IVF जैसी तकनीक से गर्भधारण का होगा रेगुलेशन, मोदी सरकार संसद में पेश करेगी बिल
पिछले कुछ सालों में कृत्रिम तकनीकों से बच्चे पैदा करने वालों की तादाद काफी बढ़ी है. इसी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने एक पैमाना तय करने का फैसला किया है.
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नई दिल्ली: कृत्रिम गर्भाधारण की अलग अलग तकनीकों के ज़रिए बच्चे पैदा करने के लिए केंद्र सरकार ने एक पैमाना तय करने का फैसला किया है. इसके लिए 2 मार्च से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र के दूसरे भाग में एक बिल पेश किया जाएगा. बिल का नाम Assisted Reproductive Technology Regulation Bill 2020 होगा. बिल में इन तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे क्लिनिकों के लिए एक प्रोटोकॉल भी तय किया जाएगा.
बिल में ऐसे सेंटरों और क्लिनिकों को रेगुलेट करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक बोर्ड बनाए जाने का प्रावधान किया गया है. राष्ट्रीय बोर्ड ऐसे सभी सेंटरों के लिए एक आचार संहिता तैयार करेगा जिसका पालन करना ऐसे सेंटर पर काम कर रहे कर्मचारियों और तकनीशियनों के लिए अनिवार्य बनाया जाएगा. साथ ही, ऐसे सेंटर के मूलभूत ढ़ांचे, लैबोरेट्री और उनमें इस्तेमाल होने वाले औज़ारों का मानक भी तैयार करने की ज़िम्मेदारी इस बोर्ड पर ही होगी.
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भी ऐसे ही बोर्ड का गठन किया जाएगा. बोर्ड के सहयोग के लिए एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री और रेजिस्ट्रेशन प्राधिकरण बनाया जाएगा. प्राधिकरण का काम एक अखिल भारतीय डेटाबेस तैयार करना होगा .
इन नियमों और आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों के लिए सजा और जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है. इनमें लिंग निर्धारण, मानव भ्रूण की गैर कानूनी बिक्री और ऐसी चीजों का रैकेट चलाने जैसे अपराधों को भी शामिल किया गया है. ऐसे अपराधों के लिए पहली बार 10 लाख रुपए के जुर्माने से शुरू होकर बाद में 12 साल कैद की सजा तक का प्रावधान किया गया है.
पिछले कुछ सालों में देश में IVF, ICSI और PGD जैसी कृत्रिम तकनीकों से बच्चे पैदा करने वालों की तादाद काफी बढ़ी है. ऐसे सेंटरों की संख्या के विकास दर के मामले में भारत दुनिया के कुछ बड़े देशों में शुमार है.
भारत दुनिया में कृत्रिम तरीक़े के गर्भाधारण उद्योग का एक बड़ा केंद्र बन चुका है. सरकार के मुताबिक़ ऐसे में इस उद्योग से जुड़े कुछ नैतिक, क़ानूनी और सामाजिक प्रश्न भी खड़े हो गए हैं. इन्हीं सवालों और चुनौतियों से निपटने के लिए एस क़दम को उठाने का फ़ैसला किया गया है.
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