Supreme Court: मरीजों का बुखार उतारने के लिए इन दिनों डॉक्टरों की तरफ से सबसे ज्यादा लिखी जा रही दवाइयों में से एक डोलो 650 पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक सुनवाई के दौरान गंभीर सवाल उठे हैं. मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की संस्था फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि डोलो 650 (Dolo 650) में पेरासिटामोल का डोज मरीज की जरूरत से ज्यादा रखा गया है. इस दवा को बनाने वाली कंपनी डॉक्टरों को तरह-तरह के लालच देकर उनसे यही दवा लिखवा रही है


दवा की मार्केटिंग के लिए मौजूद कोड को कानूनी दर्जा देने की मांग कर रही मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की संस्था ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और ए एस बोपन्ना की बेंच को बताया कि पेरासिटामोल की 500 मिलीग्राम पद की मात्रा वाली दवाइयों की कीमत को सरकार ने नियंत्रित रखा है. सामान्य रूप से मरीजों की जरूरत भी इतनी मात्रा में ही पेरासिटामोल लेने की होती है.


डोलो के लिए डॉक्टरों को दी गई घूस
क्रोसिन, कालपोल जैसी दूसरी सामान्य दवाए इसी मात्रा के पेरासिटामोल के साथ उपलब्ध हैं. लेकिन डोलो को बनाने वाली कंपनी ने 650 मिलीग्राम मात्रा वाला भी टेबलेट निकाला. उसका मकसद यही था कि दवा की कीमत अधिक रखी जा सके. एसोसिएशन के वकील संजय पारीख ने जजों को बताया कि इस महंगी दवा को पर्चे में लिखवाने के लिए उसने डॉक्टरों को 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा के सामान मुफ्त में दिए हैं या उन्हें महंगी विदेश यात्रा करवाई है.


बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस पर चिंता जताते हुए कहा, "आप जो कह रहे हैं, वह सुन कर मुझे व्यक्तिगत रूप से भी अच्छा नहीं लग रहा है. पिछले दिनों जब मैं बीमार पड़ा था, तब मुझे भी यही दवा दी गई थी. यह निश्चित रूप से बहुत गंभीर विषय है."


कोर्ट ने सरकार से मांगा जबाव?
हालांकि, बेंच ने यह भी कहा कि सरकार या संसद (Parliament) को कोई कानून बनाने का आदेश नहीं दिया जा सकता है. लेकिन मामले में थोड़ी देर की सुनवाई के बाद जजों ने यूनिफॉर्म कोड ऑफ़ फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज को कानूनी रूप देने की मांग पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को 10 दिन का समय दे दिया.


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