(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
बाल दिवस: बच्चों की जान से खिलवाड़, अफसरों की लापरवाही ने लगवाए अस्पतालों के चक्कर
मध्यप्रदेश में गरीब बच्चों के इलाज के लिए सरकार में पैसों की मंजूरी दी लेकिन अफसरों की लापरवाही से बच्चों की जान पर बन आई.
नई दिल्ली: आज बाल दिवस है और मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले में उपचार सहायता योजना आरबीएसके में लापरवाही से बच्चों की जान से खिलवाड़ का बड़ा मामला सामने आया है. जहां एक तरफ सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के बड़े-बड़े दावे करती है वहीं प्रदेश में इन दावों की पोल खुलती नजर आई. जिन गरीब बच्चों को इलाज के लिए सरकार से वित्तीय मदद स्वीकृत भी हो गई थी उन्हें भी मजबूरन अपने पैसों से इलाज कराना पड़ा.
दरअसल शाजापुर के रहने वाले प्रफुल्लित के वाल्व आपरेशन के लिए 1.60 लाख की सरकारी मदद स्वीकृत हुई, लेकिन पत्र में बाबू द्वारा गलत अस्पताल का नाम लिखने से गरीब किसान को अस्पताल में 2.50 लाख देकर तत्काल आपरेशन कराना पड़ा. ये गंभीर बीमार बेटे को लेकर पिता इंदौर से शाजापुर पत्र में सुधार कराने भी आए, लेकिन लापरवाह कर्मियों ने उसे दोबार काट-छांट कर वही पुराना पत्र थमा दिया, जिससे उसे उपचार सहायता योजना आरबीएसके का लाभ नहीं मिल सका.
31 अक्टूबर को डिस्चार्ज होने के बाद यह किसान अपने बेटे को लेकर वापस शाजापुर पहुंचा और पत्र में गलती की वजह से हुई परेशानी बताई तो संबंधित बाबू ने खुद की गलती स्वीकारने की जगह अस्पताल के खिलाफ ही पत्र लिखवाकर भोपाल भेजने की बात कही और रवाना कर दिया. सरकारी मदद स्वीकृत होने के बाद भी करीब तीन लाख के उधार से इलाज कराने से कर्ज डूबे किसान को अब जमीन बेचने की नौबत आ गई है.
इधर दो साल की कनक की भी ऐसी ही कहानी है, जिले के मोहम्मद खेड़ा की कनक जन्म से बोल और सुन नहीं सकती. पिता जितेंद्र ने बेटी का काक्लियर इनप्लांट कराने के लिए समस्त दस्तावेज तैयार कर जिला मुख्यालय जमा कराए, लेकिन इन्हें पहले 6 माह के लिए बच्ची के कान में मशीन लगाने को कहा और अब ये अवधि बीतने के बाद भी कभी साहब की छुट्टी तो कभी अगले हफ्ते आने या बुलाने की बात कहकर इन्हें टाल दिया जाता है. इस बच्ची का एस्टीमेट 13 नवंबर 2018 को तैयार हुआ था, लेकिन पूरा 1 साल बीतने के बाद भी सहायता न मिलने से बच्ची का आपरेशन अटका हुआ है.
ऐसा ही कुछ मामला मेहरखेड़ी के 2 वर्षीय भगवान का है, इसका नाम जरूर भगवान है लेकिन इसके दिल के छेद की बीमारी ने परिजनों को सरकारी दफ्तरों में भिखारी बना डाला है. बच्चे के दादा बलदेव सिंह ने बताया कि बच्चे के दिल में छेद है. उन्होंने मेदांता अस्पताल का एस्टीमेट बनवा कर जिला मुख्यालय पर जमा किया. बीते 8 दिन से लगातार फोन से संपर्क कर रहे हैं लेकिन स्वीकृति नहीं मिली. बुधवार को शाम को फोन कर बताया गया कि मेदांता अस्पताल की मान्यता 11 नवंबर को खत्म हो गई है. किसी दूसरे अस्पताल के दस्तावेज लाएं. भगवान के पिता ने जब फोन करने वाले स्वास्थ्यकर्मी से पूछा कि दस्तावेज 4 नवंबर को जमा किए थे तो 11 नवंबर तक स्वीकृत क्यों नहीं हुए, इसका जवाब नहीं मिला.
वहीं इस बारे में स्वास्थ्य विभाग के अफसर कैमरे के सामने नहीं आ रहे, फोन पर कलेक्टर डॉ वीरेंद्र सिंह रावत ने कहा कि विस्तार से जानकारी भेजें, ताकि जांच कराकर पात्रतानुसार रोगियों को शीघ्र लाभ दिलाया जा सके. अफसरों से थक हार विधायक से जवाब मांगा तो उन्होंने जरूर कहा दोषियों पर कार्रवाई हो.