मिर्ज़ा ग़ालिब जन्मदिन विशेष: महान शायर, विश्व साहित्य में उर्दू की सबसे ऊंची आवाज़ और आम और खास में सबसे ज्यादा पंसद किए जाने वाले मशहूर शायर मिर्जा गालिब का आज जन्मदिन है. गालिब इश्क व हुस्न के शायर हैं, लेकिन आज बात उनसे जुड़े एक ऐसे किस्से की जिसकी गूंज 165 साल बाद आज भी है. तब उस दौर के दो बड़े शायर शेख मोहम्मद इब्राहीम ज़ौक और मिर्जा ग़ालिब में कौन बड़ा शायर है, इसे लेकर ठन गई थी.


दरअसल, मामला ये है कि मुगल शासक के घर आखिरी शहनाई 2 अप्रैल 1852 को बजी. ये शादी थी बहादुरशाह जफर के बेटे जवां बख्त की. जवां बख्त की मां और बहादुरशाह जफर की सबसे प्यारी बीवी जीनत महल ने अपने बेटे की शादी के लिए सेहरा (निकाह के बाद पढ़ी जाने वाली नज्म) लिखने की जिम्मेदारी मिर्जा गालिब को दी. लेकिन राजघराने में इसको लेकर फूट पड़ गई. शाही खानदान के कुछ सदस्य चाहते थे कि सेहरा उस्ताद शेख इब्राहीम ज़ौक लिखें, जो उस वक़्त दरबार के सबसे बड़े शायर थे. और इस तरह तय हुआ कि जवां बख्त का सेहरा ज़ौक और गालिब दोनों लिखेंगे.


दोनों से सेहरा लिखने का हुक्म दिया गया. लेकिन इस सेहरे में जिस तरह से दोनों शायरों की प्रतिद्वंदिता सामने आई वो ऐतिहासिक घटना बन गई.


विलियम डेलरिम्पल ने अपनी कितबा 'द लास्ट मुग़ल' में लिखा है कि जब लाल किले के लाहौरी गेट से रात के दो बजे बारात निकली तो खूब आतिशबाज़ी हुई, शानदार जश्न हुआ और त्योहारों जैसा समा था, लेकिन जो चीज़ सबसे ज्यादा याद की जाती है वो है ज़ौक और गालिब के लिखे सेहरे और उनसे जुड़े विवाद.


गालिब ने अपने सेहरे के आखिरी शेर में ज़ौक पर तंज कसते हुए कहा,


हम सुखन फहम हैं गालिब के तरफदार नहीं
देखें इस सहरे से कह दे कोई बढ़कर सेहरा


गालिब का यही कहना ऐतिहासिक घटने की बुनियाद बन गई.


कहते हैं कि गालिब के इस अंदाज़ से बाहदुरशाह जफर भी नाराज़ थे. उन्होंने ज़ौक को अपने सेहरे में इसका जवाब देने की सलाह दी. तब ज़ौक ने भी अपने सेहरे में गालिब पर तंज कसा और कहा-


जिसको दावा हो सुखन का ये सुना दो उनको
देख इस से कहते हैं सुखनवर सेहरा


किसने बेहतर सेहर लिखा है? इसपर शाही घराने में मतभेद रहा, लेकिन बहादुरशाह जफर के उत्तराधिकारी राजकुमार मिर्जा फख्ररूद्दीन, जो उस्ताद ज़ौक के शागिर्द थे, कहा- उस्ताद ने मैदान मार लिया है


शाही घराने की इस प्रतिक्रिया के बाद गालिब ने अपनी सुप्रसिद्ध कता-ए-माज़रत (माफीनामा) लिखी. लेकिन यहां भी गालिब अपनी बेइजत्ती का बदला लेने से नहीं चूके. उन्होंने कता-ए-माज़रत में भी जौक पर निशाना साधा और उनका ये शेर बहुत ज्यादा लोकप्रिय हुआ.


उस्ताद-ए- शाह से हो मुझे परखास का खयाल
ये ताब, ये मजाल, ये ताकत नहीं मुझे


पेश है गालिब का सेहरा:-



ख़ुश हो ऐ बख़्त कि है आज तेरे सर सेहरा
बाँध शहज़ादा जवाँ बख़्त के सर पर सेहरा


क्या ही इस चाँद-से मुखड़े पे भला लगता है
है तेरे हुस्ने-दिल अफ़रोज़ का ज़ेवर सेहरा


सर पे चढ़ना तुझे फबता है पर ऐ तर्फ़े-कुलाह
मुझको डर है कि न छीने तेरा लंबर सेहरा


नाव भर कर ही पिरोए गए होंगे मोती
वर्ना क्यों लाए हैं कश्ती में लगाकर सेहरा


सात दरिया के फ़राहम किए होंगे मोती
तब बना होगा इस अंदाज़ का ग़ज़ भर सेहरा


रुख़ पे दूल्हा के जो गर्मी से पसीना टपका
है रगे-अब्रे-गुहरबार सरासर सेहरा


ये भी इक बेअदबी थी कि क़बा से बढ़ जाए
रह गया आन के दामन के बराबर सेहरा


जी में इतराएँ न मोती कि हमीं हैं इक चीज़
चाहिए फूलों का भी एक मुक़र्रर सेहरा


जब कि अपने में समावें न ख़ुशी के मारे
गूँथें फूलों का भला फिर कोई क्योंकर सेहरा


रुख़े-रौशन की दमक गौहरे-ग़ल्ताँ की चमक
क्यूँ न दिखलाए फ़रोग़े-मह-ओ-अख़्तर सेहरा


तार रेशम का नहीं है ये रगे-अब्रे-बहार
लाएगा ताबे-गिराँबारि-ए गौहर सेहरा


हम सुख़नफ़हम हैं ‘ग़ालिब’ के तरफ़दार नहीं
देखें इस सेहरे से कह दे कोई बढ़कर सेहरा


इब्राहीम जौक का सेहरा


ऐ जवां बख्त मुबारक तुझे पर पर सेहरा
आज है यमन वो सादात का तेरे सर सेहरा


आज वो दिन है कि लाए दूर्र-ए-अंजुमन से फलक
कश्ती-ए जर माह-ए-नौ के लगाकर सेहरा


ताबिश हुस्न से मानिंग शुआए-ए-खुर्शीद
रुख-ए-पुर नूर पे है तेने मुनव्वरर सेहरा


वाह कहे सल्ले अलेह कहे सुबहाल अल्लाह
देख मुखड़े पर जो तेरे माह-व-अख्तर सेहरा


तेरे बन्नी और बनने में रहे इखलास बहम
गूंधिए सुरा-ए-इखलास पढ़कर सेहरा


धूम है गुलशन-एअफाक में इस सेहरे की
गाएं मार्गान-ए-नवासंज न क्योंकिर सेहरा


रु-ए-फर्ख पे जो हैं ब-रास्ते अनवार
तार-ए-बारिश बना एक सरासर सेहरा


जिसको दावा हो सुखन का ये सुना दो उनको
देख इस से कहते हैं सुखनवर सेहरा