West Bengal Government: तृणमूल कांग्रेस की पश्चिम बंगाल सरकार और बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बीच पके हुए मिड डे मील योजना को लेकर विवाद हो गया है. दरअसल, बीजेपी ने टीएमसी सरकार पर मिड डे मील योजना को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. इससे एक बार फिर बंगाल सरकार और केंद्र सरकार आमने-सामने आ गई हैं. 


हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने 'मिड डे मील' योजना में बीजेपी के लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है. बीजेपी ने इस योजना में 100 करोड़ रुपये से ज्यादा भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. पिछले दिनों केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की समिति 'संयुक्त समीक्षा मिशन' ने पाया था कि पिछले साल अप्रैल से सितंबर के बीच मिड डे मील योजना के तहत पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 16 करोड़ अधिक थाली के बारे में सूचना दी गई. 


राज्य सरकार के प्रतिनिधि के सुझाव पर विचार नहीं 


समिति ने इसकी लागत 100 करोड़ रुपये मूल्य की आंकी है. हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी के इन आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया है कि संयुक्त समीक्षा मिशन ने प्रक्रिया का पालन नहीं किया है और उनके काम करने का तरीका राजनीति से प्रेरित है. संयुक्त समीक्षा मिशन में आमतौर पर किसी योजना के कार्यान्वयन की समीक्षा करने के लिए राज्य और केंद्र के प्रतिनिधि शामिल होते हैं. तृणमूल कांग्रेस के मुताबिक, रिपोर्ट में राज्य सरकार के प्रतिनिधि के सुझाव पर विचार नहीं किया गया.


अनियमितता की शिकायत मिली थी


केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल में जनवरी में केंद्र सरकार द्वारा पोषित योजना पीएम-पोषण योजना प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण (PM POSHAN) में अनियमितता की शिकायत मिलने के बाद योजना की समीक्षा के लिए संयुक्त समीक्षा मिशन का गठन किया था. इस समिति ने विभिन्न स्तरों पर भोजन की थाली परोसे जाने की संख्या को लेकर जानकारी प्रदान करने में गंभीर अनिमितताएं पाईं.


जानकारी दिए बिना ही रिपोर्ट पेश कर दी- शिक्षा मंत्री


इससे पहले, तीन अप्रैल को पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने ट्वीट किया था कि ‘संयुक्त समीक्षा मिशन’ ने राज्य में स्कूलों का दौरा किया, उसने राज्य में परियोजना निदेशक को जानकारी दिए बिना ही रिपोर्ट पेश कर दी.






राज्य के विचारों को शामिल नहीं किया


बसु ने एक बयान में कहा, "इसलिए, अगर रिपोर्ट को उनके विचारों या सुझावों के लिए उनके साथ साझा नहीं किया गया है, तो संयुक्त समीक्षा समिति में 'संयुक्त' का क्या मतलब रह गया है? इसलिए यह स्पष्ट है कि राज्य के विचारों को शामिल नहीं किया गया है. जेआरएम के अध्यक्ष को हम पहले ही विरोधस्वरूप पत्र लिख चुके हैं, जिसका अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है."


बसु ने सवाल किया कि अगर राज्य सरकार के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है तो यह 'लुका-छिपी' क्यों? बसु ने कहा कि मीडिया में जो आंकड़े सामने आए हैं, उन्हें सत्यापित करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, “यह देखना होगा कि क्या जेआरएम रिपोर्ट में वास्तविक तथ्य दर्शाए गए हैं और क्या विसंगतियों के संबंध में राज्य सरकार के विचारों को शामिल किया गया है?”