मुंबई: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने ऐलान किया है कि मार्च के पहले हफ्ते में वे अयोध्या जाने वाले हैं. उनके इस ऐलान के बाद सियासी हलकों में चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर ठाकरे को अचानक अयोध्या जाने की क्या सूझी. इसके पीछे कारण माना जा रहा है अगले साल होने जा रहे मुंबई महानगरपालिका के चुनाव. चुनावी समीकरण में अपनी जगह बनाने के लिये इसे राज ठाकरे की एक रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.


मुंबई महानगरपालिका देश की सबसे अमीर महानगरपालिका मानी जाती है. कई छोटे राज्यों के बजट से बडा बीएमसी का बजट होता है. इस महानगरपालिका पर बीते 3 दशकों से शिवसेना का कब्जा रहा है. फरवरी 2021 में बीएमसी के चुनाव होने हैं. बीएमसी पर कब्जा हासिल करने के लिये बीजेपी इस बार एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. साल 2017 के पिछले चुनाव में भी जब शिवसेना और बीजेपी अलग अलग चुनाव लड़ी थी तब बीजेपी ने शिवसेना को कड़ी टक्कर दी थी. मात्र 2 सीटों के अंतर से शिवसेना के हाथ से सत्ता छिनते छिनते बची. 227 सीटों वाली महानगरपालिका में शिव सेना ने 84 सीटें जीतीं जबकि बीजेपी ने 82. इस बार बीजेपी को उम्मीद है कि बीएमसी पर उसी का झंडा फहरेगा और इसके लिये बीजेपी तगड़ी रणनीति बना रही है.


बीजेपी की रणनीति का एक हिस्सा राज ठाकरे भी हैं ताकि शिवसेना के पारंपरिक वोटों में सेंध लगाई जा सके. हालांकि, फिलहाल बीजेपी और एमएनएस दोनो ही इस बात से इंकार कर रहे हैं कि उनके बीच किसी तरह का गठबंधन होगा लेकिन सियासी हलकों में यही चर्चा हो रही है कि दोनो के बीच चुनाव पूर्व या चुनाव के बाद गठजोड हो सकता है. बीजेपी का फिलहाल यही कहना है कि राज ठाकरे जब तक अपनी कट्टर मराठीवादी की छवि से नहीं उबरते तब तक उनके साथ गठबंधन मुमकिन नहीं है. ऐसा करने से बीजेपी को उत्तर भारत में नुकसान पहुंच सकता है. दूसरी तरफ एमएनएस भी मराठीवाद से आगे बढकर हिंदुत्वाद का एजेंडा अपनाती दिख रही है.


बीते साल 23 जनवरी को राज ठाकरे ने अपनी पार्टी का चौरंगी झंडा बदलकर भगवा रंग का झंडा अपना लिया. उस मौके पर राज ठाकरे ने कहा कि ये वो झंडा था जो पार्टी की स्थापना करते वक्त उनके मन में था और हिंदुत्व उनके डी एन ए में है. सियासी हलकों में माना जा रहा है कि राज ठाकरे शिवसेना का विकल्प बनने की कोशिश कर रहे थे. महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाते वक्त शिव सेना ने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में मौजूद सेकुलर शब्द को स्वीकार कर लिया था जिसके बाद ये चर्चा शुरू हो गई थी कि शिवसेना आक्रमक हिंदुत्व के मुद्दे पर नरम हो गई है.


शिवसेना को हिंदुत्व के मुद्दे पर नरम पड़ते देख राज ठाकरे ने मौका लपक लिया और अपनी पार्टी के लिये हिंदुत्व का मुद्दा अपना लिया. उनका मराठीवाद का मुद्दा वैसे भी उन्हें कोई सियासी फायदा नहीं दिला पा रहा था. साल 2014 के चुनाव में पार्टी सिर्फ एक सीट ही जीत पाई और साल 2019 के विधानसभा चुनाव में भी उसे सिर्फ एक ही सीट मिली. बीएमसी के पिछले चुनाव में एमएनएस के 7 पार्षद जीते थे जिनमें से 6 बाद में शिवसेना में चले गये. इस तरह एमएनएस महाराष्ट्र में एक विधायक और एक पार्षद वाली पार्टी बनकर रह गई थी.


अब अयोध्या जाकर राज ठाकरे अपनी हिंदुत्ववादी छवि को और मजबूत करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं. सियासी हलकों में माना जा रहा है कि ऐसा करके बीजेपी के साथ जुडने और अपनी पार्टी को पुनर्जीवित करने का रास्ता उन्हें मिलेगा.


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