आम आदमी पार्टी ने बहुमत हासिल करने के साथ ही आखिरकार एमसीडी में बीजेपी के 15 साल के वर्चस्व को ध्वस्त कर दिया है. एमसीडी के 250 वॉर्डों पर हुए चुनाव में आप 130 से ज़्यादा सीटें जीतती दिख रही है. दूसरे नंबर बीजेपी दिख रही है जो क़रीब 100 सीटों पर जीत दर्ज़ कर रही है. वहीं कांग्रेस दहाई का भी आंकड़ा नहीं छू रही है.


चुनाव के नतीजों ने बता दिया है कि जिस एमसीडी को लेकर आम आदमी पार्टी, बीजेपी पर लगातार निशाना साधती रही है, उसको सुधारने का जिम्मा भी अब पार्टी के पास ही है. लुटियंस जोन, कैंट, दिल्ली पुलिस और दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी को छोड़कर करीब-करीब पूरी दिल्ली अब आम आदमी पार्टी के पास है. लेकिन सत्ता के साथ-साथ जिम्मेदारियां भी आती हैं और दिल्ली में एमसीडी चुनाव में जीत के बाद कई ऐसी चुनौतियां हैं जिससे अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को पार पाना होगा.


कूड़े का पहाड़ सबसे बड़ी चुनौती 


लैंडफिल साइटों पर जमा कूड़े का पहाड़ एमसीडी के नए नेतृत्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. एमसीडी चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी ने कचरे के पहाड़ को मुद्दा बनाया था और वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी जीतती है तो वह इस कूड़े के पहाड़ को खत्म कर देंगे. हालांकि ये दावों को पूरा करना बेहद ही मुश्किल है.


लेकिन वर्तमान में उन पहाड़ों को हटाने से ज्यादा इस बात पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है कि उन पहाड़ों की ऊंचाई न बढ़े. यानी कि एमसीडी में बनी सरकार को ये तय करना होगा कि दिल्ली का जो कूड़ा है, उसका निस्तारण इन पहाड़ों से हटाकर कैसे किया जाए.


पहले तो रोजमर्रा के कूड़े का निस्तारण ही सबसे बड़ी चुनौती होगा और जो कचरे के पहाड़ दशकों में खड़े हुए हैं, उन्हें हटाने में भी दशक ही लग जाएंगे. लेकिन इसकी वजह से जो छवि धूमिल होगी, उससे निजात पाना भी एक बड़ी चुनौती होगी.


इसके अलावा दिल्ली के कई क्षेत्रों में खुली नालियों से लोग काफी परेशान है.  ट्रैफिक जाम भी पब्लिक की रफ्तार को रोक देता है. सड़कों पर स्ट्रीट लाइट की भी कमी है. इसके अलावा पानी के बेहतर निकास न होने की वजह यहां की जनता काफी परेशान है. अब देखना होगा कि केजरीवाल जनता का भरोसा जीत पाती है या नहीं.


एमसीडी की आर्थिक हालत 


इस जीत के बाद आम आदमी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती एमसीडी की आमदनी और खर्च के बीच सामंजस्य बिठाने की होगी. दिल्ली नगर निगम की जितनी आमदनी है, उससे कई गुना अधिक खर्च है.


ऐसे समझिये की दिल्ली नगर निगम की हर साल की कमाई लगभग 4800 करोड़ रुपये की है. इसमें 2800 करोड़ रुपये तो एमसीडी को अपने इंटरनल सोर्स से मिलते हैं, जिनमें प्रॉपर्टी टैक्स, विज्ञापन, पार्किंग टैक्स और टोल टैक्स से हुई कमाई है. बाकी करीह 2000 करोड़ रुपये दिल्ली की प्रदेश सरकार देती है. लेकिन खर्च एमसीडी का आमदनी से करीब तीन गुना है. 


नगर निगम के पास लगभग एक लाख से ज्यादा कर्मचारी है जिनका वेतन और पेंशन पर हर महीने लगभग 775 करोड़ खर्च होते हैं. यही खर्च एक साल में लगभग 9300 करोड़ रुपये हो जाता है. बाकी अन्य काम जैसे साफ-सफाई, कचरे की ढुलाई से लेकर स्ट्रीट लाइट्स का रखरखाव जैसी तमाम और चीजें हैं, जिनपर हर महीने का खर्च है. कचरे की ढुलाई का खर्च करीब-करीब 300 करोड़ रुपये साल का है. वहीं दिल्ली में लगीं करीब 2.2 लाख स्ट्रीट लाइट्स का बिल ही करीब 100 करोड़ का आता है.  अगर एक लाइन में कहें तो एमसीडी को अपनी आमदनी का करीब तीन गुना ज्यादा हर साल खर्च करना पड़ता है.


इन पैसे की कमी की कारण ही एमसीडी हमेशा से विवादों में रहती है और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का बीजेपी से टकराव की भी सबसे बड़ी वजह यही रही है. 15 साल से एमसीडी पर काबिज बीजेपी का हमेशा से ये आरोप रहा है कि दिल्ली सरकार एमसीडी का फंड नहीं दे रही है. वहीं केजरीवाल सरकार बार-बार भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर कहती आई है कि दिल्ली सरकार का तो एमसीडी को फंड देना बनता ही नहीं है.


एमसीडी को जो कर्मचारी अपनी सैलरी-पेंशन को लेकर लगातार हड़ताल करते रहे हैं और जिसकी वजह से दिल्ली परेशान होती रही है, वो परेशानियां खत्म हो पाएंगी. ये एक ऐसी बड़ी चुनौती है, जिससे पार पाना केजरीवाल के लिए कतई आसान नहीं होगा. क्योंकि  एमसीडी की आमदनी और खर्च में जमीन-आसमान का अंतर है.


अब हर काम केजरीवाल के नाम


सीएम केजरीवाल के सामने एक और चुनौती लोगों के उम्मीदों पर खड़े उतरने की आएगी. एमसीडी चुनाव के लिए केजरीवाल ने दिल्ली के सुंदरीकरण से लेकर साफ-सफाई और स्कूल-अस्पतालों की बेहतर व्यवस्था की बात की थी. उन्होंने 10 गारंटी दी थी जिसे पूरा करना और दिल्ली की जनता के उम्मीदों पर खड़ा उतरना आसान नहीं होगा. इससे पहले केजरीवाल किसी भी काम के ना पूरा होने का ठीकरा बीजेपी पर फोड़ देते थे. तो बीजेपी केजरीवाल पर. लेकिन अब केजरीवाल को ही इसका जवाब देना होगा. 


बढ़ेगा केंद्र से टकराव 


आम आदमी पार्टी का केंद्र से टकराव कोई नई बात नहीं है. दोनों पार्टियों को कई मौके पर एक दूसरे के आमने सामने देखा गया है. अब क्योंकि एमसीडी में आप का शासन है ऐसे में अब बजट को लेकर भी अरविंद केजरीवाल का केंद्र से टकराव बढ़ना लाजमी है. क्योंकि अरविंद केजरीवाल बार-बार केंद्र सरकार से मांग करते आए हैं कि म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में केंद्र सरकार को प्रति व्यक्ति 485 रुपये का फंड देना चाहिए.


लेकिन केंद्र सरकार की ओर से सीधे तौर पर कभी ये फंड दिल्ली सरकार को नहीं मिला है. और ऐसा नहीं है कि सिर्फ मोदी सरकार के पिछले आठ साल में ही ऐसा हुआ है. जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हुआ करते थे, तब भी केंद्र की ओर से एमसीडी को दिया जाने वाला 485 रुपये प्रति व्यक्ति वाला फंड नहीं दिया गया है. मोदी सरकार के आने के बाद भी जब एमसीडी में बीजेपी ही थी, तब भी ये फंड नहीं मिला. लेकिन अब जब एमसीडी केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप के पास आ गई है तो इस फंड पर टकराव बढ़ना तय है.


2024 लोकसभा चुनाव में बढ़ेगा प्रदर्शन का दबाव


साल 2012 से ही दिल्ली की राजनीति में उतरी आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में लगातार बेहतर प्रदर्शन किया है. लेकिन दो लोकसभा चुनाव यानी कि 2014 और 2019 के साथ ही 2017 के एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन इतना खराब रहा है कि वो खुद इसका जिक्र करना नहीं चाहते. लेकिन अब 2022 के एमसीडी चुनाव में जीत दर्ज वाली आम आदमी पार्टी के सामने अब लोकसभा का चुनाव आने जा रहा है, जिसमें डेढ़ साल से भी कम का वक्त बचा है.


दिल्ली में लोकसभा की कुल सात सीटे हैं और एमसीडी चुनाव के नतीजे इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि आम आदमी पार्टी ने बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन किया है. इन आंकड़ों को देखते हुए आम आदमी पार्टी पर इस बात का दबाव तो बढ़ना स्वाभाविक है कि एमसीडी के वोटरों को 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने पक्ष में किया जा सके और कम से कम लोकसभा में खाता तो खोला ही जा सके.