एक देश, एक चुनाव पर कांग्रेस में मतभेद, पार्टी लाइन के उलट मुंबई के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने किया समर्थन
जहां कांग्रेस ने एक देश एक चुनाव का विरोध किया वहीं पार्टी लाइन से हटकर मुम्बई कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने वन नेशन - वन पोल का समर्थन किया है और कहा है कि इस पर चर्चा होनी चाहिए.
नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ और कुछ अन्य मुद्दों पर सर्वदलीय बैठक बुलाई पर इस मीटिंग में कांग्रेस शामिल नहीं हुई. पार्टी ने कहा कि अगर सरकार चुनाव सुधारों को लेकर कोई कदम उठाना चाहती है तो वह संसद में इस विषय पर चर्चा कराए. हालांकि पार्टी लाइन से हटकर मुम्बई कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने वन नेशन - वन पोल का समर्थन किया है और कहा है कि इस पर चर्चा होनी चाहिए.
आज कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को ध्यान भटकाने वाला बताया और प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई बैठक में नहीं गई. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक पार्टी नेतृत्व ने वरिष्ठ नेताओं एवं कुछ सहयोगी दलों के नेताओं से बातचीत करने के बाद सर्वदलीय बैठक में शामिल नहीं होने का फैसला किया था.
वहीं मिलिंद देवड़ा ने अपने बयान में कहा कि केंद्र सरकार की देश में एक साथ चुनाव कराए जाने का मामला चर्चा कराए जाने लायक है. उन्होंने कहा कि हमें नहीं भूलना चाहिए कि 1967 तक भारत में एक साथ चुनाव हुआ करते थे. एक पूर्व सांसद और ऐसा व्यक्ति होने के नाते जिसने चार चुनाव लड़े हैं मैं मानता हूं कि लगातार चुनावों का दौर चलना अच्छी गवर्नेंस के रास्ते में एक बाधा है. ये राजनीतिज्ञों को जनता के असली मुद्दों को सुलझाने से भटकाते हैं और सरकार के चरित्र में लोकप्रियता को ज्यादा महत्वपूर्ण विषय बना देता है जो कि भारतीयों की बड़ी-बड़ी समस्याओं के सुलझाने का लंबी अवधि का समाधान नहीं है.
हालांकि, चुनावों के बारे में तर्क दिया जाता है कि हमारे सरकारी खजाने को किसी भी कीमत पर अपने लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए तैयार रहना चाहिए जो कि सही नहीं है.
मिलिंद देवड़ा ने ये भी कहा कि भारत को अपनी सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक ही एजेंडे पर काम करने की जरूरत है. राजनीतिक दलों के शक-शुबहा का मजाक नहीं उड़ाया जाना चाहिए बल्कि सरकार को लगातार ऐसे मुद्दों पर सबकी सर्वसम्मति हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए. सरकार को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि इतने महत्वपूर्ण रिफॉर्म के लिए सभी को एक मंच पर लाए बिना वो रिफॉर्म को लागू न करे क्योंकि ये कोई साधारण रिफॉर्म नहीं होते बल्कि इनका राजनीति और गवर्नेंस पर लंबे समय तक चलने वाला असर दिखाई देता है.
मिलिंद देवड़ा ने कहा कि हालांकि मुझे इस बात के कोई सबूत नहीं मिलते जिसमें पता चलता हो कि अगर विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ कराए जाएंगे तो ये केंद्र में काबिज पार्टी को फायदा पहुंचाएगा. अगर सिर्फ हाल की बात करें तो लोकसभा के चुनावों के साथ अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के विधानसभा के चुनाव हुए लेकिन तीन में से दो राज्यों में लोगों ने ऐसाी पार्टियो को चुना जिनका गठबंधन तक बीजेपी के साथ नहीं था. भारत के 70 सालों के चुनावों के सफर को देखें तो ये हमें सिखाता है कि भारतीय वोटर्स जागरुक हैं, जानकारी रखते हैं और राज्य और केंद्र के चुनावों के बीच अंतर करना जानते हैं. हमारा लोकतंत्र इतना कमजोर नहीं है और न ही अपरिपक्व है तो एक देश एक चुनाव पर खुले दिमाग के साथ चर्चा होनी चाहिए.
वैसे, इस मुद्दे पर कांग्रेस एवं सहयोगी दलों की बुधवार सुबह संसद भवन में बैठक होने वाली थी, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जन्मदिन से जुड़े कार्यक्रम की वजह से यह बैठक नहीं हो सकी. कांग्रेस के अलावा विपक्ष के प्रमुख नेताओं में बीएसपी अध्यक्ष मायावती, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी बैठक में हिस्सा नहीं लिया.
हालांकि लेफ्ट पार्टियों की ओर से सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार एवं अन्य नेता इसमें शामिल हुए. बता दें कि कांग्रेस अतीत में भी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के विचार का विरोध करती आई है.