अंतिम विदाई: 'फ्लाइंग सिख' मिल्खा सिंह पंचतत्व में विलीन, चंडीगढ़ में राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार
महान धावक मिल्खा सिंह चार बार एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक विजेता रहे. 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीता. 1956 और 1964 ओलंपिक में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया.
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चंडीगढ़: भारत के महान धावक मिल्खा सिंह का चंडीगढ़ में राजकीय सम्मान के अंतिम संस्कार किया गया. इस दौरान चंडीगढ़ के मटका चौक स्थित शमशान घाट में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, पंजाब के गवर्नर और पंजाब के खेल मंत्री सहित दूसरे लोग मौजूद रहे. इससे पहले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने घर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. मिल्खा सिंह के सम्मान में पंजाब में एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है.
मिल्खा सिंह का शुक्रवार की रात 11:30 बजे चंडीगढ़ पीजीआई अस्पताल में कोरोना की वजह से निधन हो गया. वे 91 साल के थे. इसी हफ्ते उनकी पत्नी निर्मल कौर का भी निधन हुआ था. दोनों कोरोना वायरस से संक्रमित थे.
देशभर में शोक की लहर
मिल्खा सिंह के निधन के साथ एक युग के अंत पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत पूरे देश ने शोक जताया. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि उनके संघर्ष और जुझारूपन की कहानी भारतीयों की आने वाली पीढियों को प्रेरित करती रहेगी.
राष्ट्रपति ने ट्वीट किया ,‘‘खेलों के महानायक मिल्खा सिंह के निधन से दुखी हूं. उनके संघर्ष और जुझारूपन की कहानी भारतीयों की आने वाले पीढियों को प्रेरित करती रहेगी. उनके परिवार और असंख्य प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनायें.’’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया ,‘‘ मिल्खा सिंह जी के निधन से हमने एक बहुत बड़ा खिलाड़ी खो दिया जिनका असंख्य भारतीयों के ह्रदय में विशेष स्थान था. अपने प्रेरक व्यक्तित्व से वे लाखों के चहेते थे. मैं उनके निधन से आहत हूं.’’
पीएम मोदी ने आगे लिखा ,‘‘ मैने कुछ दिन पहले ही श्री मिल्खा सिंह जी से बात की थी. मुझे नहीं पता था कि यह हमारी आखिरी बात होगी. उनके जीवन से कई उदीयमान खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलेगी. उनके परिवार और दुनिया भर में उनके प्रशंसकों को मेरी संवेदनायें.’’
चार बार के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता मिल्खा ने 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी पीला तमगा हासिल किया था. उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हालांकि 1960 के रोम ओलंपिक में था जिसमें वह 400 मीटर फाइनल में चौथे स्थान पर रहे थे. उन्होंने 1956 और 1964 ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया. उन्हें 1959 में पद्मश्री से नवाजा गया था.
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