मिर्जा गालिब के वो शेर जो आज भी हर छोटी बड़ी महफिल की जान होते हैं
ऊर्दू शायरी का जब भी जिक्र आता है तो मिर्जा गालिब का नाम उसमें सबसे पहले आता है. उनकी शायरी में आम आदमी का दर्द और सपने दिखाई देते हैं. यही वजह है कि इतने साल गुजरने के बाद भी गालिब आज के शायर नजर आते हैं. आइए जानते है मिर्जा गालिब से जुड़े रोचक किस्से और उनके दस लोकप्रिय शेर.
नई दिल्ली: भारत के अजीमोशान शायर मिर्जा गालिब को भला कौन भूल सकता है. तीन सौ साल से अधिक बीत जाने के बाद भी मिर्जा गालिब की शायरी आज की शायरी नजर आती है. इंसान की दुश्वारियां हो, जिंदगी में मिलने वाली असफलताएं हों या फिर आम की आदमी की आरजू हो, गालिब की शायरी में हर किसी का आवाज और दर्द सुनाई देता है. यही खूबी मिर्जा गालिब को एक महान शायर बनाती है. हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले बहुत निकले अरमां मेरे फिर भी कम निकले, एक ऐसा शेर है जिसे ऊर्दू शायरी के सबसे लोकप्रिय शेर में से एक कहा जाए तो गलत नहीं होगा. दिल्ली के बल्लीमारान मोहल्ले की तंग गलियों में जीवन गुजारने वाले मिर्जा असदुल्ला खां गालिब से मिर्जा गालिब बनने की कहानी भी कम रोचक नहीं है.
हाजिरजवाबी में माहिर थे गालिब
मिर्जा गालिब कमाल के हाजिर जवाब थे. अंग्रेजों से मिलने वाली पेंशन बंद हो जाने के बाद उनका जीवन मुश्किलों में गुजरने लगा. इस दौरान उन्हें शराब और जुआ खेलने की लत लग गई. अंग्रेजों ने जुआ खेलने पर पाबंदी लगा रखी थी. पुलिस ने एक बार उन्हें जुआ खेलते हुए पकड़ लिया, इस पर मिर्जा गालिब ने पुलिस कोतवाल से पूछा कि कोई अगर अपने पैसे से जुआ खेलता है तो फिर जुर्म कैसा. इस पर कोतवाल को कोई जवाब देते हुए नहीं बना.
जब ठुकरा दी थी शिक्षक की नौकरी
मिर्जा गालिब बेहद खुद्दार थे. उन्हें सरकार की ओर से पेंशन मिलती थी, लेकिन वह बंद कर दी गई. इसके चलते गालिब को कई बार कोलकाता भी जाना पड़ा. लेकिन कोई बात नहीं बनी. दिल्ली के जाकिर हुसैन कॉलेज में उनके एक प्रशंसक जो वहां अच्छे पद पर थे उन्हें फारसी का शिक्षक बनने का न्यौता दिया. वे मान गए, लेकिन जब वे अपनी पालकी पर बैठकर अपने प्रशंसक के घर पहुंचे तो वह उनसे मिलने घर के बाहर नहीं आया इसी बात पर नाराज होकर मिर्जा गालिब वापिस लौट आए और नौकरी से हाथ धो बैठे.
मिर्जा गालिब को आधुनिक भारत का पहला ऊर्दू शायर माना जाता है. उनके कुछ शेर जो बहुत लोकप्रिय हैं-
1- हुई मुद्दत कि गालिब मर गया,पर याद आता है हर एक बात पर कहना कि यूं होता तो क्या होता.
2- हम को मालूम है कि जन्नत की हकीकत लेकिन दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्याल है.
3- इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया वरना हम भी आदमी थे काम के.
4- मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले.
5- इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश गालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने.
6- निकलना खुल्द से आमद से सुनते आए थे लेकिन बहुत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले.
7- खुदा के बास्ते पर्दा न काबे से उठा जालिम कहीं ऐसा न हो यहां भी वही काफिर सनम निकले
8- उनके देखे से जो आ जाती है चेहरे पर रौनक वो समझते है कि बीमार का हाल अच्छा है
9- रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं काइल जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
10- आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी जुल्फ के सर होते तक