देशभर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम योजना लागू है लेकिन इस योजना के तहत हर राज्य में मिलने वाली मजदूरी में अलग-अलग देखने को मिलती है. लेकिन अब मजदूरी में असामान्यता से लोगों में नाराजगी देखने को मिल रही है. इस वजह से एक संसदीय समिति ने नौकरी योजना के तहत पारिश्रमिक के मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए मांग की है कि वर्तमान व्यवस्था में बदलाव होना चाहिए और देश के हर राज्य के मनरेगा को एक समान मजदूरी एक यूनिफार्म सिस्टम के तहत दी जानी चाहिए. हालांकि सरकारी सूत्रों ने इस मांग को खारिज कर दिया है. वहीं इस मुद्दों को अधिनियम के अधिकारियों ने बड़ी सावधानी से निपटाया. साथ ही एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि वो इस मोर्चे पर किसी बदलाव की उम्मीद नहीं करते हैं.


असमानता मजदूरी को खत्म करने की मांग    


पैनल ने ग्रामीण विकास पर 2021-22 के लिए अनुदानों की मांग पर अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि राज्यों में अलग अलग मिलने वाली मनरेगा मजदूरी को मजदूरी असमानता कहते हैं. वहीं पैनल ने पूछा कि ये कैसे संभव है कि एक देश के अंदर एक की योजना की मजदूरी दर अलग अलग रखी गई है. पैनल ने सरकारी अधिकारियों से गुज़ारिश की है कि मनरेगा के लाभार्थियों के लिए सभी राज्यों में एक समान मजदूरी का भुगतान किया जाए और इस असमानता को खत्म किया जाए.


अधिकारी का बयान


जानकारी के मुताबिक राज्यों में मजदूरी की एकरूपता व्यावहारिक नहीं थी और इसकी वजह राज्यों के आर्थिक स्तर और मनरेगा से उम्मीदें अलग होना मानी गई है. वहीं एक अधिकारी ने कहा कि न्यूनतम मजदूरी का भुगतान मनरेगा के तहत नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये रोजगार की तलाश करने वाले सभी लोगों को काम की गारंटी देता है.इस लिए एक समान मजदूरी मिलना संभव नहीं है.


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