नई दिल्ली: अमूल दूध पीता है इंडिया.... जिन लोगों ने इस विज्ञापन को टेलीविजन पर देखा है वे डॉ. वर्गीज कुरियन को अच्छे तरह से जानते होंगे. डॉ वर्गीज को भारत में श्वेतक्रांति का जनक कहा जाता है. इन्हें मिल्क मैन के नाम से भी जाना जाता है.
देश में दूध की नदियां बहाने वाले डॉ वर्गीज एक कैमिकल इंजीनियर थे. लेकिन एक किसान नेता त्रिभुवनदास पटेल के कहने पर उन्होने गांधी जी के सहकारिता के फार्मूले को अपनाते हुए तरक्की की ऐसी परिभाषा गढ़ी जिसका लोहा भारत ने ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने माना.
गुजरात के एक खेड़ा गांव से शुरू किए गए प्रयासों से डॉ. वर्गीज कुरियन ने देश के किसानों की दिशा और दशा ही बदल दी.
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आजादी के बाद भारत में दुग्ध प्रबंधन की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी. किसानों के पास पशुधन तो था लेकिन उससे पैदा होने वाले दूध को किस तरह से बाजार में बेचा जाए इसके लिए उनके पास कोई व्यवस्था नहीं थी. इस समस्या से किसान परेशान थे.
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इसके लिए एक कुशल प्रबंधन करने वाले एक योग्य व्यक्ति की जरूरत थी. 26 नवंबर 1921 में केरल की कालीकट में जन्में डा वर्गीज कुरियन ने इस समस्या का हल निकाला और ऐसी व्यवस्था शुरू की जो विश्व का सबसे बड़ा कृषि विकास कार्यक्रम बन गया.
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उनके इसी प्रयास के कारण भारत 1998 में दुध का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया. डॉ. वर्गीज की कोशिशें यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने डेयरी कार्य को भारत की सबसे बड़े आत्मनिर्भर उद्योग के रूप में तब्दील कर दिया.
अमूल इंडिया के उत्पादों की मांग पूरे देश में जोर पकड़ने लगी. डॉ. वर्गीज ने एक तरह से चमत्कार कर दिया था. पूरी दुनिया इस चमत्कार से हैरान थी. डा. वर्गीज ने भैंस के दूध से पाउडर बनाने की तकनीक विकसित कर ली थी जो एक चुनौती थी.
डा.वर्गीज का कहना था कि जहां लक्ष्य और चुनौती न हों वहां काम करने का कोई मतलब नहीं. डॉ. वर्गीज के इस योगदान के चलते उन्हें पद्म विभूषण, विश्व खाद्य पुरुस्कार और मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया. जब डा. वर्गीज कुरियन को जब विश्व खाद्य पुरस्कार प्रदान किया गया तो इस पुरस्कार को उन्होने देश के किसानों को समर्पित कर दिया.