Stduy On MGNREGS: ग्रामीण विकास मंत्रालय की आंतरिक स्टडी में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के विकेंद्रीकरण के लिए कहा गया है. इस स्टडी में कहा गया है कि ऐसा करने से जमीनी स्तर पर अधिक लचीलेपन की अनुमति मिलेगी. मंत्रालय ने हाल ही में छठे सामान्य समीक्षा मिशन की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया है. जिसने फरवरी में सात राज्यों- आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक, नागालैंड, गुजरात, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में मनरेगा (MGNREGS) समेत कई ग्रामीण विकास योजनाओं को लेकर सर्वे किया था. 


इस स्टडी में फंड वितरण में लगातार देरी का भी जिक्र किया गया. साथ ही सलाह दी गई कि केंद्रीय फंड में देरी होने पर परिक्रामी निधि (Revolving Fund) का उपयोग किया जा सकता है. ऐसे में अब ये जानना भी जरूरी है कि मनरेगा से कितने लोगों को रोजगार मिलता है और सरकार ने इसके लिए कितना बजट तय किया है. 


कितने लोगों को मिल रहा रोजगार?


मनरेगा योजना के तहत हर वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार मिलता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में 31.42 करोड़ लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार मिल रहा है. इनमें से 15.52 करोड़ एक्टिव मजदूर हैं. देश में 5 करोड़ से ज्यादा परिवारों को मनरेगा के तहत काम मिल रहा है. मनरेगा के तहत सबसे ज्यादा लोगों को पश्चिम बंगाल में रोजगार मिल रहा है. इसके बाद बिहार और उत्तर प्रदेश का नंबर आता है. 


सरकार ने कितना बजट किया आवंटित


कार्यक्रम के तहत अब तक करीब 181 करोड़ श्रमिक कार्य दिवस सृजित किये जा चुके हैं. 2022-23 के लिए केंद्रीय बजट में मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे. पीटीआई के सूत्रों के अनुसार, इसमें से करीब 54,000 करोड़ रुपये अब तक राज्यों को दिये जा चुके हैं. मंगलवार (1 नवंबर) को ही केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से करीब 25,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि मांगी है. 


स्टडी में और क्या कहा गया?


ग्रामीण विकास मंत्रालय की स्टडी में कहा गया कि इस योजना में कार्यों की व्यापक श्रेणियों को सूचीबद्ध किया जा सकता है और व्यापक श्रेणियों के अनुसार कार्यों के प्रकार का चयन करने के लिए जमीनी स्तर पर लचीलापन दिया जाना चाहिए. स्टडी में फंड में देरी के कारण पैदा होने वाली समस्याओं का जिक्र उदाहरण के साथ किया गया. उदाहरण के लिए, अरुणाचल प्रदेश के निचले सुबनसिरी जिले में, सर्वेक्षणकर्ताओं ने पाया कि सामग्री घटक में देरी के कारण लाभार्थियों ने परियोजनाओं को पूरा करने के लिए स्वयं निर्माण सामग्री खरीदनी शुरू कर दी. 


बेहद कम है मनरेगा मजदूरी


वहीं हिमाचल प्रदेश और गुजरात में, मजदूरी में तीन या चार महीने की देरी हुई और सामग्री घटक में छह महीने की देरी हुई. अध्ययन में ये भी कहा गया है कि कई राज्यों में मनरेगा की मजदूरी बाजार दर से काफी नीचे थी. वर्तमान में, गुजरात में एक खेतिहर मजदूर की न्यूनतम मजदूरी 324.20 रुपये है, लेकिन मनरेगा मजदूरी 229 रुपये है. निजी ठेकेदार अधिक भुगतान करते हैं. नागालैंड में, वेतन 212 रुपये प्रति दिन है, जो कठिन इलाके की स्थितियों को ध्यान में नहीं रखता है. इसी तरह, जम्मू और कश्मीर में ये 214 रुपये प्रति दिन है. अध्ययन में कहा गया है कि निजी ठेकेदारों की ओर से दी जाने वाली मजदूरी की तुलना में मनरेगा मजदूरी (MGNREGS) बेहद कम है. 


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