ब्यूटी कॉन्टेस्ट में बिना मेकअप उतरना मेलिसा रौफ से पहले किसी ने सोचा भी नहीं होगा
मेकअप को इस हद तक नॉर्मल मान लिया गया है कि आजकल टिकटॉक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर 'ब्यूटी इंफ़्लुएंसर्स' की संख्या लगातार बढ़ रही है.
लंदन में रहने वाली 20 साल की मेलिसा रौफ ने 2022 मिस इंग्लैंड ब्यूटी पीजेंट के सेमीफाइनल राउंड में बिना मेकअप के रैंप पर उतरकर इतिहास रच दिया. उनके इस कदम ने ब्यूटी कॉन्टेस्ट के प्रतिभागियों का भी दिल जीत लिया. जिसके बाद अब वो फाइनल में पहुंच चुकी हैं. उन्होंने कहा, 'मैं असल में क्या और कैसी हूं ये दिखाने से नहीं डरती.'
वैसे इतिहास की मानें तो मेकअप का इस्तेमाल आज नहीं करीब 6000 साल पहले से किया जा रहा है. प्राचीन इजिप्ट में मर्द और औरत दोनों ही मेकअप का इस्तेमाल करते थे. उनका मानना था कि मेकअप लगाकर आप ईश्वर को जल्दी मना सकते हैं. इजिप्ट के लोग आईशैडो का इस्तेमाल भी करते थे.
उस वक्त तांबे के अयस्त का इस्तेमाल आईशैडो के तौर पर किया जाता था. धीरे धीरे समय बीतता गया और मेकअप और सुंदर दिखने की सारी जिम्मेदारी महिलाओं ने अपने कंधे पर ले ली. हालांकि इसमें भी भेदभाव होने लगा. शुरुआत में मेकअप के लिए इस्तेमाल होने वाला रूस सभ्य समाज की औरतें नहीं लगाया करतीं थीं.
आईलाइनर को मेकअप का सबसे पुराना तरीका माना जाता है. आज भले ही आंखों को खूबसूरत बनाने के लिए काजल लगाते हैं लेकिन दशकों पहले इसका इस्तेमाल आंखों को धूप से बचाने के लिए किया जाता था. उस वक्त काजल का इस्तेमाल महिला और पुरुष दोनों ही करते थे. उन दिनों मेकअप का इस्तेमाल मौसम के अनुकूल त्वचा की रक्षा करने के रूप में किया जाता था. बता दें कि दुनिया का पहला सैलून लिजाबेथ अर्डेन ने साल 1910 में शुरू किया था .
किसी महिला या स्त्री की सुंदरता उसके चेहरे से डिसाइड करना हमारे समाज के लिए कुछ नया नहीं है. नई पीढ़ी के लिए खूबसूरती स्मोकी आईशैडो, विंग वाले आईलाइनर और हल्के-गहरे शेड वाले होंठ में सिमट कर रह गई है. सोशल मीडिया से लेकर असल जिंदगी में, मंच पर, स्कीन पर, बॉलीवुड में दफ्तर में, न्यूज चैनल्स में हमें मेकअप में महिलाएं देखने की इस कदर आदत है कि अब हमने इस आर्टिफीशियल चेहरे को ही न्यू नॉर्मल मान लिया है.
मेकअप को इस हद तक नॉर्मल मान लिया गया है कि फिल्मों या टीवी सीरियल्स में लड़कियों को मेकअप के साथ सोते और जागते दिखाया जाता है. यही कारण भी है कि आजकल टिकटॉक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर 'ब्यूटी इंफ़्लुएंसर्स' की संख्या लगातार बढ़ रही है और लोग यूट्यूब पर रोज़ाना औसतन 10 लाख से ज़्यादा ब्यूटी वीडियो देख रहे हैं.
हालांकि 2022 के मिस इंगलैंड ब्यूटी पीजेंट की फाइनलिस्ट मेलिसा रौफ ने इस नॉर्मल को तोड़ा है. मेलिसा इस प्रतियोगिता की पहली व्यूटी क्वीन बनी गई हैं जो बिना मेकअप के मंच पर उतरीं और अब वो फाइनल्स में भी पहुंच गई हैं. बिना मेकअप के रैंप वॉक कर इतिहास रचने वाली मेलिसा रौफ ने कहा कि उन्होंने ये फैसला इसलिए लिया ताकि नेचुरल व्यूटी यानी प्राकृतिक सुंदरता क बढ़ावा मिल सके और युवा लड़कियों और महिलाओं को मेकअप मुक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
मेकअप का चलन सबसे ज्यादा तमाम ब्यूटी कॉन्टेस्ट से ही शुरू हुआ है. इसलिए आमतौर पर किसी भी आम व्यक्ति के लिए ये कल्पना करना काफी मुश्किल है कि ब्यूटी कॉन्टेस्ट में प्रतियोगी बिना मेकअप के मंच पर आएगी और फाइनल्स में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो जाएगी. लेकिन अब इंग्लैंड की एक युवती ने इतिहास बनाया है.
ऐसा ही एक कदम मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में भी उठाया गया. दरअसल अगस्त 2022 में मिस यूनिवर्स के प्रतियोगिता के नियम में बदलाव किए गए जिसके तहत इस प्रतियोगिता में अब विवाहित महिलाओं को ब्यूटी कॉन्टेस्ट में भाग लेने का परमिशन दिया जाएगा. फिलहाल मिस यूनिवर्स की प्रतियोगिता में सिर्फ अविवाहित महिला ही भाग लिया करतीं थीं. ये दोनों ही फैसले बड़े हैं क्योंकि एक तरफ जहां एक महिला ने ब्यूटी कॉन्टेस्ट में बिना मेकअप के रैंप वॉक कर सालों से चली आ रही उस स्टीरियोटाइप को तोड़ा है जहां ब्यूटी कॉन्टेस्ट का पैमाना बड़ी आंखों, लाल सुर्ख होठ, परफेक्ट फीगर था.
ये तो हुई ब्यूटी प्रतियोगिताओं की बात. लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य नहीं होगा कि ग्लैमर की दुनिया से इतर कॉर्पोरेट लाइफ में भी ख़ुद कंपनियां आपको प्रेज़ेंटेबल दिखने के लिए मेकअप करने को कहती हैं. हालांकि साल एबरटे यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च में शामिल लोगों ने बताया कि 'उन्हें लगता है कि मेकअप लगाने वाली औरतें काम को लेकर कम गंभीर होती हैं और इसलिए वे अच्छी टीम लीडर नहीं बन सकतीं.'
ऐसे में ABP न्यूज ने कुछ महिला और पुरुषों से जानने की कोशिश की कि क्या उन्हें भी लगता है कि एक महिला की क़ाबिलियत उनके तैयार होने के तरीक़े से तय की जा सकती है?
पिछले 3 साल से कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने वाली शिवानी कहती है, 'मेकअप करना या नहीं करना किसी भी महिला या पुरुष की पर्सनल च्वाइस हो सकती है. कुछ महिलाएं मेकअप करने के बाद कॉन्फिडेंट फील करतीं हैं तो कुछ अपनी स्कीन के साथ कंफर्टेबल हैं. इस बात का काबिलियत से क्या लेना देना है मैं नहीं समझ पा रही.
वहीं 4 साल से एक प्राइवेट बैंक में काम कर रहे सूरज का इस मामले में सोच बिल्कुल अलग है. उन्होंने कहा कि मेकअप करने वाली लड़कियां हाई मेंटेनेंस होती है. उनके साथ काम करने में मुझे जो परेशानी होती है वह यह कि उनसे दोस्ती करने या एक कम्फर्ट जोन बनाने में एक लंबा वक्त लगता है. जिससे काम पर असर पड़ता है.
40 साल के विजय का कहना है कि लड़कियां या महिलाएं मेकअप करें या अच्छे कपड़े पहने इससे उनकी काबिलियत पर कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझे तो लगता है हर किसी को खुद को प्रेजेनटेबल दिखाना चाहिए. इससे एक पॉजिटिव इनर्जी आती है. रही बात उन लड़कों कि जो लड़कियों को कम आंकते हैं उनसे मुझे यही कहना है कि उन्हें भी महिलाओं की तरह ही काम से साथ फिजिक, चेहरे अपनी बॉडी का ख्याल रखना चाहिए.
इसी सवाल के जवाब में विनीता कहती हैं कि मुझे लगता है कि हमारी सोसाइटी ने मेकअप को ज्यादा गंभीरता से ले लिया है. पहले तो लड़किया ट्रेंड के हिसाब से कपड़े पहन के आती हैं उसके बाद उसे संभालने में उनका पूरा दिन निकल जाता है. मैं मेकअप को गलत नहीं कह रही. मेकअप एक आर्ट है जो हर कोई नहीं कर पाता लेकिन कुछ महिलाएं बस इन सब में ही फंस कर रह जाती है.
वहीं ब्राइडल मेकअप आर्टिस्ट ज्योति ने कहा कि मेकअप करना किसी भी इंसान, जाहे वे महिला हो या पुरुष की पर्सनालिटी को निखारता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि टीवी सीरियल में दिखाने जैसी जिंदगी जीनी चाहिए. आज की जेनरेशन में मेकअप का ज्यादा क्रेज इसलिए भी है क्योंकि उन्हें फिल्टर के पीछे की तस्वीर पसंद आने लगी है. उन्हें लगता है कि जब फिल्टर किसी इंसान को इतना खूबसूरत बना सकता है तो वो रीयल लाइफ में फ्लॉज छुपाने के लिए मेकअप का इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन आज की जेनरेशन को ये समझने की जरूरत है कि कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं होता.