नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती सहित रिसॉर्ट मालिकों और अन्य निजी भू-स्वामियों को ‘हाथी गलियारा’ में पड़ने वाली भूमि खाली करने और उनकी भूमि का कब्जा नीलगिरि (तमिलनाडु) के जिलाधिकारी को सौंपे जाने संबंधी मद्रास हाई कोर्ट के 2011 के फैसले को बुधवार को बरकरार रखा.


चीफ जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ हॉस्पिटैलिटी एसोसिएशन ऑफ मदुमलई और चक्रवर्ती की याचिकाओं सहित 35 याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया.


सुप्रीम कोर्ट ने हाथियों के अस्तित्व पर संकट से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर गौर करते हुए अपने फैसले में कहा, ‘‘परंपरागत सांस्कृतिक श्रद्धा का जंतु होने के बावजूद आज भारत में हाथी गंभीर खतरे में हैं.’’


बेंच ने कहा, ‘‘समस्या का सार तत्व एक है, जो देश में सभी वन्य जीवों को प्रभावित कर रहा है, वह है भूमि. भारत की जनसंख्या पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है, इसलिए संसाधनों की मांग भी बढ़ी है. अधिक खाद्यान्न उपजाने को लेकर कृषि कार्यों के लिये और सड़क, बांध, खान, रेलवे और आवास के लिये भूमि की मांग बढ़ी है. भूमि की इस मांग के चलते देश के वन क्षेत्र का क्षरण हुआ है.’’


गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की 2010 की उस अधिसूचना की मान्यता को बरकरार रखा था, जिसमें तमिलनाडु में नीलगिरि जिले के सिगुर पठार पर ‘हाथी गलियारा’ को अधिसूचित किया गया था.


साथ ही हाई कोर्ट ने रिसॉर्ट मालिकों और अन्य निजी भूस्वामियों को हाथी गलियारा में पड़ने वाली भूमि खाली करने और उसका कब्जा नीलगिरि के जिलाधिकारी को सौंपने को निर्देश दिया था.


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक प्रावधान राज्यों को स्पष्ट रूप से ये अधिकार देते हैं कि वे पर्यावरण का संरक्षण करें और उन्हें बेहतर बनाएं और देश के वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा करें.