नई दिल्ली: पाकिस्तान की कैद में मौजूद कुलभूषण जाधव के लिए भारत को दूसरी बार कॉन्सुलर संपर्क की कवायद भी बेनतीजा ही साबित हुई. इस्लामाबाद में पाकिस्तानी की तरफ से मुहैया कराए गए इस कॉन्सुलर संपर्क के बाद भारत ने इसे छलावा करार देते हुए कहा कि जो मुलाकात कराई गई वो न तो अबाध थी और न ही भयमुक्त बातचीत के लिए मुनासिब. पाकिस्तानी रवैये को अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले के खिलाफ बताते हए भारत ने न केवल अपना विरोध दर्ज कराया है बल्कि साफ किया कि आज हुए घटनाक्रम की रौशनी में अब आगे का कदम तय किया जाएगा.
विदेश मंत्रालय प्रवक्ता के मुताबिक भारत कुलभूषण जाधव के मामले में भयमुक्त माहौल और दखल रहित व्यवस्था के साथ कॉन्सुलर संपर्क की मांग करता रहा है. इस कड़ी में ही 13 जुलाई, 2020 को भी पाकिस्तानी पक्ष के सामने बिना शर्त और अबाध कॉन्सुलर मुलाकात का भारत ने अनुरोध किया था.
पाकिस्तान को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था कि बैठक बिना किसी पाकिस्तानी अधिकारी की उपस्थिति के और भय रहित वातावरण में होनी चाहिए. साथ ही कुलभूषण जाधव और भारतीय कॉन्सुलर अधिकारियों की मुलाकात के दौरान किसी तरह की वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग नहीं होनी चाहिए. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कुलभूषण जाधव अब भी पाकिस्तान की ही कैद में मौजूद है.
दोनों देशों के बीच काफी सलाह-मशविरे के बाद 16 जुलाई की कॉन्सुलर मुलाकात तय हुई. भारतीय खेमे के मुताबिक पाक ने भरोसा दिया था कि वो बिना शर्त और बिना किसी रुकावट के यह मुलाकात आयोजित करने पर सहमत है. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के इसी आश्वासन के बाद भारतीय उच्चायोग के दो कॉन्सुलर अधिकारी गुरुवार को करीब साढ़े तीन बजे कुलभूषण जाधव से मिलने पहुंचे थे.
विदेश मंत्रालय प्रवक्ता के मुताबिक यह काफी अफ़सोसजनक था कि कुलभूषण जाधव और कॉन्सुलर अधिकारियों की मुलाकात के लिए न तो माहौल ठीक था और न ही दिए गए आश्वासनों के अनुरूप था. श्रीवास्तव ने बताया कि भारतीय अधिकारी जब जाधव से मिलने पहुंचे तो डराने वाले तेवरों के साथ पाकिस्तानी अधिकारी वहां मौजूद थे. इस बारे में भारतीय पक्ष के विरोध के बावजूद पाक नुमाइंदे कॉन्सुलर अधिकारियों और जाधव के करीब ही बने रहे.
इतना ही नहीं वहां लगे कैमरे से यह भी स्पष्ट था कि कुलभूषण जाधव के साथ होने वाली बातचीत बाकायदा रिकॉर्ड जा रही थी. मुलाकात कर लौटे भारतीय अधिकारियों ने विदेश मंत्रालय को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया कि जाधव खुद तनाव में थे और उन्होंने स्पष्ट रूप से इस बात के कॉन्सुलर अधिकारियों को संकेत भी दिया. इतना ही नहीं जाधव के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की जा सके इसके लिए लिखित सहमति हासिल करने से भी रोका गया.
ऐसे में भारतीय कांसुलर अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में यह निष्कर्ष जताया कि पाकिस्तान की तरफ से कराई गई कॉन्सुलर मलाकात न तो सार्थक थी और न ही विश्वसनीय. पाकिस्तान के इस रवैये पर अपना विरोध दर्ज कराने के बाद दोनों अधिकारियों को लेकर शाम तक भारतीय उच्चायोग की काली बीएमडबल्यू कार इस्लामाबाद के इंडिया हाउस लौट आई थी.
महत्वपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत यानी आईसीजे से 17 सितंबर 2019 को आए फैसले के ठीक एक साल बाद हुए घटनाक्रम ने पाकिस्तानी रवैये की एक बार फिर पोल खोल दी. कुलभूषण जाधव के लिए दी गई कॉन्सुलर संपर्क की इजाजत को समीक्षा याचिका दाखिल करने के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा था.
आईजासीजे के फैसले पर अमल दिखाने की कवायद में पाक सरकार ने मई 2020 में एक अध्यादेश पारित कर जाधव के लिए समीक्षा याचिका का दरवाजा खोला था. हालांकि इससे पहले पाकिस्तान हमेशा यह कहता रहा कि उसके मौजूदा कानून ही जाधव के मामले में किसी समीक्षा के लिए काफी हैं.
हालांकि पाकिस्तान सरकार द्वारा मई 2020 में अचानक एक अध्यादेश पारित किया गया और भारत को 60 दिनों यानी 19 जुलाई तक इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका दाखिल करने को कहा था. इतना ही नहीं बीते दिनों पाक विदेश मंत्रालय ने खुद ही इस बात का भी ऐलान कर दिया था कि कुलभूषण जाधव ने समीक्षा याचिका दाखिल न करने और अपनी लंबित दया याचिका पर निर्णय का इंतजार करने का फैसला किया है.
पाकिस्तान के नए अध्यादेश के प्रावधानों के मुताबिक जाधव के मामले में या तो वो खुद, या उनकी तरफ से भारतीय उच्चायोग के अधिकारी इस्लामाबाद उच्च न्यालय में समीक्षा याचिका दाखिल कर सकते हैं. जाहिर है जाधव की तरफ से किसी समीक्षा याचिका जैसी कार्रवाई से पहले कॉन्सुलर संपर्क जरूरी है. मुद्दई और वकील के रिश्तों का कानूनी तकाजा भी कहता है कि दोनों को बिना किसी रोकटोक मिलने की इजाजत दी जाए. मगर पाक ने तमाम कायदों को ताख पर रखकर भारत के कॉन्सुलर अधिकारियों को जाधव से बेरोक-टोक बातचीत की इजाजत न तो सितंबर 2019 की कॉन्सुलर मुलाकात में दी थी और न ही 16 जुलाई 2020 की बैठक में.
जासूसी और आतंकवादी गतिविधियों के झूठे आरोप में फंसाए गए पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव 2016 से पाकिस्तानी हिरासत में कैद है. पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने उन्हें पर्दे के पीछे चली कर्रवाई में मृत्युदंड की सजा सुना दी थी. मगर भारतीय नागरिक जाधव को बचाने की कोशिश में भारत ने मई 2017 में अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाया था. हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत में दो साल से अधिक वक्त तक चली कानूनी लड़ाई में पाकिस्तान को शिकस्त का मुंह देखना पड़ा और आईसीजे ने उसे कॉन्सुलर संपर्क के मामलों में वियना संधि के उल्लंघन का दोषी करार दिया.
आईसीजे के फैसले के बाद पाकिस्तान लगातार अमल का दिखावा तो कर रहा है लेकिन उसने अभी तक न तो जाधव से भारतीय अधिकारियों की अबाध मुलाकात होने दी है और न ही उनके कानूनी मामलों से जुड़े दस्तावेज सौंपे हैं. विदेश मंत्रालय के मुताबिक जाधव मामले में भारत को अभी तक न तो एफआईआर भारत को दी गई है और न ही सूबतों के नाम पर कुछ साझा किया गया है.
कुलभूषण जाधव तनाव में दिख रहे थे, पाकिस्तान ने बिना शर्त मुलाकात नहीं करने दी- विदेश मंत्रालय