Assam Districts Merger Impact: जनसंख्या बढ़ने की वजह से राज्यों में जिलों की संख्या बढ़ाने की मांग होती है, लेकिन असम में उसका उल्टा हुआ है. असम की हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) सरकार ने 2022 के आखिरी दिन यानी 31 दिसंबर को सूबे में जिलों को कम करने का फैसला लिया.


असम सरकार ने 4 जिलों को उन पुराने जिलों में  मिलाने का फैसला किया है, जिनसे अलग होकर ये नए जिले बने थे. विश्वनाथ (Biswanath), होजई (Hojai), बजाली (Bajali), और तमुलपुर (Tamulpur) अब जिला नहीं रह गए हैं.  विश्वनाथ जिले को सोनितपुर (Sonitpur) में और होजई को नागांव (Nagaon) जिले में मिला दिया गया है. बजाली को बारपेटा (Barpeta) में और तमुलपुर को बक्सा (Baksa) जिले में मिला दिया गया है. इसके साथ ही असम में जिलों की संख्या 35 से घटकर 31 हो गई है. 


जिलों के विलय के समय को लेकर सवाल


किसी राज्य में जिलों को कम करने का ये अनूठा उदाहरण है. असम में हिमंत बिस्वा सरमा की अगुवाई में बीजेपी की सरकार है. सबसे बड़ा सवाल तो ये उठ रहा है कि  मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने ये फैसला उस वक्त क्यों लिया, जब राज्य में परिसीमन करने का आदेश जारी हो गया.  चुनाव आयोग 27 दिसंबर को असम में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की शुरुआत करने का फैसला लेता है. इसी फैसले में असम में 1 जनवरी 2023 से नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन पर रोक लगा दिया जाता है. यानी एक जनवरी के बाद असम की सरकार कोई नई प्रशासनिक इकाई नहीं बना सकती. जिला भी एक प्रशासनिक इकाई है. सवाल यहीं से उठने खड़े होते हैं कि परिसीमन का आदेश जारी होने के बाद सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने आखिर 4 जिलों को पुराने जिलों में मिलाने का फैसला आनन-फानन में क्यों लिया.  इसके पीछे का मकसद क्या है. असम में 2024 में आम चुनाव से पहले परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने की संभावना है.


फैसले को भारी मन से लिया गया बताया


सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने फैसले की जानकारी देते हुए इसके पीछे के कारण का खुलासा नहीं किया. हालांकि उन्होंने इतना कहा कि असम, उसके समाज और प्रशासनिक जरुरतों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला भारी मन से लिए गए हैं. उन्होंने इसे अस्थायी फैसला भी बताया. असम सरकार ने कुछ गांवों और कुछ कस्बों के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में भी बदलाव किया गया है. भले ही 4 जिलों को पुराने जिलों में विलय कर दिया गया है, लेकिन राज्य सरकार ने साफ किया है कि विलय किए गए चार जिलों के पुलिस और न्यायिक जिले जारी रहेंगे. 


हिन्दू-मुस्लिम आबादी के अनुपात  से संबंध!


राजनीतिक जानकारों का कहना है कि परिसीमन से पहले असम में 4 जिलों के फिर से पुराने जिलों में विलय के पीछे इन जिलों में हिन्दू-मुस्लिम आबादी के अनुपात को साधना बड़ा मकसद हो सकता है.  इसे समझने के लिए इन चार जिलों के पहले और अब के आबादी के अनुपात से जुड़े आकड़ों को खंगालना होगा. 


विश्वनाथ-सोनितपुर में हिन्दू-मुस्लिम आबादी 


सोनितपुर की जनसंख्या 2011 में  19.24 लाख थी. इसमें हिन्दू करीब 74 प्रतिशत और मुस्लिम आबादी 18 फीसदी थी.  जब 2011 का जनगणना हुआ था तो उस वक्त विश्वनाथ जिले का अस्तित्व नहीं था. अगस्त 2015 में सोनितपुर से अलग करके इसे जिला बनाया गया था. विश्वनाथ जिला बनने के बाद सोनितपुर की आबादी घटकर 13.11 लाख रह गई. 2011  के मुताबिक विश्वनाथ जिले में आने वाले इलाकों की आबादी 6.12 लाख थी. विश्वनाथ जिले में करीब 84 फीसदी हिन्दू और 8.52% मुस्लिम आबादी है. विश्वनाथ जिला बनने के बाद सोनितपुर में हिन्दू आबादी घटकर 69 फीसदी हो गई. वहीं यहां मुस्लिम आबादी बढ़कर करीब 23 फीसदी हो गई. अब फिर से विश्वनाथ जिले को सोनितपुर में मिलाने से हिन्दू-मुस्लिम आबादी के अनुपात के आंकड़े बदल जाएंगे.  


होजई-नागांव में आबादी का समीकरण


2011 में नागांव जिले की आबादी 28.23 लाख थी, इसमें हिन्दू 43.4 प्रतिशत और मुस्लिम 55.4% थे. होजई अगस्त 2015 में नागांव से ही अलग होकर जिला बना. होजई के अलग होने के बाद नागांव जिले की आबादी 18.92 लाख रह गई. होजई बनने के बाद मुस्लिम आबादी का अनुपात नागांव में बढ़कर 56 फीसदी से ज्यादा हो गया. वहीं हिन्दू आबादी का अनुपात घटकर 43 फीसदी से कम रह गया. उधर होजई की आबादी 2011 के मुताबिक 9.31 लाख थी. इसमें मुस्लिम आबादी 53.65% और हिन्दू आबादी 45.53% थी. अब होजई के  नागांव में विलय के बाद इस जिले में  आबादी के समीकरण फिर से बदल जाएंगे.


बजाली-बारपेटा में आबादी का समीकरण


2011 में बारपेटा  जिले की आबादी 16.93 लाख थी. इसमें हिन्दू आबादी 29 फीसदी और मुस्लिम आबादी  करीब 71 फीसदी थी. बजाली जनवरी 2021 में बारपेटा से अलग होकर नया जिला बना. बजाली के नया जिला बनने के बाद बारपेटा की आबादी 14.39 लाख रह गई.  उसके बाद बारपेटा में मुस्लिम आबादी बढ़कर 77.58% और हिन्दू आबादी घटकर 22.27%  हो गई. नए जिले बजाली की आबादी 2.53 लाख थी. इसमें करीब 68 फीसदी हिन्दू आबादी और 32 फीसदी मुस्लिम आबादी हैं. अब बजाली के बारपेटा में विलय से ये अनुपात फिर से बदल जाएगा.


तमुलपुर-बक्सा में आबादी का गणित


बक्सा जिले की आबादी 2011 जनगणना के मुताबिक 9.50 लाख थी. इनमें हिन्दू आबादी 82.4% और मुस्लिम आबादी 14.29% थी. तमुलपुर बक्सा से अलग होकर जनवरी 2022 में नया जिला बना. ये असम का 35वां और आखिरी नया जिला था. तमुलपुर के अलग होने के बाद 2011 जनगणना के मुताबिक बक्सा जिले की आबादी 5.60 लाख रह गई. तमुलपुर के अलग होने से बक्सा में हिन्दू-मुस्लिम आबादी के अनुपात भी बदल गए. बक्सा में हिन्दुओं की आबादी का अनुपात घटकर 82 फीसदी से नीचे आ गया. और मुस्लिम आबादी का अनुपात बढ़कर 15 फीसदी से ज्यादा हो गया. तमुलपुर की आबादी 3.89 लाख है. इनमें हिन्दू आबादी 83.36% और मुस्लिम आबादी 12.97% है. अब तमुलपुर के बक्सा जिले में फिर से विलय के बाद हिन्दू-मुस्लिम आबादी के अनुपात में बदलाव हो जाएगा. 


परिसीमन पर पड़ सकता है असर!


ये तो तय है कि इन जिलों के विलय से सोनितपुर, नागांव, बारपेटा और बक्सा जिले में हिन्दू-मुस्लिम आबादी के अनुपात फिर से बदल गए हैं. परिसीमन के जरिए असम की विधानसभा और लोकसभा की सीटों का फिर से सीमा तय होगा. गौर करने वाली बात है कि सीटों की संख्या में बदलाव नहीं होना है, सिर्फ निर्वाचन क्षेत्रों के सीमा में बदलाव होना है. ऐसे में 4 जिलों के विलय से  सोनितपुर, नागांव, बारपेटा और बक्सा में आबादी बढ़ेगी.  चूंकि हम सब जानते हैं कि परिसीमन के लिए जनसंख्या ही आधार है, ऐसे में जिलों की संख्या में कटौती का असर निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा पर पड़ना ही है.   


परिसीमन से सीटों की संख्या नहीं बदलेंगी


असम में अभी 126 विधानसभा और 14 लोकसभा सीट है. परिसीमन से सीटों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं में बदलाव होगा. इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के तहत अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित सीटों में भी बदलाव होगा. राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि परिसीमन से ऊपरी असम में कुछ हिन्दू बहुल सीटों के क्षेत्रों में कमी आ सकती है. निचले असम में कई मुस्लिम बहुल सीटों के एरिया में भी बड़े पैमाने पर बदलाव हो सकता है. इसके अलावा ऊपरी असम में सीटें कम होंगी तो निचली असम में सीटें बढ़ेंगी.  परिसीमन के वक्त जिलों की सीमाओं का भी ख्याल रखा जाता है. इस नजरिए से 4 जिलों के विलय के फैसले को विपक्षी दल बीजेपी के पक्ष में बता रहें हैं. 


2001 की जनगणना के आधार पर परिसीमन क्यों?


असम में परिसीमन के लिए 2001 के जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाएगा. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टी इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं. इन दलों का कहना है कि जब 2011 के जनगणना के आंकड़े मौजूद हैं तो फिर 2001 के आधार पर परिसीमन क्यों किया जाए. बीजेपी नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इसका जवाब देते हुए कहते है कि बाकी राज्यों में परिसीमन का काम 2001 के जनगणना के आधार पर हुआ था, इसलिए असम में भी इसे ही आधार बनाया जाना सही है. इस पर विपक्ष का सवाल है कि बाकी राज्यों में परिसीमन 2008 में पूरा हो गया था और उस वक्त 2001 के आंकड़े ही मौजूद थे. अब 2011 के आंकड़े मौजूद हैं तो फिर उसी के मुताबिक परिसीमन होना चाहिए.


विपक्षी पार्टियों के निशाने पर बीजेपी


कांग्रेस ने परिसीमन की प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए कमेटी तक बना दी है. ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) ने इसे सत्ताधारी दल बीजेपी का राजनीतिक एजेंडा करार दिया है. इन दलों की दलील है कि परिसीमन के जरिए बीजेपी निचले असम की मुस्लिम बहुल सीटों पर आबादी के अनुपात को बदलना चाह रही है. इसलिए 4 जिलों को पुराने जिलों में मिलाने का फैसला किया गया है. 2001 के आंकड़ों के मुताबिक परिसीमन होने से निचले असम में कुछ सीटें बढ़ सकती हैं, ऐसे में चूंकि सीटों की संख्या 126 ही रहनी है तो ऊपरी असम की कुछ सीटें कम हो सकती हैं. ऊपरी असम की सीटें हिन्दू बहुल हैं. विपक्ष आरोप लगा रहा है कि  निचली असम में सीटें बढ़ाकर उनका परिसीमन ऐसे किए जाने की कोशिश की जा रही है, जिससे निचले असम में ज्यादातर सीटों पर से मुस्लिम दबदबा खत्म हो जाए.  


एससी-एसटी सीटों का बदलेगा समीकरण!


असम में फिलहाल 8 विधानसभा सीट अनुसूचित जाति (SC) और 16 सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मुसलमान बहुल सीटों को आरक्षित सीटों के साथ मिलाने का प्रयास हो सकता है. असम में बीजेपी को 2016 के विधानसभा चुनाव में 86 सीटें और 2021 के विधानसभा चुनाव में 75 सीटें मिली थी. 2016 में ही बीजेपी पहली बार असम में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नए परिसीमन के बाद अगर 100 से ज्यादा सीटें ऐसी हो जाएं, जहां सिर्फ हिन्दू उम्मीदवार के ही जीतने की संभावना हो, तो ये बीजेपी के पक्ष में जाएगा. बीजेपी पिछले दो बार से असम में 100 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखते आई है. 


2001 और 2011 में हिन्दू-मुस्लिम आबादी


2001 और 2011 की जनगणना के आंकड़ों का तुलना करने से भी बहुत सारी बातें स्पष्ट होती हैं. 2001 की जनगणना के मुताबिक असम की आबादी दो करोड़ 66 लाख थी. इसमें हिन्दुओं की आबादी 1 करोड़ 72 लाख और मुस्लिमों की आबादी 82 लाख थी. 2011 की जनगणना में असम की आबादी 3 करोड़ 12 लाख हो गई. इनमें हिन्दू आबादी 1 करोड़ 92 लाख और मुस्लिम आबादी एक करोड़ 7 लाख है. 2011 की जनगणना के मुताबिक असम में  हिंदू आबादी 61.47%, मुस्लिम आबादी 34.22% और ईसाई आबादी 3.74 फीसदी है. वहीं 2001 की जनगणना के मुताबिक असम में हिन्दू आबादी करीब 65 फीसदी और  मुस्लिम आबादी 30.9% थी. 2001 में असम की 27 में से 6 जिलों में मुस्लिम की आबादी ज्यादा थी. वहीं 2011 की जनगणना के मुताबिक वर्तमान में 9 जिलों में मुसलमान बहुसंख्यक हैं. कांग्रेस और तमाम विपक्षी पार्टियां इस वजह से 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन चाहती है.


वोटों का ध्रुवीकरण करने का आरोप


पूरे देश के लिए लोकसभा और विधानसभा की सीटें 2026 तक निश्चित है. उसके बाद संभावना है कि 2021 की जनगणना के मुताबिक पूरे देश में परिसीमन हो. कांग्रेस और AIUDF का भी ये कहना है कि जब 2026 के बाद पूरे देश में परिसीमन होना ही है तो असम के लिए इस कवायद को 2024 तक पूरा करने की क्या जरूरत है. इस कवायद को विपक्षी पार्टियां वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिशों से जोड़ रही है.  असम के मुस्लिम बहुल नौ जिलों में ही विधानसभा की 45 सीटें है और 2021 के विधानसभा चुनाव में 31 मुसलमान विधायक बनें थे. इनमें कांग्रेस के 16 और  एआईयूडीएफ के 15 हैं. 2016 में बीजेपी पहली बार सत्ता में आई थी तो, उस वक्त बीजेपी से एक मुस्लिम विधायक थे. अब बीजेपी से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं हैं. 


बीजेपी आरोपों को निराधार बताती है


बीजेपी का कहना है कि असम में 46 साल से परिसीमन का काम नहीं हुआ है. बीजेपी विपक्षी पार्टियों के आरोपों को निराधार बताते हुए कहती है कि बीते 46 साल में असम के भूगोल और जनसंख्या में काफी बदलाव हुआ है. परिसीमन के जरिए ही लोगों के राजनीतिक हितों की रक्षा मुमकिन है. बीजेपी इसे 1985 के असम समझौते के क्लॉज 6 के प्रावधानों को लागू करने की दिशा में भी जरूरी कदम बता रही है. उस क्लॉज में  असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और धरोहर के संरक्षण और उसे बढ़ावा देने के लिये उचित संवैधानिक, कानूनी और प्रशासनिक उपाय करने का प्रावधान है.


असम में 1976 के बाद हो रहा है परिसीमन


दरअसल हिमंत बिस्वा सरमा चाहते हैं भविष्य में परिसीमन के लिए जनसंख्या के अलावा अन्य मानदंडों पर भी विचार होना चाहिए. फिलहाल विधानसभा और लोकसभा सीटों का परिसीमन जनसंख्या के आधार पर ही होता है. असम में 46 साल बाद परिसमीन का काम हो रहा है. इससे पहले 1971 की जनगणना के आधार पर असम में 1976 में परिसीमन किया गया था. उस वक्त ये कार्य  परिसीमन अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत हुआ था. असम में 2021 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में सूबे में परिसीमन कराने का वादा किया था. केंद्रीय कानून मंत्रालय  ने 15 नवंबर, 2022 को  भारत निर्वाचन आयोग से असम में परिसीमन कराए जाने का अनुरोध किया था. उसके बाद चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 8ए के अनुसार असम में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का कार्य शुरू करने का फैसला लिया. 
 
पूरे देश में 2008 में पूरा हुआ था परिसीमन


पूरे देश में आखिरी बार परिसीमन का काम 2008 में पूरा हुआ था. इसके लिए परिसीमन अधिनियम 2002 के तहत एक परिसीमन आयोग बनाया गया था. इसका मकसद 2001 के जनगणना आंकड़ों के आधार पर लोक सभा और राज्य विधानसभा सीटों का परिसीमन किया जाना था. लेकिन असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड में उस वक्त परिसीमन नहीं किया गया. अशांति और सामाजिक सौहार्द बिगड़ने के भय की वजह से उस वक्त इन राज्यों में परिसीमन का कार्य नहीं किया गया. उस वक्त गठित परिसीमन आयोग ने इन चार पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों के संबंध में परिसीमन अभ्यास और परिसीमन आदेश, 2008 पूरा किया. फिर 2020 के फरवरी में  केंद्र सरकार ने सुरक्षा संबंधी मुद्दों के कारण असम, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में परिसीमन को स्थगित करने वाले अपने पहले के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया था.  नोटिफिकेशन के रद्द होने के बाद इन राज्यों में परिसीमन का रास्ता साफ हुआ था. हालांकि उसके बाद भी असम के लिए परिसीमन शुरू नहीं हो पाया था.


अब तक 4 परिसीमन आयोग का गठन


आजादी के बाद से अब तक देश में 4 परिसीमन आयोग का गठन किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 82 में इसकी व्यवस्था की गई है कि हर जनगणना के बाद परिसीमन के जरिए विधानसभा और लोकसभा सीटों का सीमा निर्धारण किया जाए.  परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952 के तहत पहले परिसीमन आयोग का गठन 1952 में किया गया था. दूसरे परिसीमन आयोग का गठन 1963, तीसरे परिसीमन आयोग का गठन 1973 और चौथे परिसीमन आयोग का गठन 2002 में किया गया. 1981 और 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन का कार्य नहीं किया गया.  2002 में संविधान के 84वें संशोधन के जरिए ये तय कर दिया गया कि देश में लोकसभा और विधानसभा की सीटों की संख्या में 2026 तक कोई बढ़ोत्तरी नहीं की जाएगी.


बाकी राज्यों में 2002 के परिसीमन अधिनियम के तहत परिसीमन का कार्य पूरा हो गया है, लेकिन असम के लिए ये बचा हुआ था. अब असम में इसके शुरू होते ही 4 जिलों के पुराने जिलों में विलय से नया विवाद शुरू हो गया है. इससे असम में कई जगह पर विरोध प्रदर्शन भी देखने को मिल रहा है. आने वाले वक्त में परिसीमन का कार्य पूरा होने के बाद ही असम में 4 जिलों के विलय के फैसले के राजनीतिक मंसूबों को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. 


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