सियासी दांव-पेंच में पिस रहे हैं 'बेरोजगार', इन आंकड़ों को देखकर हालात समझिए 'सरकार'!
नौकरियों की कमी को लेकर यूपीए सरकार की नाकामी के बावजूद राहुल गांधी मोदी को इसलिए निशाना रहे हैं क्योंकि सत्ता में आने से पहले मोदी ने भी बढ़ती बेरोजगारी को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था.
नई दिल्ली : हर चुनाव में बेरोजगारी समाप्त करने का सियासी दल वादा करते है. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर विपक्ष इस मुद्दा को गरमाने लगा है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेरिका में भारतीय समुदाय के लोगों के बीच कहा कि बेरोजगारी भारत की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है और मोदी सरकार इसका हल ढूंढने में नाकाम रही है. एक दिन पहले ही राहुल ने ये भी माना था कि यूपीए सरकार लोगों को नौकरियां नहीं दे पायी इसीलिए नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने का मौका मिला.
राहुल गांधी ने कहा था, 'मेरे लिए नौकरियां दिलाना सबसे बड़ी चुनौती है, कांग्रेस ऐसा नहीं कर पायी, इसीलिए मोदी आए लेकिन मोदी भी ऐसा नहीं कर पा रहे हैं.' नौकरियों की कमी को लेकर यूपीए सरकार की नाकामी के बावजूद राहुल गांधी मोदी को इसलिए निशाना रहे हैं क्योंकि सत्ता में आने से पहले मोदी ने भी बढ़ती बेरोजगारी को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था.
पीएम मोदी ने सत्ता में आने से पहले कहा था, 'जब अटल जी की सरकार थी तो 6 साल में 6 करोड़ लोगों को रोजगार दिया था और जब यूपीए की सरकार आयी तो 2004 से 2009 में सिर्फ 27 लाख लोगों को रोजगार दिया, आप मुझे बताइए मेरे नौजवान मित्रों क्या ये कांग्रेस के हाथ में देश के नौजवानों का भविष्य सुरक्षित है.'
जानें क्या कहते हैं आंकड़े...
गौरतलब है कि मोदी ने वादा किया था कि अगर बीजेपी में सत्ता में आई तो हर साल 1 करोड़ नई नौकरियां पैदा की जाएंगी. इस वादे के मुताबिक अब तक देश में 3 करोड़ नई नौकरियां होनी चाहिए, लेकिन हकीकत में इसका 5 फीसदी भी नहीं हो पाया है.
लेबर ब्यूरो के मुताबिक देश में नौकरी पैदा करने वाले 8 प्रमुख सेक्टरों में पिछले कुछ सालों में लगातार गिरावट दर्ज की गई है. 2009 में यूपीए सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद से 2014 तक इन सेक्टरों में कुल 35 लाख नौकरियां दी गईं. इसमें यूपीए के आखिरी ढाई साल यानी 2012 से मई 2014 के बीच 8.86 लाख नौकरियां आईं. जबकि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद के ढाई सालों में सिर्फ 6.41 लाख नई नौकरियां ही आयीं.
एकदूसरे पर बस आरोप मढ़ रही है बीजेपी और कांग्रेस...
हालांकि इन आंकड़ों के जवाब में बीजेपी के पास अब भी सिवाए कांग्रेस को कोसने के और कोई तर्क नहीं है. हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि आप हमारा 3 साल का हिसाब मांग रहे हो, जनता आपसे तीन पीढ़ी का हिसाब मांग रही है.
बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा, 'राहुल गांधी जी जब नौकरियों की बात करते हैं तो न तथ्यों को देखते हैं न यूपीए के कार्यकाल को.'
देश में बेरोजगारी की बढ़ती समस्या की सबसे बड़ी वजह नेताओं और राजनीतिक दलों का यही रवैया है. बीजेपी पिछली सरकार पर सवाल उठा रही है और अपनी पीठ ठोंक रही है कि उसने मुद्रा लोन और कौशल विकाल मंत्रालय के जरिए नौकरियों के नए रास्ते खोले हैं.
वहीं सत्ता में रहते हुए बेरोजगारी कम करने में नाकाम रही कांग्रेस के उपाध्यक्ष अब ये दावा कर करे हैं कि उनके पास नई नौकरियां पैदा करने का फॉर्मूला है.
राहुल गांधी ने कहा, 'कांग्रेस के पास इस समस्या को हल करने की दृष्टि है, अभी ये समस्या इसलिए है क्योंकि फिलहाल सारा ध्यान सिर्फ 50-60 बड़ी कंपनियों पर दिया जा रहा है. हमारा मानना है कि अगर भारत में नौकरियां बढ़ानी हैं तो छोटी और मझोली कंपनियों को बढ़ावा देना होगा. अगर हम किसानों पर ध्यान दें, उन्हें मजबूत बनाएं तो लाखों नौकरियां पैदा हो सकती हैं.'
असली मुद्दे से भटक रहे हैं राजनेता...
नेताओं की इस बयानबाजी के बीच बेरोजगारी का असली मुद्दा लगातार खोता जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 और 2018 में भी भारत में नौकरियों की स्थिति में कोई सुधार आने की उम्मीद नहीं है. 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1 करोड़ 70 लाख बढ़ गई. जो 2018 में 1 करोड़ 80 लाख होने का अनुमान है यानी अगले साल 10 लाख और लोग बेरोजगार हो जाएंगे.
बेरोजगारी बढ़ना और नई नौकरियों का ना आना फिलहाल मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी है. हालांकि सरकार अब भी 2020 तक 5 करोड़ नई नौकरियों का दावा कर रही है लेकिन उसके पहले 2019 में चुनाव हैं और तब तक अगर वादे हकीकत में नहीं बदले तो मोदी सरकार को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है.