नई दिल्ली: सफेद दाढ़ी, सफेद बाल और आंखों पर काले फ्रेम का चश्मा पहने उस शख्स को देखकर बेशक लगे कि उसकी ज़िंदगी में रंगों की कमी होगी लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं. वह तो दुनिया की सबसे बेरंग चीज में भी रंग भरने का हुनर जानते थे. उस शख्स का नाम है एम एफ हुसैन यानी मक़बूल फ़िदा हुसैन.
एम एफ हुसैन एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जो रंग से अनंत संभावनाएं तलाश कर लेते थे. वह अपने कैनवास पर जब दुनिया के चित्र बनाते तो हर कोई उसे देखते ही उनके जादू की गिरफ्त में आ जाता. उनके पास दुनिया जीतने के लिए किसी बादशाह की तरह एक बड़ी सेना और बहुत सारे हथियार तो नहीं थे लेकिन वह अनोखी कला थी जिसके दम पर उन्होंने लाखों लोगों का दिल जीता.
मक़बूल फ़िदा हुसैन जब अपने हाथों में पेंट ब्रश थामते और रंगो से चित्र बनाते तो ऐसा लगता जैसे किसी निर्जीव पड़ी चीज में जादू से किसी ने जान फूंक दिया हो. यह उनके जादुई रंगों का ही कमाल था कि उनके द्वारा बनाए गए चित्र करोड़ो रुपये में बिकते थे. यह उनके जादुई हाथों का ही कमाल था कि उन्हें 1955 में पद्म श्री, 1973 में पद्म भूषण और 1991 में पद्म विभूषण से भारत की सरकार ने सम्मानित किया.
कहते हैं कोई भी कलाकार किसी के तारीफ या आलोचनाओं का मोहताज नहीं होता. वह तो बस अपनी कला में खोया रहता है. यही हाल एम एफ हुसैन का भी था और इसलिए ही वह बहुत कम समय में भारत के पिकासो कहे जाने लगे.
एम एफ हुसैन का जन्म 17 सितंबर 1915 को महाराष्ट्र के एक छोटे से कस्बे में हुआ. आंखों में ख्वाबों का रंग भरे हुसैन का सफर जब शुरू हुआ तो उन्हें बेरंग दुनिया के तल्खियों का सामना भी करना पड़ा. शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष किया. शुरू में वह फिल्मों की होर्डिंग बनाया करते थे. यहां एक बात बता दें कि एम एफ हुसैन हमेशा से चित्रकार नहीं बनना चाहते थे बल्कि उनकी मुहब्बत तो सिनेमा थी. हालांकि वह उस आशिक की तरह थे जिन्होंने प्यार सिनेमा से किया और इजहार चित्रकला से किया.
फिल्मों की होर्डिंग बनाते हुए हुसैन ने मुंबई में काफी समय बिताया और अपनी चित्रकारी के कला को मांझा. इसके बाद साल 1940 से उन्हें राष्ट्रीय और अतंर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलनी शुरू हुई. उनकी कई प्रदर्शनी विदेशों में लगी. 1952 में ज्यूरिख और फिर अमेरिका और यूरोप में उनकी प्रदर्शनी लगी जिससे उनकी लोकप्रियता में चार चांद लग गए. जब देश आजाद हुआ उस वक्त एम एफ हुसैन ने मुंबई में प्रतिष्ठित प्रेग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप ज्वाइन किया. फिर ब्रश के साथ जो सफर इस चित्रकार का शुरू हुआ तो फिर 32 साल की उम्र में भारत के सबसे बड़े चित्रकार के तौर पर पहचाने जाने लगे.
हालांकि इस जादुई पेंटर की पेंटिंग पचड़े में भी फंसी. उनके द्वारा बनाए गए कुछ चित्रों पर लोगों ने उनका जमकर विरोध किया. इसके बाद वह भारत छोड़ कतर में जाकर बस गए. बाद में कतर ने उन्हें नागरिकता भी दे दी. हालांकि आखिर के कुछ साल हुसैन ज्यादातर ब्रिटेन में ही रहे. 9 जून 2011 को लंदन में उनकी मृत्यु हो गई.
फिल्मी अभिनेत्रियों के दीवाने थे हुसैन
हुसैन खूबसूरती के दीवाने थे और इसलिए उन्होंने कई नामचीन हस्तियों की तस्वीर बनाई. अपातकाल के दौरान उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तस्वीर बनाई तो वहीं हुसैन माधुरी दीक्षित, तब्बू और मीनाक्षी जैसी अदाकाराओं के दीवाने भी रहे. माधुरी के तो वह ऐसे दीवाने थे कि उन्होंने उनकी फिल्म 'हम आपके हैं कौन' को उन्होंने 67 बार देखी और पेंटिग की पूरी सीरीज उसपर बना डाली.
आज हमारे बीच दुनिया के सबसे बड़े चित्रकारों में एक एम एफ हुसैन बेशक न हो लेकिन दोनों हाथों में रंग उठाकर दूर से ही कैनवास पर फेंककर पेंटिंग को जिवंत बना देने वाले मक़बूल फ़िदा हुसैन की कला आज भी दुनिया के आंखों में रंग भर रही है.