नई दिल्ली: एमडीएच मसाला के जरिए घर-घर तक पहुंच बनाने वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी ने निधन की खबरों को खारिज किया है. एमडीएच के मालिक धर्मपाल गुलाटी का वीडियो सामने आया है जिसमें वह बिल्कुल स्वस्थ हैं. वीडियो में धर्मपाल गुलाटी गायत्री मंत्र का जाप कर रहे हैं और काफी खुश नजर आ रहे हैं. इससे पहले मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि धर्मपाल गुलाटी ने 95 साल की आयु में दिल्ली के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली.
एनडीटीवी के पत्रकार उमाशंकर सिंह ने यह वीडियो बनाया है. जिसमें गुलाटी के नजदीकी लोग उनके लंबे स्वास्थ्य की कामना कर रहे हैं.
पाकिस्तान के सियालकोट में 27 मार्च 1923 को जन्में धर्मपाल का जीवन काफी संघर्ष भरा रहा. उन्होंने भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद दिल्ली में शरण ली और पेट भरने के लिए तांगा चलाने का काम शुरू किया. लेकिन समय बदला और उन्होंने अपने पुश्तैनी कारोबार मसाले का काम शुरू किया. दिल्ली में नौ फुट बाई चौदह फुट की दुकान खोली और आज दुनिया भर के कई शहरों में महाशियां दी हट्टी (एमडीएच) के ब्रांच हैं. फायदे का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि साल 2016 में एमडीएच की नेट इनकम 213 करोड़ रुपये थी.
पांचवीं क्लास में छोड़ दी थी पढ़ाई
धर्मपाल गुलाटी ने अपने संघर्ष भरे जीवन के बारे में एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए एक बार कहा था कि मेहनत, इमानदारी और लगन की वजह से आज लंदन-दुबई में कारोबार है. उन्होंने अपने शुरुआती जीवने के बारे में कहा था, ''उस जमाने में जब मैं पांचवी क्लास तक आया तो सवाल-जवाब होने लगे थे. मास्टर किशोरीलाल जी थे. उन्होंने एक बार डांटा तो मैंने स्कूल छोड़ दिया. फिर जब मैं बड़ा हुआ तो बढ़ई का काम किया. फिर मेरे पिताजी ने अपनी दुकान पर बैठा दिया. उसके बाद हार्डवेयर का काम किया. मुझे एक बार चोट लगी तो मैंने ये काम भी छोड़ दिया. फिर मैं घूम-घूम कर मेहंदी का काम करने लगा.''
मेहंदी बेचते थे एमडीएच के मालिक
उन्होंने आगे कहा, ''मेहंदी के काम के बाद फिर पिताजी के साथ मसाले का काम शुरू किया. लेकिन बंटवारे में सबकुछ खत्म हो गया. भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत की तरफ लाशों भरी गाड़ियां आ जा रही थी. मैं भी पूरे परिवार के साथ दिल्ली आ गया. तब मेरे पास मात्र 15,00 रुपये थे.''
दिल्ली की सड़कों पर चलाया था तांगा
आगे कहते हैं, ''जब मैं भारत आया तो मैं एक दिन चांदनी चौक गया. कुछ लोग तांगे बेच रहे थे. मैंने कहा मियां कितने का है तो उसने कहा आठ सौ का है. मैंने 650 रुपये का तांगा खरीद लिया. कहते हैं न बेकार से कार अच्छी. फिर मैं अपने घर पर आया बड़ी मुश्किले से. तांगा चलाना नहीं आता था. चलाने में बहुत बार मुश्किल का सामना करना पड़ा. मैंने यह काम भी छोड़ दिया. साल 1947 में मैंने दो महीने तक तांगा चलाया.''
एमडीएच की वेबसाइट पर किये गए दावों के मुताबिक, ''धर्मपाल गुलाटी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड और करोल बाग से बारा हिंदू राव तक तांगा चलाते थे. प्रति सवारी दो आना मिलता था.''
उन्होंने कहा था, ''तांगे का काम छोड़कर पूरे परिवार ने फिर से मसाले का काम शुरू किया. हल्दी, मिर्च का काम किया. फिर अजमल रोड पर एक दुकान नौ फूट बाइ चौदह फुट की खोली. उसपर मैंने महाशियां दी हट्टी सियालकोट वाले रजिस्टर्ड लिखी. दुकान में किराने का सामान भी रखता था. बिक्री तेजी से बढ़ी. मैंने उस समय विज्ञापन दिया.''
धर्मपाल गुलाटी आगे कहते हैं, ''मैंने फिर पंजाबी बाग में दुकान ली. उसके बाद खारी बावली में दुकान बनाई. ऐसे ही कारोबार बढ़ता गया. मैं दूसरे जगह मसाला पिसवाता था लेकिन वहां एक दिन मसाला पीसने वाले ने हल्दी में चना डालकर मिलावट शुरू कर दी. मैंने इसकी शिकायत भी की. वह नहीं माना. लेकिन इमानदारी मेरा सिद्धांत रहा. मैंने खुद मसाले की फैक्ट्री खोली. काम काफी तेजी से बढ़ रहा था. मैंने फिर राजस्थान में एक फैक्ट्री लगाई. फिर दुबई और लंदन में काम शुरू किया. पंजाब में कई एजेंसी बनाई.''