया. 

सिर्फ 1993 में बीजेपी बना पाई है दिल्ली में सरकार

इसके बाद 1993 में पहली बार दिल्ली विधान सभा चुनाव हुए. अब तक सात बार विधान सभा चुनाव हुए हैं. बीजेपी सिर्फ एक बार 1993 में मदन लाल खुराना के दम पर दिल्ली विधान सभा चुनाव में बहुमत हासिल कर पाई है. इसके अगले ही चुनाव में बीजेपी के हाथों से दिल्ली की सत्ता चली गई. 1998 से यहां कांग्रेस का राज आ गया. उसके बाद 15 साल तक शीला दीक्षित की अगुवाई में यहां कांग्रेस की सत्ता रही. 

2013 से आम आदमी पार्टी का सियासी सफर शुरू

2013 में पहली बार दिल्ली विधान सभा के सियासी शतरंज में केजरीवाल की पार्टी ने अपने मोहरे उतारे. इस विधान सभा चुनाव से ही आप के सियासी सफर की शुरुआत हुई. 32 सीट जीतकर बीजेपी 1993 के बाद पहली बार सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, तो आप अपनी पहली कोशिश में ही 28 सीट जीतने में कामयाब रही. इस बाद कांग्रेस के समर्थन से आप ने सरकार भी बना ली और अरविंद केजरीवाल 28 दिसंबर 2013 को पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. यहीं से दिल्ली के सियासत में बीजेपी-कांग्रेस के अलावा नए खिलाड़ी का आगाज हो गया. आम आदमी पार्टी अब दिल्ली की जनता की आवाज बनने की राह पर चलने लगी.

2015 विधानसभा चुनाव आप की ऐतिहासिक जीत

केजरीवाल ज्यादा वक्त तक मुख्यमंत्री नही रह पाए. उन्हें सिर्फ 49 दिनों में ही इस्तीफा देना पड़ा. 2015 में फिर से दिल्ली विधान सभा चुनाव हुआ. इसमें आप ने 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज कर ली. बीजेपी सिर्फ तीन सीट ही जीत पाई और कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुला. पांच साल बाद 2020 के विधान सभा चुनाव में एक बार फिर से झाड़ू की लहर में सभी विपक्षी दल साफ हो गए. आप को 62 सीटें मिली, जबकि बीजेपी को 8 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. इस बार भी कांग्रेस का खाता नहीं खुला.

लोकसभा में  AAP का खाता खुलना बाकी

लगातार दो बार दिल्ली की सत्ता पर कब्जा करने के बाद केजरीवाल का फोकस बीजेपी के एमसीडी रूपी किले को ध्वस्त करने पर टिक गया. उन्होंने ऐसा कर भी दिया. दिल्ली की सत्ता के लिहाज से बीजेपी के लिए 2025 में 27 साल का वनवास हो जाएगा. विधानसभा के नजरिए से दिल्ली बीजेपी का गढ़ नहीं बन पाई है, लेकिन एमसीडी की तरह ही बीजेपी के लिए दिल्ली की लोकसभा सीटें अभेद्य किला है. 

1999 में दिल्ली की सभी लोकसभा सीटों पर कमल खिला

आम चुनाव के नजरिए से दिल्ली के सियासी मैदान में बीजेपी का खाता पहली बार 1989 के लोक सभा चुनाव में खुला था. इसमें बीजेपी यहां की 7 में से 4 सीटें जीतने में कामयाब रही. धीरे-धीरे उसका ग्राफ बढ़ता गया. 1991 लोक सभा चुनाव में  बीजेपी को दिल्ली में 5 सीटों पर जीत मिली. अगले आम चुनाव यानी 1996 में भी बीजेपी के लिए जीत का यही आंकड़ा रहा. 1998 में 7 में से 6 सीटें बीजेपी के खाते में गई. इसके अगले साल ही देश में फिर से लोक सभा चुनाव हुए. इस बार दिल्ली की जनता ने खुल कर बीजेपी का साथ ही. 1999 के आम चुनाव में पहली बार बीजेपी ने दिल्ली की सभी 7 सीटों पर अपना परचम लहराया. 

लोकसभा चुनाव में बीजेपी का बरकरार है जादू

हालांकि इसके अगले चुनाव में ही दिल्ली के लोगों के बीच से बीजेपी की खुमारी उतर गई.  2004 के आम चुनाव में बीजेपी दिल्ली की 7 में से सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज कर पाई थी, बाकी 6 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी.  2009 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी दिल्ली में खाता भी नहीं खोल पाई और सभी 7 सीट पर कांग्रेस ने कब्जा जमा लिया. लेकिन इसके बाद 2014 और 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को दिल्ली की जनता प्यार जमकर मिला. दोनों ही बार बीजेपी दिल्ली की सभी लोक सभा सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही. लोक सभा चुनाव के नजरिए से 2014 से दिल्ली पर बीजेपी का एकछत्र राज है. 2014 और 2019 में मोदी लहर का असर दिल्ली की सीटों पर भी रहा है. दिल्ली में लोकसभा चुनाव में मोदी-शाह की जोड़ी का जादू चलता है, लेकिन विधानसभा और अब एमसीडी में बीजेपी को इस जोड़ी का भी सहारा नहीं मिल रहा है. 

लोकसभा में केजरीवाल कर पाएंगे सेंधमारी?

विधानसभा और एमसीडी के सियासी दंगल में अंगद का पैर बनने के बाद आम आदमी पार्टी की नजर भविष्य में दिल्ली की लोकसभा सीटों पर भी रहेगी. दिल्ली में यही बीजेपी का वो किला बचा है, जिसमें आम आदमी पार्टी अभी तक सेंध नहीं लगा पाई है.  2014 और 2019 में पूरी जोर-आजमाइश के बावजूद केजरीवाल की पार्टी दिल्ली की जनता का समर्थन हासिल नहीं कर पाई. देखना दिलचस्प होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव  यानी 2024 में बीजेपी अपने इस किले को केजरीवाल के झाड़ू से बचा पाती है या नहीं.

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