नई दिल्ली: तब्लीगी जमात मामले की मीडिया रिपोर्टिंग को सांप्रदायिक और झूठा बताने वाली याचिकाओं पर केंद्र के जवाब से सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है. कोर्ट ने कहा है कि अगर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिए फेक न्यूज़ फैलाने पर नियंत्रण की कोई व्यवस्था सरकार नहीं बना सकती तो कोर्ट को किसी और एजेंसी को यह ज़िम्मा सौंपना पड़ सकता है.


याचिकाओं में क्या कहा गया है?


मामले में कुल 4 याचिकाएं दाखिल हुई हैं. इनमें याचिकाकर्ता हैं- जमीयत उलेमा ए हिंद, अब्दुल कुद्दुस लस्कर, डी जे हल्ली फेडरेशन ऑफ मसाज़िद मदारिस और पीस पार्टी. इन याचिकाओं में कहा गया है कि तबलीगी मरकज मामले में मीडिया ने झूठी और भ्रामक खबरें दिखाईं. देश के बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक तबके के खिलाफ भड़काया. 1995 के केबल टेलीविजन नेटवर्क (रेग्युलेशन) एक्ट की धारा 19 और 20 में सरकार को यह अधिकार है कि वह इस तरह के चैनलों के खिलाफ कार्रवाई कर सके. लेकिन सरकार निष्क्रिय बैठी है.


सरकार ने क्या कहा था?


इस मसले पर दाखिल जवाब में सरकार ने कहा था कि जो शिकायतें उसे दी गई थी, उनमें किसी विशेष रिपोर्ट का हवाला नहीं दिया गया था. पूरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर टिप्पणी की गई थी. ऐसे में कोई कार्रवाई कर पाना संभव नहीं था. सरकार ने यह भी कहा था कि वह मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहती है. इसलिए, उसके काम मे बहुत दखल नहीं देती.


आज चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस जवाब पर नाराजगी जताते हुए कहा- "हमने पूछा था कि केबल टीवी नेटवर्क रेग्युलेशन एक्ट से ऐसे मामलों को कैसे रोका जा सकता है? अब तक मिली शिकायतों पर आपने क्या कार्रवाई की है? लेकिन आपका जवाब दोनों मसलों पर कुछ नहीं कहता. बेहतर जवाब दाखिल करें. अगर इस कानून के तहत कोई व्यवस्था नहीं बनाई जा सकती, तो हमें किसी और एजेंसी को ज़िम्मा सौंपना पड़ सकता है."


विस्तृत हलफनामा दाखिल करेंगे- सॉलिसीटर जनरल


केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बचाव करते हुए कहा कि कानूनन सरकार के पास झूठी और शरारतपूर्ण खबरों पर कार्रवाई की पर्याप्त शक्ति है. वह मसले पर विस्तृत हलफनामा दाखिल करेंगे. इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई 3 हफ्ता टाल दी.


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