भारत के प्रस्ताव और 72 देशों के समर्थन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाजरा, ज्वार, कोदो समेत 8 मोटे अनाज को अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया है. इसका मतलब होता है छोटे बीज की वो फसलें, जो शुष्क और नम मिट्टी में उपजता हो. मोटे अनाज के सेवन से डायबिटीज, कैल्शियम और पोटेशियम से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है.


भारत में मोटे अनाज की खेती दुनिया में कुल खेती का 20 फीसदी होता है. वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में साल 2020-21 में मोटे अनाज की उपज में 7 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. प्रधानमंत्री मोदी भी मन की बात में मोटे अनाज के उपयोग पर जोर दे चुके हैं. 


मोटा अनाज के विस्तार से राजनीति पर भी इसका असर पड़ना तय माना जा रहा है. मोटा अनाज सरकार बनाने और बिगाड़ने में अहम भूमिका निभा सकता है. 


5 राज्य, जहां सबसे अधिक उत्पादन होता है
पीआईबी के मुताबिक भारत में राजस्‍थान, महाराष्‍ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्‍य प्रदेश में सबसे अधिक मोटा अनाज की उत्पादन होता है. इनमें बाजरा, ज्वार, रागी और कोदो की फसल प्रमुख है. राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में 2023 के अंत में विधानसभा चुनाव होना है.


1. राजस्थान- बाजरे की खेती सबसे अधिक, राजनीतिक मुद्दा भी
विधानसभा की 200 सीटों वाली राजस्थान मोटा अनाज के उत्पादन में सबसे पहले नंबर पर है. यहां बाजरे की सबसे अधिक खेती होती है. देश में बाजरे की कुल खेती का 11 फीसदी उत्पादन राजस्थान में होता है. 


बाजरे की खेती राजस्थान के बाड़मेर, नागौर, जैसलमेर आदि जिलों में होती है. बाजरा वहां का राजनीति मुद्दा भी है. राजनीतिक दल इसकी खरीद की प्रक्रिया आसान करने के लिए कई बार विरोध प्रदर्शन भी कर चुकी है. 


केंद्र सरकार के मुतबिक राजस्थान में साल 2020-21 में 51 लाख हेक्टेयर में मोटा अनाज की खेती हुई, जिसमें 8360 मीट्रिक टन फसल का उत्पादन हुआ. 


मध्य प्रदेश- 20 से अधिक जिलों में खेती, डिंडोरी सबसे चर्चित
मध्य प्रदेश में कोदो, कुटकी, बाजरे और ज्वार की खेती होती है. केंद्र के डेटा के मुताबिक राज्य के 20 से अधिक जिलों में मोटे अनाज की खेती होती है. राज्य का डिंडोरी जिला मोटा अनाज उत्पादन और खेती के लिए चर्चित रहा है. 


मध्य प्रदेश को इसी साल अनाज उत्पादन के लिए बेस्ट इमर्जिंग अवार्ड मिला है. राज्य के आदिवासी इलाकों में मोटा अनाज की खेती और उपयोग सबसे अधिक होता है. 


मध्य प्रदेश विधानसभा की कुल 230 में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व है, जबकि 35 सीटें एससी समुदाय के लिए आरक्षित किया गया है.


कर्नाटक- रीगा की सबसे अधिक खेती, चुनावी मुद्दा भी
कर्नाटक में चुनाव के अब कुछ ही महीने बचे हैं. वहां रीगा और बाजरे की सबसे अधिक खेती होती है. रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक में मोटा अनाज की खेती करीब 26 लाख हेक्टेयर में की जाती है. 


चित्रदुर्ग, बेल्लारी, कोप्पल, बेलगावी और तुमकुरू राज्य के टॉप-5 ऐसे जिले हैं, जहां 2021 में सबसे अधिक मोटा अनाज की खेती हुई है. इन पांच जिलों में विधानसभा की करीब 30 सीटें है. 


छत्तीसगढ़- 1.25 लाख हेक्टेयर में खेती का लक्ष्य
छत्तीसगढ़ में वर्तमान में 69 हजार हेक्टेयर में खेती की जाती है. 368 मीट्रिक मोटा अनाज का उत्पादन साल 2020-21 में हुआ है. राज्य सरकार ने 1.25 लाख हेक्टेयर में खेती का लक्ष्य रखा है.


रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में करीब 12 जिलों में मोटे अनाज की खेती हो रही है. इनमें सरगुजा और राजनंदगांव जैसे प्रमुख जिले भी शामिल हैं. 


मोटा अनाज कैसे बनता जा रहा है चुनावी मुद्दा, 3 प्वॉइंट्स...


1. किसानों की बढ़ती संख्या- मोटा अनाज की खेती और उत्पादन बढ़ रहा है. भारत में साल 2021 में इसका उत्पादन  7 फीसदी बढ़ा है. ऐसे में यह तय है कि इसके बढ़ते बाजार के साथ-साथ इसकी खेती करने वाले किसानों की तादात भी बढ़ रही है. 


कृषि मामलों के जानकार परमजीत सिंह बताते हैं, किसानों की संख्या बढ़ने के साथ ही मोटा अनाज की खेती की समस्याएं भी सामने आ रही है. जहां किसानों की संख्या ज्यादा है (जैसे राजस्थान और कर्नाटक) वहां यह चुनावी मुद्दा बन सकता है. 


2. मोटा अनाज के लिए सब्सिडी मॉडल- छत्तीसगढ़ में धान और गेहूं की खेती छोड़ मोटा अनाज की खेती करने वाले किसानों को 10 हजार रुपए की सब्सिडी मिलती है. साथ ही छत्तीसगढ़ ऐसा पहला राज्य है, जहां मोटा अनाज को एमएसपी पर खरीदा जाता है. 


परमजीत सिंह कहते हैं- यह मॉडल किसानों को भा रहा है. हाल ही में हरियाणा सरकार ने भी धान की खेती नहीं करने वालों को 7 हजार रुपए देने की घोषणा की है. ऐसे में अगर यह मॉडल आगे बढ़ता है, तो आने वाले वक्त में इसका चुनाव पर सीधा असर होगा. 


3. बाजार नहीं होना बन रहा है मुद्दा- भौगोलिक स्थिति की वजह से कई राज्यों में मोटा अनाज की खेती मजबूरी है, लेकिन इसका बाजार नहीं होना अब मुद्दा बनने लगा है. 


राजस्थान के बाड़मेर में कृषि अनुसंधान खोलने का मुद्दा सालों से लंबित है. इस परियोजना को केंद्र से मंजूरी भी मिल चुकी है, लेकिन जमीन आवंटन में देरी की वजह से मामला लटका हुआ है. मोटा अनाज फसल की खरीद की प्रक्रिया जटिल होने की वजह से किसानों को छोटे व्यापारियों के हाथों औने-पौने दाम में बेचना पड़ता है. जिस तरह मोटा अनाज का बाजार बढ़ रहा है वैसे में अगर बाकी फसलों की तरह इसमें भी किसानों को उचित दाम मिलने के बजाए व्यापारियों को फायदा होता दिखा तो ये निश्चित तौर पर चुनावी मुद्दा बनेगा. 


सरकारों की भी जिम्मेदारी होगी जिस तरह उसकी ओर से किसानों को मोटा अनाज की खेती को लेकर प्रोत्साहित किया गया है वैसा ही उचित दाम भी दिलाना होगा. कुल मिलाकर मोटा अनाज अब बड़ा चुनावी मुद्दा बनने को तैयार है.